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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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कौन सज़ा देगा इन झूठों व अफ़वाह बाज़ों को ?

कई आग लगाऊ चैनल्स का समाज को विभाजित करने का एजेंडा इस महामारी के दौर में भी बेशर्मी के साथ जारी

तनवीर जाफ़री/ वैसे तो समूची पृथ्वी गत तीन दशकों से आहिस्ता आहिस्ता मानव निर्मित अनेक संकटों के चलते बारूद के ढेर में परिवर्तित होती जा रही थी। वैश्विक जलवायु परिवर्तन,दुनिया के कई देशों में कुपोषण व भूखमरी के हालात,कई देशों में चल रही गृह युद्ध की स्थिति,विश्व के सामने बढ़ता जा रहा पेय जल संकट,विकास के नाम पर गर्म होता जा रहा विश्व का तापमान,धर्म व रंग भेद के आधार पर इंसानों में बढ़ती जा रही नफ़रत व कड़वाहट तथा विश्व के बड़े देशों में मची वर्चस्व की होड़ व इसके चलते उपजे सैन्य संघर्ष आदि ही पृथ्वी को नष्ट करने के लिए काफ़ी थे कि इसी दरमियान प्रकृति ने भी पृथ्वी पर छाये इस मानव निर्मित संकट को कई गुना बढ़ाते हुए कोरोना वायरस यानी कोविड-19 नामक महामारी के साथ अपनी भी उपस्थिति दर्ज करा दी। निश्चित तौर पर कोविड-19 महामारी ने सुपर पॉवर,सर्व शक्तिमान, विश्व के सबसे अमीर या प्रतिष्ठित लोग जैसी सभी अवधारणाओं को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है। आज पूरा विश्व अपनी सभी पूर्व प्राथमिकताओं को छोड़ कर इसी उपाय में जुटा है कि किस तरह स्वयं को व अपने देश के लोगों को इस लाइलाज महामारी से बचाया जाए। बावजूद इसके कि इस समय दुनिया के सभी धर्मों के आस्था के केंद्रों में ताला लटक गया है फिर भी इंसान अपने अपने इष्ट से ही पनाह मांग रहा है। विश्व के अनेक देश संकट के इस अवसर पर एक दूसरे को सहयोग करते भी दिखाई दे रहे हैं।

परन्तु इसी अति संकटकालीन दौर में एक वर्ग ऐसा भी है जो शायद यह समझ रहा है कि चूँकि अभी तक वह सुरक्षित है इसलिए जग सुरक्षित है। और अपनी इसी अमानवीय सोच के तहत इस वर्ग से जुड़े लोग व संस्थान अपने झूठ,नफ़रत तथा अफ़वाह बाज़ी के एजेंडे को पूर्ववत चलाए जा रहे हैं। एक ओर जहाँ दुनिया के देश एक दूसरे से मिलकर इस महासंकट से मुक़ाबला करने के उपाय तलाश रहे हैं वहीँ मानवता विरोधी सोच के यह लोग समाज में साम्प्रदायिकता का ज़हर बोने में लगे हुए हैं। भारत के कई राज्यों में सोशल मीडिया अथवा समाचारों आदि के माध्यम से किसी तरह की अफ़वाह फैलाने पर सख़्त पाबन्दी है। विभिन्न राज्यों से ऐसे कई समाचार भी सुनने को मिले है कि अफ़वाह फैलाने या झूठी ख़बर प्रकाशित करने की वजह से कई लोगों पर अपराधिक मुक़द्दमे दर्ज किये गए। परन्तु यदि देश का स्वयं को नंबर 1 बताने वाला टी वी चैनल ही कोरोना जैसी महामारी के दौर में भी नफ़रत फैलाने के अपने पूर्व एजेंडे को छोड़ने के बजाए उसे और तेज़ी से बढ़ा रहा हो फिर आख़िर इसके विरुद्ध कार्रवाई कौन करेगा और कब करेगा ?

यह वही टी वी चैनल है जिसने 2016 में देश में लागू की गयी नोटबंदी के बाद जब 2000 रूपये की नई नोट चलन में आई थी, इसने दुनिया को यह बताना शुरू कर दिया था कि -'सरकार ने इन 2000 की नोटों में एक गुप्त चिप लगाई है जिससे 120 मीटर की दूरी से ही सरकार और एजेंसियां ये जान पाएगी कि काला धन रखने वाला कोई व्यक्ति इन्हें जला या नष्ट तो नहीं कर रहा हैं।'ज़ी न्यूज़ अथवा ज़ी टी वी नामक इस चैनल के स्वामी  बीजेपी से राज्यसभा सांसद डाक्टर सुभाष चंद्रा हैं तथा इसके संपादक सुधीर चौधरी हैं जो बड़े ही आत्मविश्वास के साथ अफ़वाहबाज़ी फैलाने सामाजिक विद्वेष फैलाने तथा झूठ फैलाने के अपने एजेंडे में पूरे 'समर्पण भाव' से लगे रहते हैं। हमारे देश के टी वी दर्शक स्वभावतः सीधे व शरीफ़ ऐसे लोग हैं जो पूरे भरोसे व विश्वास के साथ किसी भी टी वी चैनल को देखते हैं व अख़बार आदि पढ़ते हैं। इन्हीं प्रसारित समाचारों के अनुसार ही जनता आपस में बहस करती है तथा उसी के अनुरूप अपनी धारणा बनती है। दर्शक प्रायः इतनी समझ नहीं रखते कि वे किसी प्रसारित समाचार की सत्यता व विश्वसनीयता को परख सकें। इसी बात का फ़ायदा उठा कर ज़ी न्यूज़ तथा इसी के साथ और भी कई टी वी चैनल देश में नफ़रत के बीज बोते रहते हैं तथा कार्यक्रमों को इस अंदाज़ से पेश करते हैं गोया देश में आग लगने वाली हो। ग़ौरतलब है कि यह वही सुधीर चौधरी हैं जिनपर 2012 में कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल की कंपनी के कथित तौर पर कोयला घोटाले में शामिल होने की ख़बर प्रसारित नहीं करने के बदले में 100 करोड़ रुपये मांगने का आरोप लगा था। और इसी आरोप में  ज़ी न्यूज़ के दो संपादकों सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया को पुलिस ने 27 नवंबर 2016 को गिरफ़तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया था। तभी से इनके आलोचक इन्हें 'सुधीर तिहाड़ी' के नाम से भी याद करते हैं।

बहरहाल इस टी वी चैनल व इसके जैसे और भी कई आग लगाऊ चैनल्स का समाज को विभाजित करने और चीख़ चिल्लाकर जनता को वरग़लाने का एजेंडा इस महामारी के दौर में भी बड़ी ही बेशर्मी के साथ जारी है। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों ज़ी न्यूज़ उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड चैनल द्वारा एक भ्रामक ख़बर चलाई गयी तथा अपने ट्वीटर पर डाली गयी कि -'फ़िरोज़ाबाद में चार तब्लीग़ी जमाअती पॉज़िटिव, इन्हें लेने पहुंची मेडिकल टीम पर पथराव'। परन्तु इस ख़बर का खंडन स्वयं फ़िरोज़ाबाद पुलिस द्वारा किया गया। फ़िरोज़ाबाद पुलिस ने ज़ी की ख़बर व ट्वीट के जवाब में  लिखा कि - 'आपके द्वारा असत्य एवं भ्रामक ख़बर फैलाई जा रही है जबकि जनपद  फ़िरोज़ाबाद में न तो किसी मेडिकल टीम एवं ना ही एंबुलेंस गाड़ी पर किसी तरह का पथराव किया गया है आप अपने द्वारा किए गए ट्वीट को तत्काल डिलीट करें।' पुलिस की इस चौकसी व खंडन के बाद  ज़ी मीडिया को यह झूठी ख़बर अपने ट्वीटर हैंडल से डिलीट करनी पड़ी। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में तब्लीग़ी जमात से जुड़े 11 लोगों के संक्रमित होने की ख़बर ज़ी न्यूज़ द्वारा चलाई गयी। परन्तु बाद में सरकार द्वारा जारी खंडन में बताया गया कि  अरुणाचल प्रदेश में केवल एक व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने  की पुष्टि हुई है। सरकार द्वारा जारी इस खंडन के बाद ज़ी न्यूज़ ने इसे मानवीय भूल बताते हुए स्पष्टीकरण तो दिया परन्तु न माफ़ी मांगी न ही खेद व्यक्त किया।

यही वे टी वी चैनल व इन जैसे पत्रकार हैं जो पत्रकारिता का धर्म निभाने के बजाए महज़ अपनी टी आर पी अर्जित करने के लिए नफ़रत का व्यापर करने का बीड़ा उठाए हुए हैं। हद तो यह है कि जिस तरह की झूठी,पुरानी व किसी भी विषय से असम्बद्ध वीडीओ फ़ारवर्ड करने को लेकर वाट्सएप अपनी विश्वसनीयता खो चुका है वही स्तर इन टी वी चैनल्स व इन जैसे पत्रकारों का भी हो चुका है। परन्तु सवाल यह है कि जब सरकार एक्का दुक्का अफ़वाह बाज़ों पर कार्रवाई कर यह जताना चाह रही हो कि वह झूठ व अफ़वाह फैलाने के सख़्त ख़िलाफ़ है फिर आख़िर इन अफ़वाहबाज़ व झूठे चैनल्स व भड़काऊ पत्रकारों को सज़ा कौन देगा और कब दी जाएगी।

तस्वीरें तनवीर जाफ़री द्वारा प्रेषित

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सम्पादक

डॉ. लीना