डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ कई दिनों से लिखने का मूड बना रहा था परन्तु ऐसा सम्भव होता दिख नहीं रहा था। सोचा चलो अब लिखने से तौबा ही कर लिया जाए लेकिन फिर सोचने लगा कि जब तक जीना है लेखन तो करना ही पड़ेगा- ऐसा करके ही अपना अस्तित्व कायम रख पाऊँगा। फिर प्रश्न उठा किस विषयवस्तु को अपने लेखन का प्लाट मानूँ- अब तक कुछ भी नहीं बचा है, जिस पर लिखा न हो। पॉलिटिक्स, सिनेमा, सम-सामयिक त्वरित टिप्पणियाँ, सेलीब्रेटीज के हाल, अनेकानेक समस्याओं पर लिख कर थक गया हूँ। कोई ऐसा प्लाट मिलता जो सर्वथा नया होता। पत्रकार, लेखक होने के नाते मैं अपने सुधी पाठकों को निराश नहीं होने देना चाहता इसलिए यह आलेख आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह लेख लिखने का मूड फेसबुक (मुख पोथी) पढ़ने के बाद बना।
फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़कर पता चला कि लोग सम्मानित किए जा रहे हैं। स्टेडियम में तरनताल बन गया है। हमारा स्टेटस बढ़ गया है। बच्चे 200 और सयाने 300/- में स्विमिंग करेंगे। बहरहाल इतने सेल्फिश न हो, कुछ अंशदान इधर भी। सेल्फी पोस्ट करें मगर ध्यान रहे वह किसी महिला आई.ए.एस. के साथ न हो वर्ना जेल भी जा सकते है। फेसबुक एक बहुत ही अच्छा माध्यम है नवनीत लेपन का- मगर ध्यान रहे इस प्रक्रिया में मात्र अपना ही स्वार्थ निहित न हो। आज कवि तो सभी बन रहे हैं- अतुकान्त आशु कवि बनकर फेसबुक पर अपलोड कर रहे हैं। अपनी सेल्फी और रचना को- उनको देखकर मरहूम पं0 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की छवि उभर कर सामने आती है। उनकी रचना के पात्र वह स्वयं हुआ करते थे। अब के कवि वैभवशाली जीवन जी रहे हैं- सर्व सुख-सुविधा भोगी बनकर नाम कमाने के लिए स्वयं को प्रचारित कर रहे हैं।
वाह रे जमाना- जिसका पेट भरा है- वह भी भोजन की तलाश में, जिसके पास भोजन है वह उसके भण्डारण करने की फिक्र में। जिसके पास एक वस्तु है- वह अनेकों के चक्कर में- इतने सेल्फिश तो न बनो भाई। सब कुछ तुम्हीं हड़प लोगे। फिर नेताओं को क्यों बदनाम किया जाता है.............? सरकारी मुलाजिमों पर भ्रष्टाचार का आरोप काहें को-? डोण्ट बी जीलस- हमारी वही दशा है जैसी लोमड़ी की थी। अंगूर न मिलने पर खट्टे हो गए। अपना क्या बैठे-ठाले अनाप-शनाप। जी हाँ बकवास लिखना आदत बन गई है। घर के लेागों ने कई सालों से एक उपाधि दे दिया है। मेरी गतिविधि देखकर वह लोग कहते हैं कि मैं सठिया गया हूँ। एक अदद तखत है लेटा रहता हूँ। आँखो से कम दिखता है, सोचता ज्यादा हूँ कर कुछ नहीं पाता। जमाना 21वीं सदी का है। हर लोग हाई प्रोफाइल, हर काम हाइटेक।
मैं चुप्पी मारे अपने जमाने की कोई भी एक्सपीरियंस शेयर नहीं करता। यह नहीं कहता जब मैं...................। खैर! इस बकवास को पढ़ने और टिप्पणी करने वालों पर खुदा रहम करे- यही दुआ करूँगा। हैल्लो सुन रहे हैं ना- कीप साइलेंस- व्हाट्स एप्प कॉल करो- ऊपर वाले से बात हो जाएगी। फोन कॉल रिसीव नहीं की जाती। बड़े अफसर हैं- बड़ी बात- बड़ी पगार- बड़ी रकम- बड़ी पहुँच। ट्रान्सफर कराना और रूकवाना दाएँ-बाएँ हाथ का खेल। एक आई.ए.एस. हैं- बहुत पहले सुना था कि वह बड़े ही कड़क हैं। प्रेस/मीडिया को घास नहीं डालते। सत्तारूढ़ पार्टी के जिलाध्यक्ष को फटकार दिए। समय का फेरा है- नेता जी एम.एल.ए. हो गए। हो सकता है कि मंत्री भी बना दिए जाएँ।
आई.ए.एस. के बारे में मुझे कइयों ने बताया कि वह एक ऐसे काबीना मंत्री का रिश्तेदार है जिससे सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सूबे के सी.एम. भी घबराते हैं। गवर्नर ने तो स्पष्ट कह दिया है कि मंत्री जी अपने पद के योग्य नहीं। लम्बी-चौड़ी बकवास नहीं- ग्लोबल और स्तरीय होने से पढ़ने वालों में रोचकता बढ़ती है। हम खटिया तोड़ रहे हैं। घर के सदस्य ऊब गए हैं। दो रोटी पाने के लिए जद्दो-जेहाद करना पड़ती है। बच्चे हैं, सुनते नहीं- सयाने हैं अपने में ही व्यस्त। महिलाएँ हैं- किसी का ससुर तो किसी का भसुर- बोलना मना है- छूने की बात कैसी............? एकान्तवासी बना हूँ, कोई मिलने तक नहीं आता- बेड राइडिंग यानि तखत पकड़ लिया है। रोग-व्याधि- तनाव क्या होता है अन्तर नहीं कर पाता हूँ। फिर भी जी रहा हूँ। उधर लोग सम्मान पा रहे हैं- मुँह देखी बातें करके क्षणभर के लिए ‘खुश’ कर देते हैं लेकिन जब सम्मान पाने और देने का वक्त आता है- तब भूल जाते हैं कि मैं भी कोई जीव हूँ इस धरती पर।
लोगों की फेसबुक पोस्ट ने बनाया लिखने का मूड
Comment
नवीनतम ---
- औरंगाबाद में पत्रकारिता का इतिहास
- विस्मयकारी है संजय द्विवेदी की सृजन सक्रियता: प्रो.चौबे
- पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है – ‘...लोगों का काम है कहना’
- 'मीडिया गुरु सम्मान' से अलंकृत हुए प्रो. द्विवेदी
- दो दिवसीय युवा उत्सव सम्पन्न
- सकारात्मक खबरों को बढ़ावा देने से ही समाज स्वस्थ और सुखी होगा: डॉ. मुरुगन
- हासा-भासा की लूट की राजनीति से प्रेरित है विमर्श का विषय
- राष्ट्रीय मीडिया गुरु सम्मान से अलंकृत किए जाएंगे प्रो.संजय द्विवेदी
- तीन श्रेष्ठ कवियों की पत्रकारिता का आकलन
- जलवायु परिवर्तन और जेंडर रिपोर्टिंग के लिए विशेष कौशल व ज्ञान की जरुरत
- व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर संस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करे मीडिया: उपराष्ट्रपति
- मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार
- 2030 तक दुनिया का हर पांचवां व्यक्ति बोलेगा हिंदी: प्रो. द्विवेदी
- शिक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा करना हम सबों की जवाबदेही: श्रवण कुमार
- हिंदी : राजभाषा, राष्ट्रभाषा और विश्वभाषा
- पत्रकारिता गहरे संकट में है
- दूसरा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मीडिया सम्मेलन 11 को
- वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय नहीं रहे
वर्गवार--
- feature (35)
- General (179)
- twitter (1)
- whatsapp (3)
- अपील (8)
- अभियान (9)
- अख़बारों से (4)
- आयोजन (100)
- इंडिया टुडे (3)
- खबर (1645)
- जानकारी (5)
- टिप्पणी (1)
- टीवी (3)
- नई कलम (1)
- निंदा (4)
- पत्रकारिता : एक नज़र में (2)
- पत्रकारों की हो निम्नतम योग्यता ? (6)
- पत्रिका (44)
- पुस्तक समीक्षा (47)
- पुस्तिका (1)
- फेसबुक से (213)
- बहस (13)
- मई दिवस (2)
- मीडिया पुस्तक समीक्षा (21)
- मुद्दा (501)
- लोग (8)
- विरोधस्वरूप पुरस्कार वापसी (6)
- विविध खबरें (579)
- वेकेंसी (14)
- व्यंग्य (30)
- शिकायत (10)
- शिक्षा (10)
- श्रद्धांजलि (118)
- संगीत (1)
- संस्कृति (1)
- संस्मरण (31)
- सम्मान (17)
- साहित्य (101)
- सिनेमा (16)
- हिन्दी (5)
पुरालेख--
- October 2024 (3)
- September 2024 (16)
- August 2024 (8)
- July 2024 (9)
- June 2024 (9)
- May 2024 (13)
- April 2024 (11)
- March 2024 (12)
- February 2024 (11)
- January 2024 (7)
- December 2023 (7)
- November 2023 (5)
- October 2023 (16)
- September 2023 (14)
- August 2023 (11)
टिप्पणी--
-
Anurag yadavJanuary 11, 2024
-
सुरेश जगन्नाथ पाटीलSeptember 16, 2023
-
Dr kishre kumar singhAugust 20, 2023
-
Manjeet SinghJune 23, 2023
-
AnonymousJune 6, 2023
-
AnonymousApril 5, 2023
-
AnonymousMarch 20, 2023
सम्पादक
डॉ. लीना