कैलाश दहिया / पिछले दिनों 'व्हाट्सएप' पर वरिष्ठ पत्रकार नासिरुद्दीन का एक लेख प्राप्त हुआ, जिस का शीर्षक था 'प्रेम में डूबी बहादुर लड़कियो, हिंसक रिश्ते से बाहर निकलना जरूरी है।'(1) यह लेख लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही लड़की की उस के लिव-इन पार्टनर द्वारा की गई हत्या को केंद्र में रख कर लिखा गया है।
दरअसल पिछले वर्ष दिल्ली में श्रद्धा वालकर नामक एक लड़की की उस के लिव-इन पार्टनर द्वारा हत्या कर के उस के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर के सबूत मिटाने की कोशिश की गई थी। उसी तर्ज पर मुंबई में 'मनोज साने नाम के एक शख्स ने अपनी लिव-इन पार्टनर का बेरहमी से कत्ल कर दिया। लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसने टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए।'(2 )
इन दोनों मामलों से आहत इन्होंने अपना लेख लिखा। यहां मेरा सब से पहला सवाल इन के लेख के शीर्षक पर ही है। जैसा इन्होंने लिखा है 'प्रेम में डूबी बहादुर लड़कियो, हिंसक रिश्ते से बाहर निकलना जरूरी है।' यहां पूछा यह जाना है, क्या ये लड़कियां ही एकतरफा प्रेम में डूबी थीं? क्या इन के लिव-इन पार्टनर भी प्रेम में नहीं डूबे थे? यह कैसा प्रेम है? अब इस कथित प्रेम में डूबी लड़कियो की हत्या कर दी गई, लेकिन नासिर जी ने अपने लेख के अगले ही दिन यानी दिनांक 12 जून, 2023 के दिल्ली के 'हिंदुस्तान' अखबार में छपी इस खबर को देखा ही होगा, जिस का शीर्षक था, 'महिला ने लिव-इन पार्टनर को चाकू से गोद डाला।' क्या अब इन्हें 'प्रेम में डूबे बहादुर लड़को, हिंसक रिश्ते से बाहर निकलना जरूरी है' शीर्षक से लेख नहीं लिखना चाहिए? खैर! आगे बात करते हैं।
इन के लेख पर मैंने साफ़ शब्दों में लिखा, 'लिव इन रिलेशनशिप = जारकर्म। जारकर्म में हत्या सामान्य नियम की तरह चलती है।' इस पर इन्होंने लिखा, 'हम लिव इन को जारकर्म नहीं मानते।' इस पर मेरा कहना था, 'इस के कानून बनवा कर व्यवस्था बनवाएं। अन्यथा यह जारकर्म ही है।' इन के साथ व्हाट्सएप पर काफी देर संवाद चला। जिस में ये बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को ढाल बनाने की कोशिश करते दिखे। यहां अभी इतना ही कहा जा सकता है, काश! इन्होंने डॉ. धर्मवीर को पढ़ लिया होता। तब ये अंबेडकर के पीछे नहीं छुपते।
आगे बढ़ने से पहले यहां लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में ही जान लिया जाए। सवाल यह है, क्या होता है लिव-इन रिलेशनशिप? विकिपीडिया पर इस बारे में लिखा मिलता है- ''लिव-इन संबंध या लिव-इन रिलेशनशिप एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो लोग जिनका विवाह नहीं हुआ, साथ रहते हैं और एक पति-पत्नी की तरह आपस में शारीरिक संबंध बनाते हैं।"(3) यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक निर्णय में कहा है कि 'यदि दो लोग (स्त्री पुरुष) लंबे समय से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं और उन में संबंध हैं, तो उन्हें शादीशुदा ही माना जाएगा।' (4) अब शादीशुदा मामलों में तो विवाह के कानून ही लागू होंगे। और, शादीशुदा संबंधों में जारकर्म स्वीकार नहीं किया जाता। उधर, एक अन्य निर्णय में केरल हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह नहीं माना है। केरल हाई कोर्ट ने कहा कि 'कानून लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के तौर पर मान्यता नहीं देता है। यह 'पर्सनल लाॅ' या धर्मनिरपेक्ष कानूनों के अनुसार होने वाले विवाहों को ही वैध मानता है। न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुस्ताक की पीठ ने कहा कि इसलिए, किसी समझौते के आधार पर एक साथ रहने वाला जोड़ा न तो विवाह होने का दावा कर सकता और ना ही उसके आधार पर तलाक का अनुरोध कर सकता है।'(5) यह किसी से छुपा नहीं है कि बिना विवाह के साथ रहने का अर्थ है जारकर्म में गिरना। दिल्ली से प्रकाशित 'हिंदुस्तान' अखबार में 'लिव इन में रह रहे प्रेमी जोड़े ने जान दी' शीर्षक से 17 जून, 2023 को पृष्ठ आठ पर छपी एक खबर में बताया गया है, 'बाहरी दिल्ली के शाहबाद डेयरी थाना इलाके में लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रेमी युगल ने आत्महत्या कर ली।... मीरा शादीशुदा थी और उसका एक बच्चा भी है, जबकि मनोज अविवाहित था। दोनों पिछले चार-पांच माह से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे।' अब ये क्या कहेंगे? यहां बताने में किसी तरह की हिचक नहीं है कि जारकर्म संबंधों का ही बदला हुआ नाम ही लिव-इन रिलेशनशिप है।
इधर, इन्होंने भी लिखा है, 'लिव-इन यानी सहजीवन में दो लोग अपनी मर्जी से साथ रहना तय करते हैं। यह जीने का बेहतरीन तरीका हो सकता है, इसलिए उम्मीद की जाती है कि इस रिश्ते में बराबरी और इज्जत होगी, अहिंसा होगी और मोहब्बत तो होगी ही। मगर अब ये रिश्ते भी दागदार किए जा रहे हैं।' (6) इस इन से पूछना है कि ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाली संतान और उस के अधिकार कैसे तय होंगे? इन लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों में मतभेद की स्थिति में कौन सा कानून लागू होगा? फिर, इन्होंने ऐसे कितने रिश्ते देखे हैं, जिस पर यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं? 'अहिंसक लोगों के कारनामे भी किसी से छुपे नहीं है।' इस पर इन्हें खुल कर लिखना चाहिए। वैसे, इन्हें मुंबई में हुए इस जघन्य हत्याकांड के पीछे का सच बताया जा सकता है। एक ई रिपोर्ट के अनुसार, 'दोनों में पिछले कुछ समय से काफी झगड़ा होता रहता था। मनोज को सरस्वती के ऊपर यह शक था कि दूसरे के साथ अफेयर चल रहा है।'(7) अब इस पर ये क्या कहेंगे?
आगे बढ़ने से पहले थोड़ा बताया जाए, यह लिव-इन रिलेशनशिप प्रेम विवाह का ही छद्म नाम है।जिस में 'देह' के नाम पर जारकर्म की छूट मांगी जाती रही है। जब दलित चिंतन में प्रेम विवाहों की पोल पट्टी खोल दी गई तब राजेंद्र यादव और रमणिका गुप्ता जैसे लिव-इन रिलेशनशिप का झंडा उठाकर सामने आए। इस विमर्श में हिन्दी साहित्य के धुरंधर चारों खाने चित हो चुके हैं। ये कह रहे हैं, 'बहादुर होती हैं लिव-इन में रहने वाली लड़कियां।... शादी की रस्म के बिना या 'लिव-इन' रिश्ते में लड़के का रहना और लड़की का रहना एक ही बात नहीं है। लड़की का ऐसे रहना बहुत बहादुरी का काम है।' (8) यहां पूछा जा सकता है कि ऐसे जारकर्म में रहना कौन सी बहादुरी का काम है? क्या इन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि मनुष्य कैसे सामाजिक विकासक्रम में आदिम अवस्था से विवाह व्यवस्था तक पहुंचा है। इस विवाह व्यवस्था पर ही घर, परिवार, समाज और राज्य टिका हुआ है। इन्हें यह भी पता होना चाहिए कि स्त्री-पुरुष संबंधों से ही धर्म विकसित होता है। हर धर्म अपने लोगों के लिए अपनी ऐतिहासिक परंपरा और रीति-रिवाज के अनुसार व्यवस्था करता है। हो सकता है ये मुस्लिमों के लिए ऐसी छूट चाह रहे हों। इस पर भला किसी को क्यों ऐतराज़ होना चाहिए। लेकिन, आजीवक अर्थात् दलित कौम की बेटियां तो अपनी आजीवक विवाह परंपरा के तहत विवाह करके ही घर बसाएंगी। आजीवकों को किसी भी रूप में जारकर्म बर्दाश्त नहीं है।
इन्होंने यह भी लिखा है, 'आज भी बेहद कम लड़कियां हैं जो शादी के दायरे से बाहर खुलेआम किसी साथी के साथ लिव-इन में जीवन गुजारने (का) फैसला करती हैं।' (9) इस पर बस इतना ही कहना है कि इन्हें लिव-इन में रही नीना गुप्ता का दर्द पता होना चाहिए, जिन्होंने साफ-साफ कहा है कि 'वह खुद को एक ट्रेंडसेटर नहीं कहेंगी।.. उन्होंने तो यहां तक कहा, 'सिंगल मदर होना बहुत मुश्किल है। मैं किसी को यह चुनने के लिए नहीं कहूंगी। अगर आपको सही हमसफ़र नहीं मिलता तो बच्चा मत कीजिए।'(10) यहां यह कहने में किसी तरह की कोई हिचक नहीं है कि विवाह बाह्य संबंधों से 'अक्करमाशी' ही पैदा होते हैं। उम्मीद है इन्होंने शरण कुमार लिंबाले की इसी नाम से उन की आत्मकथा पढ़ी ही होगी।
इन्हें इस बात का अच्छे से पता है कि 'लिव-इन का फैसला लेने वाली लड़कियों के साथ आमतौर पर उसके परिवार वाले खड़े नहीं होते।'(11) अब इस पर क्या किया जाए? पूछा यह जाना है कि अपने परिवार को धता बता कर लिव-इन में रहने वालों को परिवार और अन्य रिश्ते क्यों चाहिए? ये जिस तरह का समाज बनाना चाहते हैं उस में अपने हिसाब से जिएं। बताया यह भी जाना है कि वैवाहिक संबंधों से ही उत्तराधिकार और संपत्ति के रिश्ते तय होते हैं। और कोई माता-पिता अपनी संपत्ति किसे देगा यह उन के ऊपर निर्भर करता है। अगर वे लिव-इन में रहने वाले लड़के या लड़की को अपने घर से बे-दखल करते हैं तो इस पर किसी को बड़बड़ाना नहीं चाहिए।
इन्होंने लिखा है, 'इससे पहले अपनी पसंद के लड़कों के साथ जिंदगी गुजारने का फैसला करने वाली लड़कियों के मां-पिता या रिश्तेदारों द्वारा उनके मारे जाने की खबरें ज्यादा हुआ करती थीं। अब उनका साथ देने का वादा करने वाले उनके साथी भी उनका खून कर रहे हैं।'(12) इन की इस पंक्ति को कैसे पढ़ा जाए? इस का अर्थ है कि इन्हें भारतीय समाज के बारे में ना के बराबर जानकारी है। ये एक-तरफा जानकारियों के साथ भिड़े हुए हैं। क्या इन्हें पता नहीं कि तथाकथित प्रेम संबंधों के नाम पर आज तक दलित लड़के की ही हत्या होती आई है। एकाध केस में किसी द्विज या सवर्ण जाति वालों ने अपनी बेटी की हत्या की होगी। हमारे पास दलित लड़के की हत्याओं के प्रमाण के अंबार लगे हुए हैं। उम्मीद है, प्रेम विवाहों में दलित लड़कों की हत्याओं के अपराधियों को सजा दिलवाने में ये हमारी कुछ मदद करेंगे। असल में, सामंत ही अपनी बेटी को मारते रहे हैं, जब लड़का दलित रहा हो। दलित ने कभी किसी की बेटी को नहीं मारा। अपनी बेटी को तो मारने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है। हां, भंवरी देवी की हत्या तो सारी दुनिया जानती ही है। उसे किसने मारा था यह किसी से छुपा नहीं है। वह भी सामंतों के साथ लिव-इन में ही तो रह रही थी और उन से बच्चे पैदा कर रही थी। ऐसे ही बुधिया भी लिव-इन में ही तो गर्भवती हुई थी। जिसे घीसू-माधव ने जिलाने से इंकार कर दिया था। यहां प्रसंगवश पूछा जा सकता है कि अक्करमाशी किसे दादा-नाना कहेगा?
अपने लेख पर व्हाट्सएप संवाद में लेखक व्यक्तिगत हो रहे थे। इन्हें बताया जा सकता है, दलित कौम की सभी बेटियां हमारी ही बेटियां हैं। इन्हें महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर का कथन याद रखना चाहिए, उन्होंने बिल्कुल साफ शब्दों में लिखा है, 'बुद्ध ने मेरी स्त्रियां छीनी हैं।'(13) लिव-इन रिलेशनशिप के नाम पर हम अपनी बेटियों को गैर आजीवक परंपरा में नहीं जाने देने वाले। हमारी बेटियां कैसे रहेंगी, यह हमारी ऐतिहासिक आजीवक परंपरा में हमारे महापुरुष हमें सिखा गए हैं। हमारी बेटियां तथाकथित लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रहतीं। इन का आजीवक परंपरा में विधिवत विवाह होता है और विवाह से ही संतान उत्पन्न होती है। आजीवक परंपरा में जारकर्म पर पूरी तरह से रोक है। ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप का सवाल ही कहां पैदा होता है?
असल में, लेखक दलित साहित्य के पाठक नहीं हैं। अगर इन्होंने दलित साहित्य पढ़ा होता तो ये इस तरह की बे-तुकी बातें नहीं बनाते। और ज्यादा ना कह कर इन्हें कबीर साहेब की वाणी के माध्यम से बताया जा सकता है :
"प्रेम पांवरी पहिर के, धीरज कज्जल देय।
सील सिंदूर भराय के, तब पिय का सुख लेय।।"(14)
एक अन्य बात जो इन्होंने कही, 'निंदक नियरे राखिए।' इन्हें बताया जा सकता है, आजीवक चिंतन में किसी का निंदा अभियान नहीं चल रहा। हम अपनी मूल ऐतिहासिक आजीवक परंपरा में अपनी समस्याओं के समाधान की तरह बढ़ चले हैं। जिस में जारकर्म को उस की नाभि से पकड़ लिया गया है।
और, आखरी बात जो इस क्रम में बतानी है, वह यह है कि आजीवक चिंतन अपनी कौम की समस्याओं के समाधान प्रस्तुत कर रहा है। आजीवकों को इस बात का भ्रम नहीं हुआ है कि वह द्विजों, सवर्णों या गैर आजीवकों को सुधार देंगे। यह सुधारने का भ्रम डॉ. भीमराव अंबेडकर को हुआ था जिस के परिणाम स्वरूप उन्हें अपना मंत्री पद छोड़ना पड़ा था।
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संदर्भ –
1, 6, 8, 9, 11,12
प्रेम में डूबी बहादुर लड़कियो, हिंसक रिश्ते से बाहर निकलना जरूरी है, नासिरुद्दीन, बीबीसी वेबसाइट, 11 जून, 2023.
2. मुंबई : 'श्रद्धा वालकर हत्याकांड को देखकर किया सरस्वती का कत्ल', दिमाग हिला देने वाले मर्डर के आरोपी ने कबूला, दैनिक जागरण ई पेपर, मनीषा नेगी, 08 जून, 2023.
3. विकिपीडिया से
4. लिव- इन पार्टनर को शादीशुदा दंपत्ति की मान्यता, लाइव टीवी ई संस्करण,14 अप्रैल, 2015
5. लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह नहीं मानता कानून, हिंदुस्तान, 14 जून, 2023, पृष्ठ 7.
7.अनाथ थी सरस्वती, दुकान से शुरू हुआ प्यार, फिर मनोज ने एक दिन का डाले टुकड़े-टुकड़े, टीवी9 भारतवर्ष, 08 जून, 2023.
10.आसान नहीं है सिंगल मदर होना, नीना गुप्ता, हिंदुस्तान, 15 अक्टूबर, 2020, सिटी पेज 2.
13. थेरीगाथा की स्त्रियां और डॉ.अम्बेडकर, डॉ. धर्मवीर, वाणी प्रकाशन, 21ए, दरिया गंज, नई दिल्ली -110002, प्रथम संस्करण : 2005, पृष्ठ 7.
14. महान आजीवक : कबीर, रैदास और गोसाल, डॉ. धर्मवीर, वाणी प्रकाशन, 4695, 21ए, दरिया गंज, नई दिल्ली -110002, प्रथम संस्करण : 2017, पृष्ठ 310.