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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पत्रकारों को अर्धनग्न कर फोटो सार्वजनिक करने की इजाजत किसने दी!

सोशल मीडिया मंच, व नए पत्रकारिता स्वरूप के दिशा निर्देश तय करने होंगे केंद्र सरकार को

लिमटी खरे/ इस समय सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश के सीधी जिले में पुलिस के द्वारा कुछ पत्रकारों को थाने बुलाकर सिर्फ कच्छे में उनकी फोटो वायरल करने की खबरें जमकर वायरल हो रही हैं। इस प्रकरण में खबर भी वायरल हो रही है जिसके अनुसार मध्य प्रदेश के सीधी जिले की पुलिस ने पत्रकारों को थाने में बुलाकर अर्धनग्न अवस्था में खड़ा कर दिया है। इनमें से ज्यादातर यूट्यूब चौनल चलाते हैं। खबर में एक पत्रकार के बारे में लिखा गया है कि वे अपना यू ट्यूब चैनल बघेली भाषा में चलते हैं और उनके सब्सक्राईबर्स की तादाद भी बहुत ज्यादा है। इस मामले में बताया गया है कि इन पत्रकारों ने भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ खबरों का प्रसारण किया गया था जिससे वे नाराज हो गए थे और उनके कहने पर सीधी पुलिस के द्वारा इस तरह की कार्यवाही को अंजाम दिया गया है। खबर में यह भी कहा गया है कि ये लोग फर्जी आईडी से फर्जी आईडी से भाजपा सरकार और विधायकों के खिलाफ लिखते और ख़बरें दिखाते हैं। ये तस्वीरें और खबर मीडिया जगत की सुर्खियां बटोर रही है।

अभी हाल ही में लिमटी की लालटेन के 207वें एपीसोड में हमने भारत सरकार के द्वारा बेन किए गए 25 चेनल्स के बारे में विस्तार से बताया था। यह सही है कि समाचार, जानकारियां और सूचना के आदान प्रदान के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफार्मस का अहम योगदान रहा है। इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी हैं तो इसके दुष्परिणाम के रूप में अफवाहें, दुष्प्रचार, झूठ आदि के प्रसार में भी ये बहुत ज्यादा सहायक ही साबित होते आए हैं।

अब बात करें मध्य प्रदेश के सीधी जिले की, तो इस मामले में जिस पत्रकार पर मूल रूप से पुलिस के आरोप हैं, उनके द्वारा 27 जनवरी 2018 से यू ट्यूब चेनल चलाया जा रहा है। चार सालों से चलने वाले और सतत सक्रिय यू ट्यूब चेनल को चलाने वाले पर इस तरह की कार्यवाही अचानक होना अनेक सवाल खड़े कर रहा है। हर जिले में पत्रकारों की खोज खबर लेने के लिए प्रदेश सरकार का जनसंपर्क महकमा तैनात होता है। जिला जनसंपर्क अधिकारी का यह दायित्व है कि अगर कोई गलत तरीके से पत्रकारिता कर रहा है तो उसकी जानकारी जिलाधिकारी के जरिए संबंधितों तक भिजवाए और उसको बाकायदा नोटिस देकर कार्यवाही करवाए। खबर पर अगर यकीन किया जाए तो यह विधायक और पुलिस के द्वारा की गई कार्यवाही ही प्रतीत हो रही है। इस मामले में सबसे  पहले जनसंपर्क अधिकारी का अभिमत मांगा जाना चाहिए था और उसके बाद संबंधित को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता तो शायद यह न्यायसंगत ही प्रतीत होता।

और अगर मान भी लिया जाए कि फोटो में दिख रहे आधा दर्जन से ज्यादा लोग या कथित पत्रकार गलत काम कर भी रहे थे तो पुलिस को यह अधिकार किसने दे दिया कि उन्हें सिर्फ कच्छे में खड़ा कर उनके फोटो खीचे जाएं और उन्हें वायरल किया जाए! चूंकि मामला पुलिस थाने के अंदर का है इसलिए इस फोटो के वायरल होने पर सीधी जिले के पुलिस अधीक्षक को संबंधित थाना प्रभारी से स्पष्टीकरण मांगा जाकर उसे सार्वजनिक करना चाहिए। इस पूरे मामले में अभी तक किसी भी पत्रकार संगठन का कोई बयान न आना भी अपने आप में आश्चर्य से कम नहीं माना जा सकता है। अगर किसी खबर को लेकर विधायक या पुलिस को किसी तरह की आपत्ति थी तो उस मामले में कार्यवाही का एक तरीका है। मानहानि का नोटिस दिया जा सकता है, मामले में कानूनी नोटिस दिया जा सकता है, पर किसी पत्रकार को इस तरह सार्वजनिक तौर पर सिर्फ कच्छे में खड़ा करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है।

यक्ष प्रश्न यही है कि क्या यूट्यूब चेनल के पंजीयन की भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय में कहीं व्यवस्था है! कम से कम खबरिया चेनल्स को तो आईएण्डबी मिनिस्ट्री के तहत पंजीकृत किए जाने की कोई व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए बाकायदा नियम कायदे बनाने की आवश्यकता है। अगर जरूरी हो तो कम से कम दो या तीन साल से लगातार चल रहे चेनल्स को पंजीकृत होने की बाध्यता इसमें रखी जा सकती है। दरअसल, आज के युग में समाचार चेनल्स के द्वारा जिस तरह से एकांगी मार्ग को चुन लिया गया है, उसके बाद से लोगों का भरोसा इन पर से उठता ही प्रतीत हो रहा है। दृश्य समाचार क्षेत्र अर्थात विजुअल या टीवी वाले खबर जगत में शून्यता आने के कारण इन यू ट्यूब चेनल्स को पैर जमाने का पूरा पूरा मौका मिला है, क्योंकि इनमें से कुछ चेनल्स के द्वारा बाकायदा सच्चाई को ही जनता के सामने लाया जा रहा है और जनता इन पर भरोसा करती प्रतीत हो रही है।

कहा जा सकत है कि टीवी चेनल्स पर शोर शराबा, अनावश्यक बहस, सनसनीखेज खबरों की प्रस्तुति में प्रमाणिकता का अभाव आदि ही इन्हें गर्त में ले जाने के मार्ग प्रशस्त कर रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मस के कारण पारंपरिक मीडिया के नैतिक मूल्यों में आए क्षरण और अन्य कमियों को पूरा किया जा सका है। आज यह कहा जा सकता है कि अनेक चेनल्स के द्वारा टीआरपी और पैसा कमाने के चक्कर में पत्रकारिता के स्थापित मापदण्डों और नैतिक मूल्यों को दरकिनार ही कर दिया है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हर समाचार माध्यम को समाज और देश के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए। दो तीन दशकों से समाचार जगत में मूल्यों का जबर्दस्त हास हुआ है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सोशल मीडिया मंच के जरिए नागरिकों के बीच संवाद और संपर्क के मामले में एक क्रांति का आगाज हुआ है। पर यह सोचना भी बहुत जरूरी है कि इस सबके चलते कहीं इसकी बुराईयों और विकृत स्वरूप को यह अंगीकार न कर ले। सीधी में जो भी हुआ उसकी महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला, इसके लिए राज्य शासन को बकायदा एक जांच वह भी समय सीमा में बिठाने की जरूरत है, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। साथ ही केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जरिए सोशल मीडिया, यू ट्यूब के समाचार चेनल्स, वेब पोर्टल्स आदि के लिए दिशा निर्देश जल्द से जल्द तय करने के मार्ग प्रशस्त करे।

(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.) (साई फीचर्स)

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सम्पादक

डॉ. लीना