जन संचार के सरोकारों पर केंद्रित "मीडिया विमर्श" का सितंबर अंक
जयप्रकाश मानस । मैं 'मीडिया विमर्श' के नवीनतम् अंक से गुज़र रहा था । मुझे लगा कि इस पर कुछ आपसे भी जरूर कहूं तो.....भोपाल से प्रकाशित (पहले रायपुर ) यह पत्रिका पत्रकारिता की गंभीर किस्म की अकादमिक पत्रिकाओं से एक और बेजोड़ लगती है । कई पत्रिकाएं हैं इस क्षेत्र की पर जिस गंभीरता और दृष्टि के साथ यह निरंतर निकल रही है - प्रभावित करती है ।
मीडिया विमर्श केवल प्रकाशन नहीं है । एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है जिसके लिए हताशा, निराशा और कमजोरियों के दौर में भी प्रतिष्ठित और नवागत लेखकों का तादात्मय यहां दिखाई देता है । जब मीडिया खुद कटघरे में हो तब मीडियाकरों की उक्तियों और सुक्तियों से विभ्रम पैदा होना स्वाभाविक है पर मीडिया विमर्श जिन पवित्र उद्देश्यों के साथ सतत् प्रकाशित हो रही है वह पत्रकारिता को मिशन बनानेवाली नवागत पीढ़ी के लिए एक आश्वस्ति जैसी भी है । इसमें कोई शक़ नहीं । मीडिया विमर्श किसी घराने की पत्रिका नहीं है । साहित्य की तरह मेरा-तेरा पंथवादी भी नहीं । यही इसकी ख़ासियत भी है । इसलिए यह न केवल पत्रकारिता के अनुयायियों बल्कि उसके उत्तराधिकारियों के लिए भी एक सामुहिक विश्वास की पत्रिका है । ऐसा इसके पिछले कई अंको (वर्ष-6, अंक 23) को देखने से प्रमाणित हो जाता है ।
हिंदी में ऐसी कम पत्रिकाएं है जो पत्रकारिता-गुरुओं के साथ पत्रकारिता के छात्रों की पाठकीयता समान रूप से अर्जित कर सकती हैं । मीडिया विमर्श इसमें सक्षम और समर्थ पत्रिका है । यूं तो यहां संपादक, प्रबंधक की जगह पर विश्वनाथ सचदेव, डॉ. परमात्मनाथ द्विवेदी, श्रीकांत सिंह, अष्टभुजा शुक्ल प्रभृति के नाम आकर्षण जगाते हैं किन्तु इसकी चमक को निरंतर बनाये रखने में समर्थ युवा पत्रकार रहे (अब माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि,भोपाल में अध्यापनरत) भाई संजय द्विवेदी की लगन, चयन, मेहनत और कार्ययोजना कारगर साबित होती रही है । उन्हें सच्ची बधाई ।
नया अंक (सितंबर-2012) 'नये समय में मीडिया' पर केंद्रित है । युवा पत्रकार विनीत उत्पल ने अतिथि संपादकत्व बोलता है । खूब बोलता है । नये मीडिया की गंभीर पड़ताल के लिए यह अंक निश्चिय ही कोट होता रहेगा । इस अंक में लगभग लेख गंभीर चयन के परिणामस्वरूप छपें है जो सोचने-विचारने को विवश करती हैं । नयी दिशाएं देती हैं । उदय प्रकाश, वर्तिका नंदा, आशीष कुमार अशु, अविनाश वाचस्पति, अफरोज साहिल, कृष्ण कुमार यादव, स्वतंत्र मिश्र, आर. अनुराधा, संजय कुमार, अजय ब्रह्रमात्मज, देवव्रत सिंह, अनीता भारती आदि ने पृथकृ-पृथक कोणों से समय और मीडिया का देखा-परखा है । मैं खुद अपने आलेख के साथ नये समय को नागरिक पत्रकारिता का प्रातःकाल मानता हूँ । देवेद्र राज अंकुर, एन.के.सिंह जैसे विशेषज्ञों से बाचतीत ज्ञान और अनुभव के कई धरातलों से जीड़ती है । संपादकीय परिवार पर पाठकों को विश्वास इस पत्रिका के अवलोकन-वाचन से निश्चित ही बढ़ेगा- ऐसा मेरा भी विश्वास है ।
पत्रिका- "मीडिया विमर्श"
संपादक- श्रीकांत सिंह
अतिथि संपादक -विनीत उत्पल
प्रति अंक - 50 रुपये
मूल्य- वार्षिक-400 रुपये
संपर्क- 428, रोहित नगर, फेज-1, भोपाल-482039, मो.-09893598888
जयप्रकाश मानस । मैं 'मीडिया विमर्श' के नवीनतम् अंक से गुज़र रहा था । मुझे लगा कि इस पर कुछ आपसे भी जरूर कहूं तो.....भोपाल से प्रकाशित (पहले रायपुर ) यह पत्रिका पत्रकारिता की गंभीर किस्म की अकादमिक पत्रिकाओं से एक और बेजोड़ लगती है । कई पत्रिकाएं हैं इस क्षेत्र की पर जिस गंभीरता और दृष्टि के साथ यह निरंतर निकल रही है - प्रभावित करती है ।
मीडिया विमर्श केवल प्रकाशन नहीं है । एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है जिसके लिए हताशा, निराशा और कमजोरियों के दौर में भी प्रतिष्ठित और नवागत लेखकों का तादात्मय यहां दिखाई देता है । जब मीडिया खुद कटघरे में हो तब मीडियाकरों की उक्तियों और सुक्तियों से विभ्रम पैदा होना स्वाभाविक है पर मीडिया विमर्श जिन पवित्र उद्देश्यों के साथ सतत् प्रकाशित हो रही है वह पत्रकारिता को मिशन बनानेवाली नवागत पीढ़ी के लिए एक आश्वस्ति जैसी भी है । इसमें कोई शक़ नहीं । मीडिया विमर्श किसी घराने की पत्रिका नहीं है । साहित्य की तरह मेरा-तेरा पंथवादी भी नहीं । यही इसकी ख़ासियत भी है । इसलिए यह न केवल पत्रकारिता के अनुयायियों बल्कि उसके उत्तराधिकारियों के लिए भी एक सामुहिक विश्वास की पत्रिका है । ऐसा इसके पिछले कई अंको (वर्ष-6, अंक 23) को देखने से प्रमाणित हो जाता है ।
हिंदी में ऐसी कम पत्रिकाएं है जो पत्रकारिता-गुरुओं के साथ पत्रकारिता के छात्रों की पाठकीयता समान रूप से अर्जित कर सकती हैं । मीडिया विमर्श इसमें सक्षम और समर्थ पत्रिका है । यूं तो यहां संपादक, प्रबंधक की जगह पर विश्वनाथ सचदेव, डॉ. परमात्मनाथ द्विवेदी, श्रीकांत सिंह, अष्टभुजा शुक्ल प्रभृति के नाम आकर्षण जगाते हैं किन्तु इसकी चमक को निरंतर बनाये रखने में समर्थ युवा पत्रकार रहे (अब माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि,भोपाल में अध्यापनरत) भाई संजय द्विवेदी की लगन, चयन, मेहनत और कार्ययोजना कारगर साबित होती रही है । उन्हें सच्ची बधाई ।
नया अंक (सितंबर-2012) 'नये समय में मीडिया' पर केंद्रित है । युवा पत्रकार विनीत उत्पल ने अतिथि संपादकत्व बोलता है । खूब बोलता है । नये मीडिया की गंभीर पड़ताल के लिए यह अंक निश्चिय ही कोट होता रहेगा । इस अंक में लगभग लेख गंभीर चयन के परिणामस्वरूप छपें है जो सोचने-विचारने को विवश करती हैं । नयी दिशाएं देती हैं । उदय प्रकाश, वर्तिका नंदा, आशीष कुमार अशु, अविनाश वाचस्पति, अफरोज साहिल, कृष्ण कुमार यादव, स्वतंत्र मिश्र, आर. अनुराधा, संजय कुमार, अजय ब्रह्रमात्मज, देवव्रत सिंह, अनीता भारती आदि ने पृथकृ-पृथक कोणों से समय और मीडिया का देखा-परखा है । मैं खुद अपने आलेख के साथ नये समय को नागरिक पत्रकारिता का प्रातःकाल मानता हूँ । देवेद्र राज अंकुर, एन.के.सिंह जैसे विशेषज्ञों से बाचतीत ज्ञान और अनुभव के कई धरातलों से जीड़ती है । संपादकीय परिवार पर पाठकों को विश्वास इस पत्रिका के अवलोकन-वाचन से निश्चित ही बढ़ेगा- ऐसा मेरा भी विश्वास है ।
पत्रिका- "मीडिया विमर्श"
संपादक- श्रीकांत सिंह
अतिथि संपादक -विनीत उत्पल
प्रति अंक - 50 रुपये
मूल्य- वार्षिक-400 रुपये
संपर्क- 428, रोहित नगर, फेज-1, भोपाल-482039, मो.-09893598888