विनीत कुमार/ स्त्री-पुरूष संबंधों को लेकर चलनेवाली स्टोरी में न्यूज चैनलों का मानसिक पिछड़ापन साफ दिखाई देता है. दिग्विजय सिंह और अमृता राय को लेकर आजतक ने जिस तरह से स्टोरी प्रसारित की और "अमृता राय का पति कौन" शीर्षक से पैकेज चलाए, बेहद शर्मनाक है. इन्हीं मौके पर आपको अंदाजा लग जाता है कि मीडिया इन्डस्ट्री आधुनिकता और नागरिक अधिकार का क, ख, ग तक नहीं जानता और न सीखना चाहता है.
एक अजीब किस्म की कुंठा उसके भीतर जीती है. यही पैकेज सलमान रश्दी जैसे अंग्रेजी लेखक पर चलाते तो उनमे हसरत और फैशन का भाव होता लेकिन यहां हीनता ग्रंथि हावी है.जिसका सबसे दुखद पहलू ये कि जिस तरह से दक्षिणपंथी संगठन और मोदी समर्थक अपने मोदी मसीहा के पत्नी के साथ के कारनामे के बरक्स इसे खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं, चैनल का सुर उसके साथ है.
आप बताइए न, स्त्री-पुरूष के बीच जब संबंध स्वाभाविक नहीं रहे और स्वेच्छा से तलाक का प्रावधान है और वो ऐसा करते हैं तो इसमे कौन सा पहाड़ टूट जाता है. इन सबके बीच कोई किसी के साथ जीवन बीताना चाहता है, संबंध बनाना चाहता है तो इसमे मीडिया को क्या दिक्कत है ? घिन आती है इनकी समझ पर. दुनियाभर के खुलेपन के बीच किसी के फैसले का सम्मान तक करना नहीं जानते.
अमृता राय के अलग होने के बाद अगर आनंद प्रधान अगर इसका सम्मान करते हैं तो इसके अलावा और क्या चाहते हैं ? लेकिन नहीं, चैनल की अंडरटोन यही है कि आप एक स्त्री को काबू में नहीं रख सके. धन्य हो भारतीय मीडिया, तुम इसी तरह के गोबरछत्ते को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहते रहो.
इन सबके बीच हम जैसे लोग आनंद प्रधान की मूल भावना का सम्मान करते हैं और साथ ही अमृता के लिए शुभकामनाएं भी कि उनका इस फैसले के साथ खुश रहना बेहद जरूरी है.
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