दिलीप मंडल। संपादकों और पत्रकारों की साख (विश्वसनीयता) नष्ट होने पर आप ऐसे क्यों चिंतित हैं, जैसे कि आपकी अपनी साख नष्ट हो गई है? जिसकी साख जा रही है, वह चिंतित है और उसे चिंतित होना चाहिए.
मास कम्युनिकेशन का आर्किटेक्चर बदल रहा है. यह हाइरार्की टूटने का दौर है. आप भी अपनी बात बोलिए. दम होगी तो बात सुबह से शाम तक लाख लोगों तक पहुंच जाएगी. पत्रकार और भला क्या करता है? क्रेडेबिलिटी तो आपकी भी हो सकती है. नहीं है तो बनाइए.
वे दिन गए जब वे उपदेश देते थे और बाकी लोग ग्रहण करते थे. जश्न मनाएं कि महान संपादकों के युग का अंत हो रहा है. वह अलोकतांत्रिक दौर था.
वह संपादकों और पत्रकारों का स्वर्ण युग था. पत्रकारिता का स्वर्ण युग तो अब आ रहा है.