मीडिया आपको किन शब्दों में उलझाकर पटकना चाहता है जरा उसकी बानगी देखिए
राजकुमार सोनी/ जब मैं अखबार की दुनिया में था तब हर दूसरे- तीसरे दिन मालिक और मूर्धन्य संपादक यही ज्ञान बघारा करते थे कि समाचार की भाषा बेहद सरल होनी चाहिए क्योंकि अखबार रिक्शा चलाने वाला भी पढ़ता है और चाय बेचने वाला भी. लेकिन पिछले कुछ दिनों से अखबार की भाषा बेहद प्राचीन और कठिन हो गई है. विशेषकर नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद से अखबारों को बांचकर यह लग रहा है कि हर तरफ हवन हो रहा है. हर अखबार वाले का अपना एक निजी हवनकुंड है. जबरदस्त ढंग से हवन चल रहा है. लोग बड़ी संख्या में हवन में शामिल होने के लिए आ रहे हैं और स्वाहा...स्वाहा की आहुति के साथ पंजरी ग्रहण करते जा रहे हैं. चारों तरफ एक अजीब तरह की खूशबू उड़ रही है. इस खूशबू से यह ख्याल ( ख्याल उर्दू का शब्द है... ध्यान लिखना ठीक होगा अन्यथा देशद्रोही घोषित कर दिया जाऊंगा. ) भी आ रहा है कि कहीं अखबारों में स्याही की जगह गंगाजल का इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है. बहरहाल यहां दो दिनों के अखबारों में इस्तेमाल किए गए कुछ प्राचीन शब्दों का उल्लेख कर रहा हूं. मैं यह नहीं कहता कि प्राचीन शब्द खराब होते हैं, लेकिन ये वहीं शब्द हैं जो यह बताने के लिए काफी है कि देश में आने वाले पांच सालों में क्या होने वाला है अर्थात क्या घटने वाला है. यकीन मानिए देश की मीडिया, राजनीति और नौकरशाही इन्हीं शब्दों से चिपककर काम करने वाली है. शनिवार को एक बड़े अखबार ने बकायदा पांच साल का एजेंडा भी बता दिया. अखबार के मालिक ने खुलकर अपनी टिप्पणी में लिखा है कि उसके अखबार के सारे संस्करण नरेंद्र भाई की भावी योजनाओं के साथ रहेंगे. मालिक ने साष्टांग तो नहीं लिखा.... लेकिन पूरी टिप्पणी को पढ़ने के बाद साष्टांग शब्द कई बार उचक-उचककर दर्शन देता हुआ नजर आया.
चाटुकार मीडिया आपको किन शब्दों में उलझाकर पटकना चाहता है जरा उसकी बानगी तो देखिए...
अश्वमेघ का घोड़ा, राष्ट्रवाद की सवारी, हिंदू सुरक्षा, हिंदू हृदय सम्राट, हिंदू गौरव, खूब लड़ी मर्दानी,क्षीर सागर, शंहनशाह, प्रज्ञा का जागरण बनाम माता का जगराता, आधिदैविक, उद्घोष, अव्यय, आत्मा, पुण्य आत्मा, शौर्य, विजय तिलक, कालिया मर्दन, भभूत, अवधूत, प्रचंड, अखंड, पांव पखारन, ध्यान-साधना, तस्मैं श्री, नौ रत्न, संत शिरोमणी, साधु, मनस्वी, तपस्वी, ऋषि- मुनि, कर्मयोगी, विश्वयोगी, यत्र-तत्र- सर्वत्र, यज्ञ, महायज्ञ, समीधा, विविधा, अतुल्य, स्तुत्य और स्तुत्य, पांडित्य, छंद, निषेधादेश, मोक्ष. तत्यनिष्ठ, देश की रामायण के राम, महाभारत के कृष्ण, असली अर्जुन मोदी, असली चाणक्य शाह, एकात्म मानववाद पर मुहर और महामानव बने मोदी.
आंधी से सुनामी तक
हो सकता है कुछ और शब्द हो जिन पर नजर नहीं पड़ी. अगर आपको कुछ शब्द नजर आए को कृपया अवगत कराइए... उन शब्दों को जोड़ लिया जाएगा. दो दिनों के अखबार में एक खास बात यह भी है कि वर्ष 2014 में जिन अखबार वालों ने मोदी को आंधी बताया था उन्होंने अब सुनामी बताया है. किसी भी अखबार वाले ने अपने सुधि पाठकों को यह जानकारी नहीं दी है कि एक गरीब इंसान की झोपड़ी न तो आंधी में टिकती है और न हीं सुनामी में. जरूरत से ज्यादा आंधी और सुनामी बरबादी का कारण बनती है. एक अखबार वाले ने तो यहां तक लिखा है- छत्तीसगढ़ में भाजपा ने छह महीने के भीतर ही भूपेश बघेल से अपना बदला चुका लिया. नप गए... चप गए शब्दों की तो भरमार है. इन दिनों अखबार वालों के बीच खतरनाक शब्दों की जुगाली का काम्पीटिशन चल रहा है. मजे लीजिए आप भी... बहुत कुछ झेलना है अभी आपको.
( साभार... अपना मोर्चा डॉट कॉम )