बिहार में मीडिया
अरविंद शेष। बिहार की राजधानी पटना साल भर पहले से लेकर तीन-चार-पांच या छह साल पहले भी इतना ही खचाखच और गंदगीतरीन शहर था। लेकिन साल भर पहले तक बिहार और देश के वाचाल वर्ग की नजर में पटना क्या, समूचे बिहार का क्रांतिकारी बदलाव और विकास हो गया था। "बिहार "ट्रांसफॉर्म्ड"का नारा देश नहीं, दुनिया में गूंज रहा था। ये अचानक बिहार की तस्वीर उन्हीं लोगों-तबकों को फिर से बदसूरत लगने लगी तो आखिर क्यों..!!! हाल में मीडिया और "पत्रकार" गंदगी को "बदलाव"के परदे तले ढकने में लगे थे, वही आज खुद को "स्वतंत्र" महसूस करते हुए दो दिनों की बरसात में "पानी-पानी पटना" कर रहे हैं...! तो क्या साल भर पहले का पटना (बिहार) सचमुच क्रांतिकारी बदलाव का गवाह बन रहा था?
मेरा खयाल है कि बिहार और देश का वाचाल वर्ग और मीडिया तब इसलिए नीतीश सरकार के गुन गा रहा था कि वह भाजपा के सहारे से उसके सामाजिक-राजनीतिक एजेंडे को अमल में लाने का जतन कर रही थी और। अब चूंकि भाजपा नीतीश कुमार सरकार के लिए सहारा नहीं रही, इसलिए साल भर पहले का जो मीठा-मीठा गप्प था , अब वही कड़वा-कड़वा थू-थू...! किसी भी भ्रम में रहने की जरूरत नहीं है कि नीतीश राज में बिहार का मीडिया गुलाम था या उस पर सरकारी दबाव था। दरअसल, वह तब भी आर्थिक से लेकर सामाजिक पैमाने पर अपना चरित्र निबाह रहा था और अब भी वही कर रहा है..!!!
अरविंद शेष जी के फेसबुक वाल से साभार