गिरीश मालवीय। कल दैनिक भास्कर के बहुत से संस्करणों के फ्रंट पेज पर एक लेख छापा गया जिसका शीर्षक था 'अब आधार जैसा यूनिक हेल्थ कार्ड मिलेगा जिसमें आपका पूरा मेडिकल रिकार्ड होगा'........दरअसल इस लेख में जो भी जानकारी दी गयी वो लगभग साल भर पुरानी थी.
15 अगस्त, 2020 को मोदी ने लालकिले से राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) का शुभारंभ कर दिया था, लेकिन जिसने भी यह लेख लिखा और जिसने भी इस का सम्पादन किया उसने यह जांचना जरूरी नही समझा कि यह सब जानकारी तो एक साल से पब्लिक डोमेन में है, ........अगर आप इतनी महत्वपूर्ण जगह लेख को छाप रहे हो तो कोई न कोई एक्सक्लुसिव बात वहाँ होनी चाहिए और इस नई डिजिटल हेल्थ आईडी के सम्बंध में साल भर में जो तथ्य सामने निकल कर आए है वो बहुत चौकाने वाले है दरअसल उसके बारे में आप अपने पाठकों को बता सकते थे, चेता सकते थे !......
सबसे बड़ी गलती जो इस लेख में की गई वो यह थी कि इसमे यह नही बताया गया कि यह यूनिक हैल्थ आईडी तो कोरोना टीकाकरण के साथ बनना शुरू हो गयी है,
आप अपना वेक्सीन सर्टिफिकेट स्वंय चेक कर लीजिए उसमे आपको यह 14 अंक की हैल्थ ID बनी हुई मिल जाएगी.
दरअसल जब कोई कोरोना वेक्सीन लगवाने के लिए अपने आधार कार्ड के साथ कोविन पोर्टल या ऐप पर रजिस्टर करता है, तभी यह यूनिक हैल्थ आईडी क्रिएट हो जाती है.
सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यहां खड़ा होता है कि क्या हमसे इस यूनिक ID बनाने की सहमति ली गयी है ?
मोदी सरकार ने जो नई स्वास्थ्य नीति बनाई है उसमें इस तरह से बिना सूचित किये व्यक्ति हैल्थ ID बनाना बिल्कुल गलत है यह स्वास्थ्य डेटा नीति के प्रावधानों के विपरीत है,इन प्रावधानों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के लिए उपयोगकर्ता की सहमति प्राप्त की जानी चाहिए। स्वास्थ्य डेटा नीति के खंड 9.2 में कहा गया है कि "डेटा प्रिंसिपल की सहमति तभी मान्य मानी जाएगी जब वह (सी) विशिष्ट हो, जहां डेटा प्रिंसिपल किसी विशेष उद्देश्य के लिए व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के लिए सहमति दे सकता है; (डी) स्पष्ट रूप से दिया गया; और (ई) वापस लेने में सक्षम।
यह देश की स्वास्थ्य नीति में लिखा है !.... क्या भास्कर ने अपने लेख में पूछा कि मोदी सरकार किस आधार पर अपनी नीति के खिलाफ जा रही है
इस तरह से जनता को धोखे में रखकर उनकी id बनाना असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
अगर सरकार को ऐसे ही आईडी क्रिएट करने थी तो यह भी व्यवस्था की जा सकती थी कि वह पहले यूजर की एक स्क्रीन पॉप अप या एक टिक बॉक्स के जरिए सहमति लेते !
लेकिन ऐसा नही किया गया क्योंकि इनके मन मे चोर बैठा हुआ था.
हम सब जानते है कि मजबूत डेटा सुरक्षा कानून के बिना लोगों के स्वास्थ्य संबंधी डेटा का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.
लोगों की सूचित सहमति के बिना टीकाकरण पंजीकरण के माध्यम से लोगों को एनडीएचएम में नामांकित किया जा रहा है यूनिक id बनाई जा रही है .
जबकि को-विन की गोपनीयता नीति के खंड 2ए के अनुसार, "यदि आप टीकाकरण के लिए आधार का उपयोग करना चुनते हैं , तो आप अपने लिए एक विशिष्ट स्वास्थ्य आईडी (यूएचआईडी) बनाना भी चुन सकते हैं ।" गोपनीयता नीति यह कहते हुए इस प्रक्रिया की स्वैच्छिक प्रकृति पर जोर देती है कि " यह सुविधा पूरी तरह से वैकल्पिक है ।"
लेकिन क्या हमें विकल्प चुनने की सुविधा दी गयी ? नही दी गयी !.......
यह किसने करने को बोला है ? क्या जनता ने कोई आंदोलन किया था या किन्ही संस्था ने इसके लिए कोई माँग उठाई थी कि हमारी आप अलग से यूनिक हैल्थ ID बनाओ ?
यह सरकार अपनी ही बनाई गई नीतियों का उल्लंघन कर रही है, धोखे से एक नयी यूनिक हैल्थ ID क्रिएट कर रही है और अखबारों के फ्रंट पेज पर इसे 'शुभ समाचार' के बैनर तले छापा जा रहा है, मीडिया ने जनता को सच बताने दायित्व बिल्कुल किनारे कर दिया है और सरकार की भड़ैती करना शुरू कर दी है.