कवि नौशाद आलम के काव्य-संग्रह ‘समय की धारा’ का लोकार्पण
पटना। साहित्य में उंच-नीच अथवा किसी प्रकार के द्वेष का स्थान नही होना चाहिये। यदि इसमें भी भेद की दृष्टि आ जायेगी तो समाज नही बच पायेगा। समाज को गिरावट के इस भयानक काल से बचाने का दायित्व साहित्य का है। कला, संगीत और साहित्य के उन्नयन में, कला-संस्कृति विभाग अपनी सारी उर्जा लगायेगा। राज्य सरकार प्रदेश के कलाकारों और साहित्यकारों के सम्मान की एक बड़ी योजना बना रही है। सरकार प्रदेश के साहित्यकारों और कलाकारों का सम्मान करना चाहती है।
यह उद्गार कल यहां साहित्य सम्मेलन द्वारा हिन्दी के कवि नौशाद आलम के काव्य-संग्रह ‘समय की धारा’ के लोकार्पण समारोह का उद्घाटन करते हुए, प्रदेश के कला एवं संस्कृत विभाग के मंत्री शिवचन्द्र राम ने व्यक्त किये। श्री राम ने कहा कि, कला-संस्कृति विभाग के मंत्री पद का दायित्व ग्रहण करने के बाद से हीं बिहार में कला, संगीत, संस्कृति, साहित्य और खेल-कूद की स्थिति को समझने और उसके उन्नयन के मार्ग ढूंढने में लग गया हूं।
समारोह के मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि साहित्य में भारत की आत्मा प्रतिविबित होती है। हमारी संस्कृति की जड़ें इससे जुड़ी हुई है। संस्कृति के प्रति हमारी चिन्ता बढी है। हम विचार तो अवश्य कर रहे हैं, किंतु भारत की संस्कृति की रक्षा में हम अपेक्षित प्रयास नही कर पा रहे हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, कविता अपनी कवित्त-शक्ति से पहचानी और समाज में आदर पाती है। कवित्त-शक्ति कुछ और नही बल्कि कवि की कल्पना-शक्ति ही होती है। कवि की कल्पना-शक्ति का संबंध भाव से है और भाव को उर्जा व्यापक अध्ययन और तपः-साधना से मिलती है। लोकार्पित-पुस्तक के कवि में कवित्त-शक्ति के बीज अंकुरित हो्ता दिखता है। इनमें संभावनाएं हैं। परिमार्जन के साथ-साथ इनमें गुणात्मक परिवर्तन हमें दिखेंगे, जिसका लाभ समाज को मिलेगा। डा सुलभ ने कला मंत्री से आग्रह किया कि सम्मेलन परिसर में कला और संगीत विद्यापीठ की स्थापना हो।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने लोकार्पित पुस्तक को हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में मूल्यवान कृति के रूप में स्वागत किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार जियलाल आर्य, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, पं शिवदत्त मिश्र, डा शंकर प्रसाद, डा कुमार अरुणोदय, शायर नदीम जाफ़री, प्रो वासुकी नाथ झा, डा मधु वर्मा, कवि राज कुमार प्रेमी, प्रमोद सिन्हा, आचार्य पांचु राम, घमण्डी राम, शंकर शरण मधुकर, आचार्य आनंद किशोर शात्री, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, मो सुलेमान, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, दा दिनेश दिवाकर, शैलेन्द्र झा ‘उन्मन’, शायर आरपी घायल, हाजी सुल्तान अहमद, अंबरीष कान्त, नरेन्द्र देव, महेन्द्र नारायण पाण्डेय, विश्वमोहन चौधरी संत, अजय कुमार, पं गणेश झा, बी पी सिंह, प्रभात धवन तथा हरेन्द्र चतुर्वेदी समेत कई विद्वानों ने अपने उद्गार व्यक्त किये।
मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन लोकार्पित पुस्तक के कवि नौशाद आलम ने किया।