रिजवान चंचल/ लगातार बार बार हर बार लाशों पर सियासत करने के आदी हो चुके सियासतदानों की सोच और भारतीय मीडिया की कारस्तानी एक बार फिर विश्वपटल पर शर्मसार होती नजर आयी एक बार फिर सवालों के बीच घिरी मीडिया से लोग जानना चाहते हैं कि पुलवामा आतंकी हमला है या सियासत के षड्यंत्र का एक हिस्सा ? यदि इसमे भी सियासत का षड्यंत्र है तो लानत है ऐसी सियासत पर और मीडिया के प्रोपेगंडा पर जो ये भी भूल चुके कि हमारा देश है तो हम है और हम है तो सब है ?
सर्व विदित है कि सियासतदानों और भारतीय मीडिया के ज्यादातर चैनलों ने पुलवामा कांड व हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बाद जो माहौल बनाने की कोशिश की उससे साफ नजर आया कि देश षड्यंत्रकारी सियासतदानों का शिकार हो रहा है, लेकिन सियासत के षड्यंत्रों का अब धीरे-धीरे ख़ुलासा भी होता जा रहा है हिन्दुस्तान के द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में हमारी सेना ने सफलतापूर्वक एयर स्ट्राइक की इसमें कोई दो रे नहीं,हमारे भारतीय जाबाज़ सैनिकों ने पाक के नापाक इरादे को ध्वस्त कर बताया कि हम क्या कर सकते है सैनिकों की जाबाज़ी पर किसी को कोई शक नही है और होनी भी नही चाहिए लेकिन जिस तरीक़े से उसका मीडिया और सियासतदानों द्वारा प्रस्तुतीकरण टी आर पी बढ़ाने और सियासी लाभ लेने के लिए किया गया उस पर सवाल उठाना और आपत्ति स्वाभाविक है कितने आतंकी मरे इसकी कोई जानकारी सेना द्वारा नही दी गई पहली बात तो इसकी जानकारी होती ही नही है जैसा कि वायुसेना प्रमुख ने कहा कि हम टारगेट देखते हैं गिनती नही करते लेकिन बिकाऊ मीडिया ने तीन सौ से लेकर साढ़े तीन सौ आतंकी मारे जाने की सूचना पूरे विश्व में फैला दी. जबकि इसकी अधिकृत जानकारी किसी ने दी ही नही, मीडिया ने भौंक भौक कर विश्वपटल पर बेवजह हमारा चेहरा धुँधला करके रख दिया बेहतर होता कि ये यह भौंकते कि अब भारत के वीर जवानों ने जैश के ठिकानों को उसके शरणदाता पाकिस्तान की सीमा के अंदर नेस्तनाबूद कर डाला, यह भी भौंकते कि मसूद अज़हर अब तुम कही भी छिप जाओ तुम्हें अब पाताल लोक से भी ढूंढ़ निकालेंगे तुम हमारी क्षमता की जद में हो, यहां तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया को ज्यादा हँसी उड़ाने का मौक़ा नहीं मिलता किन्तु सरासर हवा हवाई भौंकने का परिणाम यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भारतीय मीडिया के उन दावों की यह कहकर हवा निकाल दी कि वहाँ पर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं ...?
क्या बिकाऊ मीडिया को यह एहसास है कि उसके भौंकने और हवा फैलाने का हिन्दुस्तान को कूटनीतिक तौर पर कितना नुक़सान किया है ...? यह तो वही समझ रहें हैं जो सच में राष्ट्र चिंतन कर रहे हैं... सियासतदानों का तो कहना ही क्या उन्हें जब कूटनीतिक तरीक़ों का इस्तेमाल कर हिन्दुस्तान के लिए काम करना चाहिए था तो ये अपनी सियासी रैलियों को सम्बोधित करने में लगे थे अपने बूथ मज़बूत करने में लगे थे ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है क्यों कि देश से बढ़कर कुछ भी नहीं है ।
सभी जानते हैं यहाँ लोकसभा चुनाव होने वाले है सियासतदानों के पास बताने को कुछ है नही क्यों कि सारा समय तो हिन्दू-मुसलमान के बीच दीवार बनाने में लगा दिया अब जब हिसाब-किताब का समय आया है तो सेना का इस्तेमाल कर जनता का ध्यान बाँटना चाह रहे है। इन सब गंभीर विषयों पर बात करने के लिए देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकारों ने हाल ही में एक टीवी चैनल पर चर्चा की. पुण्य प्रसून वाजपेयी द्वारा आयोजित इस चर्चा में द वायर के संपादक ,वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी सहित अन्य दिग्गज पत्रकार शामिल रहे इनका भी यही मानना था कि मीडिया के द्वारा सवाल किया जाना चाहिए सवाल ना करना या सवाल ना उठाया जाना देशहित में बेहतर नही होगा, देश के जाने माने पत्रकारों की इस चर्चा को सुनकर लगा कि देश कितनी गंभीर स्थित में आ गया है सभी ने हर विषय पर खुलकर बात की इस पूरी चर्चा में सबसे ज़्यादा चर्चा अगर किसी विषय पर की गई तो वह पत्रकारिता के गिरते स्तर पर की गई।इस विषय पर इन दिग्गजों को भी अचरज करते देखा गया .जिस तरीक़े से आज पत्रकार अपना ज़मीर बेच रहा है जिसकी वजह से इस देश की लोकतंत्र की बुनियाद हिल रही है क्या यह देश हित में ये उचित है ? लेकिन सियासत जो ना कराये वो थोड़ा।किसी चैनल ने बालाकोट में तीन सौ को मार गिराया तो किसी ने 350 आतंकवादियों को मार गिराया लेकिन ये गिनती कहाँ से आई इसका जबाब देने को कोई तैयार नही है.....?
जानी मानी न्यूज़ एजेंसी रॉयटर ने कहा है की भारत की मीडिया का ये दावा ग़लत है कि वहाँ ऐसा कुछ हुआ है लेकिन भारत में इस सच से पर्दा उठाने को मीडिया अभी भी तैयार नही है और माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि अगर आप चोर को चोर कहेंगें तो आपको देशद्रोही माना जायेगा. जरा सोचिए क्या ये लोकतंत्र के लिए ठीक है....? प्रायोजित तरीके से खेले जा रहे इस ख़तरनाक खेल को सभी देश वासियों को समझना होगा और इस ख़तरनाक खेल के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी नही तो यह देश हमें कभी माफ नही करेगा.
चर्चा में बैठे वरिष्ठ पत्रकारों ने लोगों के बीच ज़हर फैलाने का काम कर रहे मीडिया संस्थानों का नाम तो नही लिया लेकिन यह जरूर कहा कि जिस तरीक़े से लोग जनता और नौजवानों को उत्तेजित करते है मानो वो टीवी पर नही सरहद पर लड़ाई लड़ रहे होते हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या यही राष्ट्रवाद है? राफ़ेल में हुई तथाकथित बंदरबाँट पर भी सवाल गायब है किसान की बदहाली कंगाली पर कोई चर्चा नही,महंगाई बेरोज़गारी पर कोई चर्चा नही .लोगो की मूलभूत समस्याओं पर कोई चर्चा नही चर्चा हो रही है हिन्दू मुस्लिम पर, सियासतदानों की तू तू मैं मैं पर ,ताजुब्ब तो यह है कि शहीद हुए हमारे सैनिकों की शहादत के ख़ून पर भी सियासत हो रही है जो किसी लिहाज़ से उचित नहीं है परन्तु फिर भी ये सब हो रहा है हम सब देख रहें हैं।इससे ये भी साबित हो रहा है कि सियासतदानों को अपनी नाकामियों को छुपाने का जरिया चाहिए वो मिल गया , मीडिया भी सियासतदानों के साथ खड़ी है , देश से आवाज़ें आती रही कि वीर सैनिको की शहादत पर राजनीति नही की जानी चाहिए, सेना को सियासी रंग में नही रंगा जाना चाहिए किन्तु सियासतदानों की कौन वे और मीडिया बाज़ नही आये .....
यह कहना कतई गलत ना होगा कि 14 फ़रवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ़ के 40-42 से अधिक जवानों की मौत के बाद से अब तक का भारतीय मीडिया कवरेज पत्रकारिता के नए गर्त को छूने वाला रहा है. इस दौरान भारतीय मीडिया ने पत्रकारिता की तमाम नियंत्रण रेखाओं का उल्लंघन करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद को शर्मसार किया है यही वज़ह है कि आज विभिन्न चैनलों के बड़बोले और भड़काऊ ऐंकरों को लोग खलनायकों की तरह देखने लगे हैं चारो ओर उनकी निंदा-भर्त्सना भी कर रहे है.करें भी क्यों न उनके कर्मों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मीडिया की खिल्ली जो उड़वाई है. मेरे एक शुभचिंतक ने तो मुझसे यहाँ तक बाणीतीर चलाये कि पहले न्यूज़ चैनलों पर आन्दोलन कारियों को चीखते नारे लगाते दिखाया जाता था अब तो एंकर ही चीखते चिल्लाते दिखते हैं जनता को उकसाते भड़काते दिखते हैं. पिछले पखवाड़े में तो मीडिया ने झूठ और अधकचरेपन के नए कीर्तिमान गढ़ डाले हैं. और ऐसा करते हुए उसे किसी तरह की शर्म भी नहीं आई है एकतरफ़ा और फर्ज़ी कवरेज की उसने नई मिसालें कायम की हैं. उसने उन पत्रकारों को भी शर्मसार किया है जो पत्रकारिता को एक पवित्र पेशा समझते हैं और उसके लिए जीते-मरते हैं.
सच तो ये है कि इस दौरान मीडिया अपने दायित्वों से इतर सियासतदानो, सत्तासीनों और उनकी विचारधारा के साथ खड़ा हुआ था, तथा प्रचार-प्रसार कर बिना हिचक देशभक्ति के नाम पर युद्धोन्माद फैला रहा था. पत्रकारिता के सर्वमान्य उसूलों को दरकिनार कर उसने मनगढ़ंत और अपुष्ट ख़बरें जमकर प्रसारित कींपुलवामा हमले से जुड़े उसके अधिकांश ब्यौरे ग़लत साबित हुए. सियासतदानो के बीच भी जमकर तू तू मैं में हुई. कहना न होगा सियासतदानो द्वारा की जा रही सियासत हो या “पत्रकारिता सबका एकमात्र उद्देश्य सेवा ही है जिसे सियासतदा भी भूल चुके हैं और पत्रकार भी ।
रिजवान चंचल लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार हैं