तारकेश कुमार ओझा / साधारण डाक और इंटरनेट में एक बड़ा फर्क यही है कि डाक से आई चिट्ठियों की प्राप्ति स्वीकृति या आभार व्यक्त करने के लिए भी आपको खत लिखना और उसे डाक के बक्से में डालना पड़ता है। लेकिन इंटरनेट से मिलने वाले संदेशों में इसका जवाब देने या अग्रसारित करने की सुविधा है। जिसके जरिए सेकेंड भर में इसे भेजने वाले को आपका जवाब मिल सकता है। लेकिन किसी क्षेत्र में प्रतिष्ठित लोगों की आम समस्या है कि वह इतनी जहमत भी नहीं उठाना चाहते। इसके जरिए वे मेल प्रेषक को यही संदेश देने की कोशिश करते हैं कि वे कोई सामान्य आदमी नहीं है। ऐसे लोग किसी को अपना मोबाइल नंबर देने में भी बड़े नखरे दिखाते हैं। या फोन रिसीव होने पर छूटते ही पूछते हैं... अरे तुम्हें मेरा नंबर किसने दिया...। लेकिन प्रसिद्धि के अनुरूप ही मिसाइल मैन यानी देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को मैने सैकड़ों की संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों को खुद ही अपना ईमेल आइडी बताते सुना था।
मौका था आइआइटी खड़गपुर के दीक्षांत समारोह का। करीब पांच साल पहले वे इस समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए थे। तब तक वे राष्ट्रपति से हट चुके थे। लेकिन उनके कार्यक्रम को लेकर सुरक्षा का बड़ा तगड़ा प्रबंध था। अपने समाचार पत्र के कवरेज के लिए मैं चिंतित था कि इतनी कड़ी सुरक्षा में मुझे समारोह तक पहुंचने का मौका मिल पाएगा या नहीं। आखिरकार किसी तरह इंट्री मिली और मैं उस मिसाइल मैन को नजदीक से देख रहा था कि जिनकी महानता के कई किस्से मैने सुन रखे था। अंग्रेजी में दिए गए अपने संबोधन में कलाम ने आइआइटी के विद्यार्थियों को करो और दो का मंत्र देते हुए कहा था कि जीवन में सिर्फ चाह की प्रवृति ठीक नहीं है। हमें करो या दो के मंत्र के जरिए हर समय समाज को कुछ देने के विषय में सोचना चाहिए। किसी जरूरतमंद की मदद करके भी आप समाज व देश को बहुत कुछ दे सकते हैं। समारोह के बाद कलाम संस्थान के विद्यार्थियों के समक्ष थे। उन्होंने सोचा कि शायद छात्र उनसे कुछ पूछना चाहें। लेकिन कदाचित यह उनके प्रति छात्रों के मन में मौजूद सम्मान का ही असर था कि छात्रों ने उनसे ज्यादा कुछ नहीं पूछा। मिसाइल मैन शायद छात्रों की इस दुविधा को बखूबी समझ गए और सभी को अपना ईमेल आईडी बताते हुए कहा कि आप लोगों को किसी भी प्रकार की समस्या हो या कुछ पूछना हो तो बेखटके मुझसे संपर्क कर सकते हैं। इसके बाद वे अपनी कार में बैठ कर कार्यक्रम स्थल से बाहर निकल गए। उनकी यह उदारता मेरे दिल को छू गई। क्योंकि आज जहां सामान्य लोग भी किसी को अपनी व्यक्तिगत जानकारी देने से कतराते हैं वहीं देश ही नहीं दुनिया में इतनी महत्वपूर्ण हैसियत रखने वाला शख्स खुद ही सार्वजनिक रूप से अपना ईमेल पता छात्रों को बता रहा था। जिससे किसी प्रकार की समस्या होने पर वे उनसे संपर्क कर सकें। बेशक ऐसा कोई महान व्यक्ति ही कर सकता था।
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।