मीडिया में जाति का दंश : पार्ट 3
अमरेन्द्र यादव। वर्ष 2011 में जब माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से एम. ए. (जनसंचार) करने आया, दो सेमेस्टर कब निकल गया पता ही नहीं चला. इसके बाद गर्मी की छुटी हुई और विद्यार्थियों को पत्रकारिता विभाग के समन्वयक डा. अरूण कुमार भगत के आदेशानुसार इंटर्न करने का अवसर भी विभिन्न मीडिया संस्थानों में प्राप्त हो गए. विभाग में 'मै और जितेन्द्र ज्योति' ही ऐसे बचे थे जो बिहार में इंटर्न करने की बात कर दिल्ली में इंटर्न करने से इंकार कर दिया था.
बहरहाल, भगत सर ने अपने मित्र से बात कर मुझे राष्ट्रीय सहारा, पटना संस्करण में इंटर्न करने के लिए भेजा लेकिन वहां जगह नहीं होने के बाद मै पुन: भगत सर के निर्देश पर प्रभात खबर में काम कर रहे बिरेन्द्र कुमार यादव से मिल अपनी समस्या बतायी. उन्होंने मेरा रिज्यूम देखकर तत्कालिन स्थानीय संपादक (प्रभात खबर) स्वयं प्रकाश जी (राजपूत) के पास भेजा. स्वयं जी ने रिज्यूम देखने के बाद बाहर बैठ इंतजार करने के लिए कहा. पुन: दो घंटे बाद मुझे संपादक जी के केबिन में बुलाया गया. अन्दर दो लोग बैंठे थे. स्थानीय संपादक स्वयं प्रकाश जी ने जम्हाई लेते हुए पुछा कि ' आर्य साहब' कहां के रहने वाले है... ' सर छपरा के' . पिता जी के नाम में सरनेम 'राय' देखते हुए पुछा 'आप दोनों के सरनेम अलग क्यों है, मैने जाति आधारित सरनेम हटाने की पुरी बात बतायी. ' तो आप यादव यानी अहीर है ? मैंने हां रूप में सर हिला दिया. ' तो अब अहीर भी पत्रकारिता करेंगे ? सर मेरा शौक है पत्रकारिता, यह जवाब सुनते ही पुछे, कितना जमीन है ? ..सर... लगभग 40 बिगहा के आस पास का जोत है. 'अभी क्या बोआया है ?.... परवल मेरा जवाब था. 'तो एक काम करो, अगले सप्ताह परवल पर एक डिटेल रिपोर्ट तैयार कर दो, तभी तुम्हारा ट्रेनिंग शुरू होगा और जाने का इशारा कर दिया गया. केबिन में बैठे दूसरे व्यक्ति ने कहा कि 'यादव' हो तो छपरा के लालबाबू यादव और बिरेन्द्र यादव को जानते ही होगा. वे दोनो मेरे गुरू है सुनते ही उन्होंने कहा' पहले हमारी लालबाबू यादव से बात करवाना तब रिपोर्ट तैयार करने जाना नहीं तो सब कैंसिल हो जाएगा. छपरा पहुंच श्री यादव से बात करवाने और परवल पर रिपोर्ट करने के बाद मेरा इंटर्न शुरू हुआ और 22 वें दिन 'बिना प्रमाण पत्र' दिए ही इंटर्न पूरा होने की बात कह विश्वविद्यालय वापस लौटने का निर्देश दे दिया गया.......
यह भी अजीब संयोग है. मीडिया में जाति दंश का सामना सबसे ज्यादा ब्राहम्ण, राजपूत और भूमिहार जाति से आने वाले मीडिया मठाधीशों के साथ हुआ लेकिन मुझे पत्रकारिता में प्रशिक्षण लेने का सलाह देने वाले मनोज कुमार सिंह (राजपूत)छपरा शाखा प्रबंधक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया थ्ो. कॉजेल के दिनों में राष्ट्रीय सहारा अखबार में विनीत उत्पल (मैथिल ब्राहमण) और वेदब्रत कम्बोज (उतराखंडी ब्राहमण) ने दैनिक हिन्दुस्तान के नई दिशाएं में पुरा-पुरा पेज लगातार छाप मुझे हौसला प्रदान किया. एम. के बाद नौकरी दिलवाने में जगदीश उपासने (मराठी ब्रहामण) ने सहयोग किया . नौकरी लगने के बाद पत्रकारिता की बारिकियों को विष्णु गजानन पाण्डे (मराठी ब्रहामण) ने बताया और टीम भावना के साथ पत्रकारिता करना भी दीपेन्द्र तिवारी ( ब्रहामण) ने ही सिखाया.