लोकेंद्र सिंह/ सक्रिय पत्रकारिता और उसके शिक्षण-प्रशिक्षण के सशक्त हस्ताक्षर प्रो. कमल दीक्षित की नयी पुस्तक ‘मूल्यानुगत मीडिया : संभावना और चुनौतियां’ ऐसे समय में आई है, जब मीडिया में मूल्यहीनता दिखाई पड़ रही है। मीडिया में मूल्यों और सिद्धांतों की बात तो सब कर रहे हैं, लेकिन उस तरह का व्यवहार मीडिया का दिखाई नहीं दे रहा है। मीडिया के जरिये कर्ता-धर्ता मालिक/पत्रकार अपने व्यावसायिक और वैचारिक हित साधने में लगे हुए हैं। उन्होंने अपने नये मूल्य गढ़ लिये हैं। मूल्यहीनता के इस अंधकार को दूर करने का काम यह पुस्तक कर सकती है। प्रो. कमल दीक्षित की लेखकी में यह शक्ति है। वे निरंतर अपनी लेखनी के प्रवाह से यह करते आ रहे हैं। उनके शब्दों में सत्याग्रह है। वे आध्यात्मिक पुरुष भी हैं। जो वह कह रहे हैं, उसे उन्होंने जिया भी है। विभिन्न समाचार पत्रों का संपादन करते हुए उन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों को कभी नहीं छोड़ा। प्रत्येक स्थिति में मूल्यों की पत्रकारिता को आगे बढ़ाया। पत्रकारिता के अध्यापन एवं प्रशिक्षण में भी अपनी भावी पीढ़ी को मिशनरी पत्रकारिता के तत्व ही हस्तांतरित किए। शायद इसलिए ही प्रो. कमल दीक्षित जिस मूल्यानुगत मीडिया की बात कर रहे हैं, अनेक चुनौतियों के बाद भी वैसी मीडिया के अस्तित्व की भरपूर संभावना दिखाई देती है।
पुस्तक में शामिल अनेक आलेखों में प्रो. कमल दीक्षित की चिंता/बेचैनी दिखाई देती है। वह मानते हैं कि सामाजिक बदलाव के लिए मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। मीडिया इसमें कहीं चूक रहा है। मीडिया से वह अपेक्षा करते हैं कि उसे अपने कर्तव्य पथ पर वापस लौटना चाहिए। वे लिखते हैं कि ‘मीडिया ने अपने मूल्यों को दरकिनार किया है तथा मानवीय मूल्यों से भी उसके संबंध कमजोर हुए हैं। उसने भारतीय तथा जातीय संस्कृति को प्रभावित करते हुए पाश्चात्य तथा उपभोक्तावादी संस्कृति का विस्तार किया है।’ हिंदी के समाचार पत्र-पत्रिका जिस तरह भाषा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, उस पर भी उनकी बेचैनी साफ नजर आती है। उनका मानना है कि ‘हमारे समाचार पत्रों ने भाषा के साथ ही बेसमझ और फूहड़ व्यवहार किया है।’ यह पीड़ा हर उस पाठक की है, जो भाषा के प्रति थोड़ा-सा भी संवेदनशील है। विशेषतौर पर हिंदी के समाचार-पत्रों ने जिस तरह से आम बोल-चाल की भाषा के नाम पर ‘हिंदी’ का स्वरूप बिगाड़ा है, वह असहनीय है। समाचार-पत्र धड़ल्ले से हिंदी की अस्मिता पर चोट कर रहे हैं। अच्छी भाषा भी एक मूल्य है। समाचार-पत्रों को भाषा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके संवर्द्धन की जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए।
पुस्तक के पहले आलेख का शीर्षक है- ‘अभी संभावना है।’ यह शीर्षक ही इस पुस्तक के मूल विचार, भाव और तत्व का प्रतिनिधि है। यह शीर्षक उन लोगों को झकझोरता है, जो यह मान बैठे हैं कि कॉरपोरेट ने पत्रकारिता को चौपट कर दिया और अब मीडिया में मूल्यों के लिए कोई स्थान शेष नहीं। यह शीर्षक उस विश्वास को पक्का करता है, जो यह मानता है कि घोर व्यावयायिकता और गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के दौर में सबकुछ नष्ट नहीं हुआ है, अभी बहुत संभावनाएं शेष हैं। पुस्तक में शामिल सभी आलेखों में लेखक ने मूल्यों और सिद्धांतों को टटोलते हुए उनकी अनुपस्थिति पर जिम्मेदारों से प्रश्न भी पूछे हैं तो पत्रकारिता में मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयासरत सज्जनों को प्रोत्साहित भी किया है, ताकि वह अपने पथ पर आगे बढ़ते रहें। बहरहाल, बाकी सबको भी ‘अभी संभावना है’ इसको मंत्र बनाकर पत्रकारिता में मूल्योन्मुखी वातावरण बनाने के लिए जुटना चाहिए। यह भारतीय पत्रकारिता के वर्तमान और भविष्य, दोनों के लिए आवश्यक है। भारतीय पत्रकारिता का स्वर्णिम इतिहास है। पत्रकारिता ने न केवल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को धार दी, अपितु समाज जागरण का दायित्व भी निभाया है। इसलिए समाज आज भी पत्रकारिता से उसी भूमिका की अपेक्षा करता है। प्रो. दीक्षित लिखते हैं कि “समाचार पत्र-पत्रिकाओं को अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का स्मरण करना चाहिए। उसे अपने कंटेंट के विकास और पत्र के संचालन के बारे में कुछ ऐसी नीतियां तय करनी होंगी जिससे उसकी आर्थिक स्थिति भी ठीक रहे। बाजार उसका सहयोग तो उसके उपभोक्ताओं के आधार पर ले सके पर उसे बाजार की शर्तों पर अपने मूल्यों और आदर्शों को बदलना नहीं पड़े।”
पुस्तक में मूल्यानुगत मीडिया के आचार्य प्रो. दीक्षित के 60 चुनिंदा आलेखों को शामिल किया गया है। पुस्तक का पहला आलेख ‘अभी संभावना है’ और अंतिम आलेख ‘यह प्रवाह बना रहे’ है। पुस्तक में प्रवाहित चिंतनधारा के इस ओर-छोर (पहला और अंतिम आलेख के शीर्षक) पर खड़े लेखक ने अपने चिरपरिचित आध्यात्मिक अंदाज में महत्वपूर्ण संदेश दिया है। दोनों लेखों का यह क्रम लेखक के दार्शनिक पक्ष को भी सामने लाता है। सारगर्भित ढंग से लेखक ने अपने पाठकों और उन सब लोगों का मार्गदर्शन किया है, जो मूल्यानुगत मीडिया की स्थापना एवं विस्तार का ध्येय लेकर चल रहे हैं। उनके लिए संदेश है- सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है। फिर से पत्रकारिता के मूल स्वरूप को जाग्रत किया जा सकता है। अभी संभावना है। छोटी से छोटी संभावना भी हमारे प्रोत्साहन का आधार बने। इसलिए पत्रकारिता जगत में अनेक लोगों ने मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए जो प्रयास प्रारंभ किए हैं, हर हाल में उनका प्रवाह बना रहना चाहिए।
पुस्तक : मूल्यानुगत मीडिया : संभावना और चुनौतियां
लेखक : प्रो. कमल दीक्षित
प्रकाशक : सृजन बिंब प्रकाशन, नागपुर
मूल्य : 250 रुपये