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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया में हिंदी का बढ़ता वर्चस्व

30 मई 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' पर विशेष 

डॉ. पवन सिंह मलिक/ 30 मई 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' देश के लिए एक गौरव का दिन है। आज विश्व में हिंदी के बढ़ते वर्चस्व व सम्मान में हिंदी पत्रकारिता का विशेष योगदान है। हिंदी पत्रकारिता की एक ऐतिहासिक व स्वर्णिम यात्रा रही है जिसमें संघर्ष, कई पड़ाव व सफलताएं भी शामिल है। स्वतंत्रता संग्राम या उसके बाद के उभरते नये भारत की बात हो, तो उसमें हिंदी पत्रकारिता के भागीरथ प्रयास को नकारा नहीं जा सकता। वास्तव में हिंदी पत्रकारिता जन सरोकार की पत्रकारिता है, जिसमें माटी की खुशबू महसूस की जा सकती है। समाज का प्रत्येक वर्ग फिर चाहे वो किसान हो, मजदूर हो, शिक्षित वर्ग हो या फिर समाज के प्रति चिंतन - मनन करने वाला आम आदमी सभी हिंदी पत्रकारिता के साथ अपने को जुड़ा हुआ मानते हैं। हिंदी पत्रकारिता सही मायनों में सरकार व जनता  के बीच एक सेतु का कार्य करती है। डिजिटल भारत के निर्माण में भी हिंदी पत्रकारिता का अपना एक विशेष महत्त्व दिखाई देता है ।      

हिंदी पत्रकारिता व मूल्य  बोध :

हिंदी पत्रकारिता कि जब हम बात करते हैं तो मूल्य बोध उसकी आत्मा है। भारत में हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ हुआ 30 मई 1826 में पहले साप्ताहिक समाचार पत्र 'उदंत मार्तंड' जिसे पंडित जुगल किशोर ने शुरू किया के साथ हुआ। अपने पहले ही संपादकीय में उन्होंने लिखा कि उदंत मार्तंड हिंदुस्तानियों के हितों लिए है। भारतीयों के हितों की रक्षा और राष्ट्र के सर्वोन्मुखी उन्नयन के लिए समाचार पत्र और मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। जिस दौर में उदंत मार्तंड शुरू हुआ था वह दौर पराधीनता का दौर था। भारत की पत्रकारिता का पहला लक्ष्य था राष्ट्रीय जागरण और भारत की स्वाधीनता के यज्ञ को तीव्र करना। ऐसे महान उद्देश्य को लेकर भारत की पत्रकारिता की शुरुआत हुई। यह भारत की पत्रकारिता का सर्वप्रथम मूल्य बोध है कि मीडिया या पत्रकारिता किसी भी कारण से राष्ट्र और समाज के हित से विरक्त नहीं हो सकती। और इसीलिए पत्रकारिता के प्रति भारत का जन विश्वास हुआ।  आज जब हम यह कहते हैं कि मीडिया लोकतंत्र का चोथा स्तंभ है तो ऐसे ही नहीं कह देते मीडिया ने अपनी भूमिका से यह साबित किया है कि समाज की अंतिम पंक्ति में जो सबसे दुर्बल व्यक्ति खड़ा है, उसके हितों की रक्षा के लिए कोई साथ है तो वह पत्रकारिता है। इन्हीं वजहों से अखबार को आम आदमी की आवाज कहा जाता था। इसी मूल्य बोध के कारण, उसका समर्पण व्यवसाय के लिए नहीं था। अखबार का या मीडिया का समर्पण देश एवं समाज के हितों के लिए साथ ही कमजोर व्यक्तियों के कल्याण की कामना के प्रति समर्पित था। यह जो जीवन दृष्टि है पत्रकारिता की यही वास्तव में पत्रकारिता की ख्याति है। वक्त के साथ बहुत सारी चीजें बदलती है, आज हम अपने स्वार्थ के हिसाब से उनके अर्थों को भी नए तरीके से परिभाषित करते हैं, लेकिन जो आत्मा है वह कभी बदलती नहीं है। उसकी पवित्रता, उसकी जीवंतता, उसकी व्यापकता, घोर सत्य है। जैसे हम कहते हैं कुछ चीजें सर्वदा सत्य होती हैं, सूर्य पूर्व से निकलता है। यह निश्चित सत्य है, वैश्विक सत्य है, यह बदल नहीं सकता। हम आज व्यवसाय और व्यावसायिक होड़ की बात कहकर पत्रकारिता को चाहे अलग-अलग तरीके से परिभाषित करें, लेकिन पत्रकारिता का मूल्य धर्म जो है, लोक कल्याण राष्ट्रीय जागरण और ऐसे हर दुर्बल व्यक्ति के साथ खड़े होना उसके अधिकारों, हितों के लिए लड़ना, जिसका कोई सहारा नहीं है। इस मूल्य को लेकर भारत की पत्रकारिता का उदय हुआ।

पत्रकारिता व साहित्य का अभेद संबंध : 

साहित्यिक व पत्रकारिता का कार्य है ठहरे हुए समाज को सांस और गति देना। जो समाज बनने वाला है, उसका स्वागत करना। समाज को सूचना देना व जागरुक करना, नयी रचनाशीलता और नयी प्रतिभाओं को सामने लाना। साहित्यिक व पत्रकारिता की यही जरूरी शर्त है। इसलिए यह एक अटल सत्य है कि साहित्य व पत्रकारिता दोनों अन्योनाश्रित है, दोनों अभेद है। जहां साहित्यकारों ने अच्छी पत्रिकाएं निकाली है वही अच्छे पत्रकार पत्रकारों ने यशस्वी साहित्यकार भी पैदा किये, यशस्वी साहित्य भी पैदा किया इस तरह दोनों का एक अभेद हमें दिखाई देता है अपने प्रारंभिक समय से और अब तक क्योंकि पत्रकारिता में साहित्य संभव नहीं था और बिना साहित्य के उत्कृष्ट पत्रकरिता संभव नहीं है। पत्रकारिता को साहित्य से शक्ति मिलती है इसके विकास में साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान होता है महर्षि नारद को हमारी परंपरा में आदि पत्रकार कहा गया हैं। उन्होने जो भी प्रयत्न किये उनका मकसद लोकमंगल ही होता था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पत्रकारिता अपने उद्भव के उषाकाल से ही लोकमंगल का संकल्प लेकर चली है ठीक इसी तरह साहित्य में भी लोकमंगल ही उसके केंद्र में है। हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत होती है एक सीमित संसाधन और कमजोर आर्थिक स्थिति वाले व्यक्ति जिनके पास मीडिया हाउसेस नहीं थे लेकिन बावजूद इसके उनका संकल्प बहुत बड़ा था। आगे चलकर उस संकल्प का परिणाम भी हमें दिखाई देता है। कालांतर में राजा राममोहन राय की प्रेरणा से बंग दूत 4 भाषाओं अंग्रेजी, हिंदी, फ़ारसी और बंगला में निकलता हैं। साल 1854 में हिंदी का पहला दैनिक समाचार पत्र सुधावर्शण नाम से श्याम सुंदर सेन ने प्रकाशित किया । पत्रकारिता की उद्भव भूमि कलकत्ता (कोलकाता) बनता है । समय के साथ-साथ धीरे-धीरे इन समाचार पत्रों का प्रभाव कोलकाता से लेकर संयुक्त अवध प्रांत तक होता गया और फिर काशी और प्रयाग में अखबार निकलने प्रारंभ हो गए। 1845 में शुभ सात सितारे, शुभ शास्त्र, हिंद की प्रेरणा से बनारस से अखबार निकलता है। इस लंबे काल तक समाचार पत्र और हिंदी पत्रकारिता अपना विकास यात्रा तय करती है तो अपने साथ-साथ एक उत्कृष्ट साहित्य और यशस्वी साहित्यकारों को लेकर चलती है । 1920 में जब छायावाद युग आता है तब जबलपुर से ‘शारदा’ नामक एक पत्रिका का प्रकाशन होता है जिसमें मुकुटधर पांडे ने छायावाद शीर्षक लेख लिखे थे और जिससे छायावाद के उद्भव की बात की थी जहां से छायावाद जुड़ने की बात की थी और वो साबित करते हैं के इस समय वे द्विवेदी युगीन कवि थे उनकी रचनाओं में भी छायावादी तत्व, सांकेतिकता के तत्व दिखाई देते हैं। हमारे यहाँ अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे यह साबित होता है कि पत्रकारिता यदि साहित्य से मिल जाए तो वैचारिक क्रांति का जन्म होता है।

इंटरनेट मीडिया में बढ़ता हिंदी का वर्चस्व :

आज के दौर में डिजिटल व सोशल मीडिया पर हिंदी के बढ़ते वर्चस्व को नकारा नहीं जा सकता। आजकल जब लगभग हर मीडिया हॉउस, संस्था, व्यक्ति, सरकार, कंपनी, साहित्यकर्मी से समाजकर्मी तक और नेता से अभिनेता को सोशल मीडिया में उसकी सक्रियता, उसको फॉलो करने वाले लोगों की संख्या के आधार पर उसकी लोकप्रियता को तय किया जाता है। ऐसे में इन सबके द्वारा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए हिंदी या स्थानीय भाषा का प्रयोग दिखाई देता है। भारत में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के पोर्टल्स का भविष्य भी बहुत उज्ज्वल है। हिंदी पढ़ने वालों की दर प्रतिवर्ष 94 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि अंग्रेजी में यह दर 19 प्रतिशत के लगभग है। यही कारण है कि तेजी से नए पोर्टल्स सामने आ रहे हैं। अब पोर्टल के काम में कई बड़े खिलाड़ी आ गए हैं। इनके आने का भी कारण यही है कि आने वाला समय हिंदी पोर्टल का समय है। पोर्टल पर जो भी लिखा जाए वह सोच समझ कर लिखना चाहिए क्योंकि अखबार में तो जो छपा है वह एक ही दिन दिखता है, लेकिन पोर्टल में कई सालों के बाद भी लिखी गई खबर स्क्रीन पर आ जाती है और प्रासंगिक बन जाती है। एंड्रॉयड एप्लीकेशन ने हम सभी को इंफॉर्मेशन के हाईवे पर लाकर खड़ा कर दिया है। रेडियो को 50 लाख लोगों तक पहुंचने में 8 वर्ष का समय लगा था। जबकि डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू को 50 लाख लोगों तक पहुंचने में केवल 2 साल का समय लगा। आज हमारे देश में 80% रीडर मोबाइल पर उपलब्ध हैं आज देश ही नहीं पूरी दुनिया जब डिजिटल की राह पर आगे बढ़ रही है तो कहना गलत न होगा कि ऐसे परिवेश में हिंदी जैसी भाषाओं की व्यापकता और आसान हो गई है। डिजिटल व‌र्ल्ड में तकनीक के सहारे हिंदी जैसी भाषाओं को खास प्राथमिकता दी जा रही है।

विश्व में लगभग 200 से अधिक सोशल मीडिया साइटें हैं जिनमें फेसबुक, ऑरकुट, माई स्पेस, लिंक्डइन, फ्लिकर, इंटाग्राम सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। दुनियाभर में फेसबुक को लगभग 1 अरब 28 करोड़, इंस्टाग्राम को 15 करोड़, लिंक्डइन को 20 करोड़, माई  स्पेस को 3 करोड़ और ट्विटर को 9 करोड़ लोग प्रयोग में ला रहे हैं। इन सभी लोकप्रिय सोशल मीडिया साइटों पर हिंदी भाषा ही सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली भाषा बनी हुई है। स्मार्टफोनों पर चलने वाली वाहट्सएप्प मैसेंजर तत्क्षण मैसेंजिंग सेवा में तो हिंदी ने धूम मचा राखी है। जिस तरह से आज समाज के हर वर्ग ने डिजिटल व सोशल मीडिया को अपनी स्वीकृति दी है उससे पूरी संभावना है कि डिजिटल युग में भी हिंदी पत्रकारिता के भविष्य की अपार संभावनाएं हैं।

हिंदी पत्रकारिता का स्थान दुनियाभर में पहले से बढ़ा है व निरंतर और भी बढ़ रहा है। आज हिंदी व स्थानीय भाषाओँ में कंटेंट लिखने वाले दक्ष पेशेवरों की मांग बढ़ रही है। हिंदी पत्रकारिता वास्तव में संचार की शक्ति रखती है। इसलिए आज हिंदी पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तियों का उत्तरदायित्व पहले से अधिक हो  गया है। हिंदी में अंग्रेजी के बढ़ते स्वरुप के प्रति भी हमें सतर्क होना होगा। हिंदी भाषा को भ्रष्ट होने से बचाना होगा। हिंदी के सही स्वरुप को बनाए रखने के लिए हमें एक योद्धा के रुप में काम करना होगा। हिंदी पत्रकारिता के केंद्र में सदैव समाज हित व राष्ट्र हित को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा। यही संकल्प व प्रतिबद्धता वास्तव में भविष्य की हिंदी पत्रकारिता के मार्ग को प्रशस्त करेगा।  

(लेखक जे. सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद के मीडिया विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर है)

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डॉ. लीना