वेदप्रताप वैदिक का आरक्षण को ले कर ‘अब खत्म करें आरक्षण’ शीर्षक से दैनिक भास्कर के 02 सितंबर 2015 के अंक में छपे लेख पर आलोचक कैलाश दहिया का जवाब
कैलाश दहिया/ द्विज लेखक वेदप्रताप वैदिक का आरक्षण को ले कर ‘अब खत्म करें आरक्षण’ शीर्षक से दैनिक भास्कर के 02 सितंबर 2015 के अंक में लेख छपा है। इस लेख में उन्होंने कुछ सवाल उठाने की कोशिश की है। एक तरह से इन के लेख से ध्वनि निकलती है की कि आरक्षण का पुनर्मूल्यांकन या रिव्यू किया जाए। इन की मानते हुए आरक्षण का रिव्यू करने की कोशिश की गई है।
- सर्वप्रथम, नकली सर्टिफिकेट बनवा कर पहले दिन से ही आरक्षण पर डाका डाला जा रहा है। इस बात का रिव्यू किया ही जाना चाहिए।
- प्रेम-विवाह और अंतर्जातीय विवाह के नाम पर आरक्षण पर डैकती डाली जा रही है। इस का भी रिव्यू होना ही चाहिए। वैसे तो डॉ. अंबेडकर ने ही आरक्षण को फेल करने का यह रास्ता सुझा दिया था। वे एक हाथ से दे रहे थे तो दूसरे हाथ से ले रहे थे। ऐसे विवाहों के नाम पर दलित लड़की दहेज में आरक्षण ले कर चली जाती है।
- सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद भी आज तक आरक्षण पूरा नहीं भर पा रहा। ऐसा क्यों हो रहा है, वैदिक जी को इस बात का खुलासा करना चाहिए।
- इन्होंने सही लिखा है, ‘यदि सरकारी नौकरियों में आरक्षण (देना जरूरी) है तो फौज, अदालतों और निजी नौकरियों में क्यों नहीं दिया जाए ? यहाँ वे ‘देना जरूरी’ जैसे शब्दों का प्रयोग गलती से कर गए लगते हैं।
- इन्होंने यह तो लिख दिया कि ‘जो पिछड़े आरक्षित नौकरियां झपट लेते हैं, वे अक्सर मालदार, ओहदेदार, ताकतवर और प्रभावशाली पिछड़ों के बेटे-बेटियाँ ही होते हैं।‘ लगे हाथ ये यह भी बता देते कि द्विजों के मालदार, ओहदेदार, ताकतवर और प्रभावशाली के बारे में इन के क्या विचार हैं ?
- इन के लेख से यह भी ध्वनि निकलती है कि आरक्षण से जातिवाद फैल रहा है। मानो आरक्षण की व्यवस्था से पहले इस देश में समतामूलक समाज रहा हो ? एक तरह से इन्होंने आरक्षण की व्यवस्था के स्थान पर वर्ण- व्यवस्था की वकालत की है।
- इन्होंने ‘जन्म आधारित सारे आरक्षण तुरंत खत्म किए जाने’ की वकालत की है। उम्मीद है ये अपनी बात पर कायम रहेंगे और संपति के तमाम साधनों पर कुंडली मारे बैठे द्विजों के जन्म आधारित आरक्षण तुरंत खत्म करवाएँगे।
- यहाँ द्विजों के मंदिरों में आरक्षण नहीं मांगा जा रहा। दलित यानी ‘आजीवक विमर्श’ इस से आगे बढ़ चुका है। बताया जा सकता है कि आजीवक अपने महान सदगुरुओं मक्खली गोसाल, रैदास और कबीर साहेब के मंदिर बना लेंगे। इन मंदिरों के पुजारी भी आजीवक ही होंगे। किसी बुद्ध को हमारे मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
- यह भी बताना है, जो समुदाय ओ. बी. सी. में आरक्षण मांग रहे हैं उन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए। क्योंकि, इन से पहले भी बहुत सी आर्थिक रूप से समृद्ध जातियों को आरक्षण दिया ही गया है। बस इस के लिए ओ. बी. सी आरक्षण की सीमा को वहाँ तक लाना है, जिस अनुपात में जो जाति हैं उन्हें उतना आरक्षण दिया जाए। इस में झगड़ा क्या है ?
- आरक्षण के संदर्भ में हमें महान आजीवक राजनेता मा. कांशीराम जी के कथन को ध्यान रखना चाहिए, जो उन्होंने ‘पूना समझौते’ को ले कर अपनी पुस्तक ‘चमचा युग’ की भूमिका में लिखा है- “जब कभी सवर्णों (द्विजों) को थोड़ी-बहुत शक्ति-सत्ता छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा तो वे बचाव के घटिया तरीकों पर उतर आये (आते हैं)।“ (देखें, चमचा युग, मा. कांशीराम, सिद्धार्थ बुक्स, C-263 ए, ‘चन्दन सदन’, गली न. 9, हरदेव पूरी, शाहदरा, दिल्ली-110 093, चतुर्थ आवर्ति:2011, भूमिका, पृ. 6) वैदिक जी के लेख को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
- वैसे बुजुर्ग वैदिक जी को क्यों नहीं सूझा कि सरकारी नौकरियाँ खत्म करवा दो आरक्षण खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा।
- व्यापक अर्थों में ‘दलित आरक्षण’ मोरलटी को मिला आरक्षण है। तभी बार- बार आर्थिक आरक्षण का शोर मचाया जाता है, ताकि असली बात छुपी रहे। वैदिक जी समेत सारे द्विज इस बात को अच्छे से जानते हैं।
अभी हम महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर के आरक्षण पर चिंतन की तो बात ही नहीं कर रहे। जब वे बोलेंगे तो इन जैसों को मुँह छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी। अभी तो केवल मानसिक पिछड़ों से कहना है कि वे इन के सवालों के जवाब दें। मान्यवर कांशीराम जी के आंदोलन ने आपको आरक्षण तो दिलवा दिया, अब देखना यह है कि पिछड़े मानसिक पिछड़ेपन के खोल से कैसे बाहर निकलते हैं।