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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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ग्लेशियरों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक

कालेज आफॅ कामर्स, आर्ट्स एण्ड साइंस में विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर संगोष्ठी का आयोजन

पटना/ विश्व जल दिवस के अवसर पर कालेज आफॅ कामर्स, आर्ट्स एण्ड साइंस पटना के भूगोल विभाग द्वारा शुक्रवार को " जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सतत विकास के लिए ग्लेशियरों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक " विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता पटना विश्वविद्यालय भूगो…

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पत्रकार उमेश उपाध्याय की स्मृति में 'मीडिया विमर्श' का अंक प्रकाशित

भोपाल। जनसंचार की चर्चित पत्रिका 'मीडिया विमर्श' का नया अंक वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्री उमेश उपाध्याय की पावन स्मृति को समर्पित है। उल्लेखनीय है कि श्री उपाध्याय का पिछले दिनों एक दुर्घटना में निधन हो गया था। …

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मैं मीडिया हूँ

प्रकाश नीरव / मैं मीडिया हूँ। मुझे चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन इन दिनों मेरी हालत वैसे हो गई है, जैसे गली का वो खंभा, जिस पर पोस्टर, विज्ञापन और कुत्तों की दया साथ-साथ लटकती रहती है। मेरी जिम्मेदारी थी सच्चाई बताना, मगर अब मैं सच्चाई को इतना सजा-धजा देता हूँ कि खुद सच्चाई भी मुझसे शर्मिंदा हो जाए।…

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पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है – ‘...लोगों का काम है कहना’

सुदर्शन व्यास/  ‘लोगों का काम है कहना...’ पुस्तक का आखिरी पन्ना पलटते समय संयोग से महात्मा गांधी का एक ध्येय वाक्य मन–मस्तिष्क में गूंज उठा – ‘कर्म ही पूजा है’। जब मैं इस किताब को पढ़ रहा था तो बार–बार महात्मा गांधी का ये वाक्य सहसा अंतर्गन में सफर कर रहा था। ये कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बापू के इस विचार को चरितार्थ उस शख्सियत ने किया है जिनके जीवनवृत्त पर ये पुस्तक लिखी गई है। प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी भारतीय मीडिया जगत में सुपरिचित और सुविख्यात नाम हैं। वरिष्ठ…

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तीन श्रेष्ठ कवियों की पत्रकारिता का आकलन

कृपाशंकर चौबे/ हिंदी के तमाम मूर्धन्य संपादक पत्रकारिता के किसी संस्थान या विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित नहीं थे। किंतु वे अपने आप में प्रशिक्षण संस्थान थे। वे पूरे के पूरे पाठ्यक्रम थे और वे ही प्रयोगशाला थे। उनके भीतर अपने समाज को देखने और समझने की अचूक दृष्टि थी। इसलिए पत्रकारिता के पश्चिमी सिद्धांतों को रटने से कहीं ज्यादा आवश्यक भारतीय समाज के भीतर पत्रकारिता के स्वाभाविक विकास को समझना है। उसे समझने के लिए संपादकों की कहानी को जानना जरूरी है। उसमें सिद्धांत भी है, तकन…

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लोकमंगल के संचारकर्ता हैं नारद

नारद जयंती(25 मई) पर विशेष

प्रो. संजय द्विवदी/    ब्रम्हर्षि नारद लोकमंगल के लिए संचार करने वाले देवता के रूप में हमारे सभी पौराणिक ग्रंथों में एक अनिवार्य उपस्थिति हैं। वे तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए जो कुछ करते और कहते हैं, वह इतिहास में दर्ज है। इसी के साथ उनकी गंभीर प्रस्तुति ‘नारद भक्ति सूक्ति’ में प्रकट होती है, जिसकी व्याख्या अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी की है। नारद जी की लोकछवि जैसी बनी और बनाई गई है, वे उससे सर्वथा …

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Movies often show corrupt politicians

Portrayal of political campaigns and elections in Indian films

Abhishek Sharma/ Indian films often depict the dark side of political campaigns and elections through the representation of political corruption and manipulation. Characters in these films are frequently portrayed as embodying corrupt politicians who engage in unethical practices to achieve their political goals. For instance, in the movie "Sarkar," the character of a corrupt Chief Minister resorts to illegal activities to maintai…

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मीडिया साहित्य की और रचनायेँ--

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सम्पादक

डॉ. लीना