मासिक पत्रिका ‘‘ साहित्य अमृत’’ इस बार मीडिया विशेषांक
संजय कुमार / नई दिल्ली से साहित्य एवं संस्कृति का संवाहक मासिक पत्रिका ‘‘ साहित्य अमृत’’ अपने प्रकाशन के 20 वर्ष पूरे होने पर मीडिया विशेषांक निकाल कर चर्चे में है। ‘साहित्य अमृत’ के मीडिया विशेषांक में मीडिया और साहित्य जगत के प्रमुख हस्ताक्षरों को जगह दी गयी है। मीडिया विशेषांक होने के बावजूद किसी खास मुद्दे को केन्द्र में न रख कर मीडिया के विभिन्न पहलूओं पर आलेख यहां हैं। संपादकीय में संपादक त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी ने ‘मीडिया के बदलते आयाम: कल से अब तक’ में विस्तार से पत्रकारिता के बदलते आयाम को रेखांकित किया है। शुरू और आज के आधुनिक पत्रकारिता के बदलाव की तस्वीर इसमें है। वहीं पत्रिका के संस्थापक संपादक स्व. पं. विद्यानिवास मिश्र का आलेख, साहित्य अमृत क्यों ? को प्रमुखता से जगह दी गयी है। साहित्य जगत में साहित्य अमृत के हस्तक्षेप के संदेश है को इसमें समेटा गया है। पत्रकारिता के योद्धा गणेश शंकर विद्यार्थी के आलेख ‘प्रताप की नीति’ को ससम्मान प्रकाशित किया गया है। इसमें गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप के प्रकाशन और नीति को बताया है। चर्चित पत्रकार कृष्ण बिहारी मिश्र के आलेख, ‘कलकत्ता-हिन्दी पत्रकारिता की जन्मभूमि’ में विस्तार से हिन्दी पत्रकारिता के शुरूआत को बताया गया है। एक एतिहासिक दस्तावेज के तौर पर यह आलेख है जिसमें उस दौर के साहित्यकार व पत्रकारों के विचारों को भी जगह दी गयी है। ‘ स्वातंत्योत्तर पत्रकारिता’ पर सूर्यकांत बाली का आलेख है। आजादी के बाद प्रिंट से टी.वी. और फिर सोशल मीडिया के हस्तक्षेप को इसमें उठाया गया है। अखबार-पत्रिकाओं के असर बनाये रखने के सवाल को उठाया है वहीं इनकी जगह तेजी से असर बनाने वाले न्यूज चैनल के प्रभाव को भी विमर्श के दायरे में लाने का प्रयास किया गया है। रजत शर्मा ने आलेख ‘चक्रव्यूह में घिरी टी.वी. पत्रकारिता’ में दावा किया है कि देश का माहौल बदला है और उसमें इस देश के पत्रकारों और टी.वी. चैनल्स ने एक बड़ा रोल अदा किया है। अपने आलेख में उन्होंने टी.वी. पत्रकारिता को एक मुहिम, एक आंदोलन बताया है। वहीं मीडिया में विज्ञापन के खेल को गिरिराज किशोर ने ‘विज्ञापन का तिलिस्म’ में रेखांकित किया है। हिन्दी पत्रकारिताः तब और अब पर विजयदत्त श्रीधर ने विस्तार से कलम चलाई है। पत्रकारिता के क्षेत्र में लघु पत्रिकाओं के योगदान को वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर ने आलेख ‘लघु पत्रिकाओं का विराट योगदान में समेटा है। आजादी की लड़ाई के दौरान लघु पत्रिकाओं की खास भूमिका पर लेखक ने जोर दिया है। विश्वनाथ सचदेव ने आलेख ‘जनतंत्र में पत्रकारिता’ में पत्रकारिता की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किये है। चर्चित पत्रकार रामबहादुर राय ने पेड न्यूज के बढ़ते प्रभाव को आलेख ‘पेड न्यूज के जंजाल में फंसी मीडिया’ में समेटते हुए सवाल उठाया है। खासकर चुनाव के दौरान इसके बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त किया गया है ओर इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है।
साहित्य अमृत ने अपने मीडिया विशेषांक में देश भर के जाने-माने 66 लेखक-पत्रकारों को एक मंच प्रदान किया है। मीडिया के विभिन्न मुद्दों को 244 पृष्ठों में समेटा गया है। इनमें प्रमुख हैं, ‘कलम का धर्म और’(तरूण विजय), ‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया पत्रकारिता’ (पुष्पेश पंत), ‘पत्रकारिता की विकास भूमि’( राममोहन पाठक), ‘मीडिया व्यग्रता का नहीं, समग्रता का परिचायक हो’(बृजकिशोर कुठियाला), ‘नकार और निषेध के दौर में हम’(शशि शेखर), ’इंदौर की पत्रकारिता’(श्रवण गर्ग), ‘पत्रकारिता की प्रांजल भाषा’(राहुल देव), ‘बाजार की भेंट चढ़ती’(हेमंत यशर्मा) सहित कई आलेख व नाम हैं। कुल मिला कर यह अंक संग्रहनीय है। मीडिया के क्षे़त्र में आने वाले छात्रों के लिए भी यह उपयोगी साबित हो सकता है। क्योंकि इसमें शामिल सभी आलेख पत्रकारिता की कल और आज की तस्वीर पेश करते हैं। इससे पत्रकारिता के विभिन्न पहलूओं को समझने में आसानी होगी।
पत्रिका: साहित्य अमृत
संपादक:त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी
अंक: मीडिया विशेषांक, अगस्त 2015
मूल्य: 125 रूपये
प्रकाशक: 4/11,आसफ अली रोड, नई दिल्ली-110002