दिल्ली । सामाजिक सरोकार पूर्ण लेखन के लिए वरिष्ठ रचनाकार, समाजसेवी महेश द्विवेदी जी को पहला प्रो. सहदेव सिंह स्मृति सम्मान दिया जायेगा ।
ख्यात लेखक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता स्व. प्रो. सहदेव सिंह की स्मृति में प्रो. सहदेव सिंह ट्रस्ट की ओर से इस सम्मान में उन्हें 11,000 की राशि, प्रतीक चिन्ह, शॉल, श्रीफल, प्रो. सहदेव सिंह रचित साहित्य आदि से सम्मानित किया जायेगा । यह सम्मान उन्हें 11 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन (मिस्र, 28 जनवरी से 4 फरवरी 2016 ) में प्रदान किया जायेगा ।
ट्रस्ट द्वारा गणित निर्णायक मंडल के सदस्यों - आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर(पटना), कथाकार हरिसुमन बिष्ट(दिल्ली), निबंधकार डॉ. रंजना अरगड़े (अहमदाबाद), पत्रकार राकेश अचल (ग्वालियर), जयप्रकाश मानस (संयोजक-सदस्य) ने श्री द्विवेदी का नाम का चयन किया है ।
श्री द्विवेदी की प्रमुख कृतियाँ है - उपन्यास - उर्मि, भीगे पंख, मानिला की योगिनी, कहानी संग्रह- एक बौना मानव, सत्यबोध, लव जिहाद, इमराना हाज़िर हो, व्यंग्य संग्रह- क्लियर फंडा, भज्जी का जूता, 51 श्रेष्ठ व्यंग्य, वीरप्पन की मूंछेँ, संस्मरण - प्रिय अप्रिय प्रशासनिक प्रसंग, कविता संग्रह - सर्जना के स्वर, अनजाने आकाश में आदि ।
श्री द्विवेदी भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं और पुलिस महानिदेशक, उत्तरप्रदेश के पद से सेवानिवृत्ति के बाद निरंतर सामाजिक सेवा में संलग्न रहे ।
ज्ञातव्य हो कि प्रो. सिंह आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण समय 1928 से लेकर जीवन-पर्यंत सक्रिय रहे । चाहे वह बाल कांग्रेस कमेटी हो, या कोई और फ़ोरम । उन्होंने कई बार जेल यात्रायें कीं किन्तु आज़ादी के बाद कभी भी कांग्रेसी, वामपंथी या भाजपाई की तरह सत्ता का लाभ नहीं लिया । 12 वर्षों तक अध्यापन कार्य किया । 1962 में पहली बार और 1967 में दूसरी बार उत्तरप्रदेश विधानसभा के सदस्य और विभिन्न पदों पर रहे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – 1. सामाजिक न्याय का संघर्ष 2. हमारे सामाजिक विघटन की कहानी 3. जाति-उदय, विकास, विरोध परिवर्तन और अब 4. बुद्ध ने हमें सिखाया 5. कबीर । इसके अलावा उन्होंने 30 वर्ष तक 'हमारा समाज' नामक साप्ताहिक का प्रकाशन और संपादन किया । 6 अगस्त 1919 को इटावा के ग्राम पाली खुर्द में जन्मे श्री सिंह ने स्वाध्यायी छात्र के रूप में एम.ए (हिंदी व समाज शास्त्र), प्रभाकर, साहित्य रत्न, एल.टी और एलएल.बी की डिग्री हासिल की थी । साहित्य और सामाजिक उत्थान को ही सदैव जीवन का ध्येय मानने वाले श्री सिंह का निधन 18 जनवरी, 2012 को हुआ ।