कुछ लोग का धर्मान्तरण होता है, मेरा जातांतरण हो गया...
अमरेन्द्र यादव/ जाति पर बात करना मुझे भी खराब लगता है। जाति व्यक्ति की नही जमात की होनी चाहिए। मै आज नहीं अभी से ही जाति से सम्बंधित कोई बात नहीं लिखुंगा, ना ही कहुंगा लेकिन मुझे आश्वासन चाहिए कि जो मेरे और मेरे जैसे सैकड़ों के साथ जो 'जाति का नंगा नाच' हुआ वह बंद होना चाहिए।
माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जनसंचार में एम.ए करने के बाद एक मीडिया संस्थान में नौकरी के लिए (एक यादव, एक बह्रामण और एक श्रीवास्तव जी) तीन दोस्त गए। लिखित परीक्षा हुआ जिसमें तीनों पास कर गए। लेकिन साक्षात्कार में अन्य सवालों के साथ जाति भी पुछी गई। पुछने वाले उमा शंकर मिश्रा नामक व्यक्ति ने मेरे नाम में आर्य टाईटल देख पुछा की आप तिवारी जी है, मैने कहा कि नहीं सर मै 'अहीर' हूं तो उनका जवाब सुन कर अवाक रह गया। उन्होंने मुझे पत्रकारिता छोड़ आर्मी में जाने के लिए तैयार करने हेतु कहने लगे। परिणाम में मै फेल और सब पास थे। उसके बाद संस्थान के निदेशक जगदीश उपासने के सहयोग से मुझे लोकमत जैसे संस्थान में नौकरी मिल गई लेकिन इन जातिवादी मानसिकता वालों के लिए मन में घृणा पैदा हो गया..... और देखते देखते मै अमरेन्द्र आर्य से अमरेन्द्र यादव बन गया..... और कुछ साथी अब मुझे ही जातिवादी कहते है..... कुछ लोग का धर्मान्तरण होता है, मेरा जातांतरण हो गया !
पार्ट – 2
2009 में राष्ट्रीय सहारा के छपरा संस्करण में संवाददाता के रूप में काम कर रहा था। (यह पत्रकारिता में मेरे शुरू के दिन थे।) छपरा कार्यलय के प्रभारी विद्याभूषण श्रीवास्तव थे। अभी भी है। इन्होंने सारण एकेडमी में हुए एक कार्यक्रम को कवर करने के लिए भेजा। मै सारण एकाडेमी गया और पुरा कार्यक्रम कवर कर समाचार लिखा। वह खबर सिटी पेज पर बैनर न्यूज बन कर गई। अगले सुबह जब अखबार छपरा के बजारों में आई तो कार्यालय प्रभारी श्रीवास्तव जी ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सारण एकडेमी के नवांगतुक प्राचार्य (श्रीवास्तव जी) को कार्यालय से फोन कर बधाई देते हुए कहा कि ' आपके खबर को बैनर छपवाये है देख लीजिए। दो दिन बाद छपरा स्थित यादव छात्रावास में एक बैठक हुई थी। मै वहां गया और उस बैठक को कवर कर खबर लाया, लिख कर(जब खबर पन्नों पर लिख कर प्रभारी को देना होता था) प्रभारी श्रीवास्तव जी को दिया। उन्होंने पन्ना हाथ में लेते ही पुछा, कहा कि खबर है, मैने बताया छात्रावास में हुई बैठक की। उन्होंने खबर पढ़ी भी नहीं और पन्ने को फाड़ते हुए कहा ''यादव छात्रावास वाली, हटाओं मेरे सामने से, यादव -फादव का खबर छापने के लिए यहां बैठे है।'' इसके बाद राष्ट्रीय सहारा छोड़ प्रभात खबर से जुड़ गया। यह घटना मेरे पत्रकारीय जीवन की अहम घटना थी, इसके बाद सबकुछ छोड़ पत्रकारिता को ही जीवन समर्पित कर दिया... अब आपके सामने हूं। अब आप लोग ही बताये कि जातिवादी कौन..... ?