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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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राजेश कुमार के "ट्रायल ऑफ एरर" लेकर आ रहे है महेश भट्ट

दो साल पहले उस वक्त पूरे राष्ट्र में एक लहर सी दौड़ गई जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर जूता फेंकने के मामले को मशहूर फिल्ममेकर महेश भट्ने स्टेज पर एक प्ले के ज़रिए जीवंत कर दिया। इस जूते को फेंके जाने के पीछे क्या वजह थीघ् क्या थे वो हालात जिसने मुंतज़ैर अल जै़दी को बुश पर जूता फेंकने के लिये मजबूर कर दिया,द लास्ट सैल्यू प्ले के रुप में इस घटना को पेश किया महेश भट्ट ने, जिसका हिस्सा पत्रकार मुंतज़र.अल.जैदी भी बने। जैदी वही पत्रकार हैं जिन्होंने बुश पर जूता फैंका था। लेकिन खुद उन्होंने भी नहीं सोचा था कि उस घटना को इतनी खूबसूरती के साथ पेश किया जाएगा। इस प्ले का जीवंत रुपांतरण ही था जिसने जैदी को भाव.विभोर कर दिया औऱ भट्ट के इस प्ले ने जैदी को अंदर तक झकझोर दिया। किसी ने अपने सपने में भी नहीं सोचा था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की इस घटना को भारत जैसे देश में रुपांतरित किया जाएगा।

ये पहली बार नहीं था जब महेश भट्ट ने इस तरह के मुद्दे को उठाया होए बल्कि समाज से जुड़े हुए मुद्दों को उन्होंने हमेशा सामने लाने की कोशिश की है। ज़ख्म और सारांश जैसी फिल्में बना चुके भट्ट ने अपनी फिल्मों के ज़रिए ना सिर्फ समाज की नब्ज़ को पकड़ा बल्कि उन मुद्दों को भी छूआ जो हम पर असर डालते हैं। हालांकि थियेटर भट्ट के लिए बिल्कुल नया मीडियम थाए लेकिन ऐसा भी नहीं था कि इसका अच्छा परिणाम उन्हें ना मिले।

लेकिन  द लास्ट सैल्यूट को मिली ज़बरदस्त सफलता और रिस्पॉन्स ने महेश भट्ट को इस बात पर यकीन करने के लिए मजबूर कर दिया कि थियेटर समाज में बदलाव लाने की ताकत रखता है और इस साल वह फिर वापसी कर रहे हैं एक नए प्ले, राजेश कुमार द्वारा  लिखित  "ट्रायल ऑफ एरर" के साथ और एक बार फिर से प्रॉमडॉम फिल्म के संदीप कपूर के साथ इस नाटक का निर्माण कर रहे हैं जिन्होने द लास्ट सल्यूट का भी निर्माण किया था। इस प्ले में उन मुस्लिम युवाओं की समस्या पर फोकस किया गया है जिन्हें आतंकवादी समझ लिया जाता है और फिर न्याय के लिए किस तरह उन मुस्लिम युवाओं को जूझना पड़ता है, किन हालातों का सामना करना पड़ता है  इन्हें इस प्ले के ज़रिए ज़ाहिर किया गया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे काफी समय से नज़रअंदाज़ किया गया लेकिन अंदर ही अंदर ये हमारे समाज को खोखला बनाता रहा। भट्ट वैसे तो समाज से जुड़े हर मुद्दे पर अपनी राय़ ज़ाहिर करते रहे हैंए लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है  जिस पर उन्होंने समय.समय पर अपनी आवाज़ बुलंद की है। राजेश कुमार ने द लास्ट सैल्यूट प्ले का नाट्य रूपांतर किया था ।

अक्सर देखा गया है कि जब भी देश में कोई बम ब्लास्ट होता हैए तो उस घटना की तह में जाए बिना ही मुस्लिम युवाओं पर शक पर उन्हें पकड़ लिया जाता है औऱ ब्लास्ट का ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है। बस आगे.पीछे देखे बिना ही उन्हें उठाकर सीधा जेल की चार.दीवारी में पिसने के लिए डाल दिया जाता है फिर वहां शुरु होता है उन्हें प्रताड़ित करने का कभी ना रूकने वाला सिलसिला। परिस्थति चाहे जो भी हो लेकिन इसका खामियाज़ा युवा पीढी को ही झेलना पड़ता है।

बहुत मुश्किल है उन युवाओं की मनरूस्थिति को समझनाए जिस वक्त उन्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिएए उसके लिए प्लानिंग करनी चाहिएए उस वक्त उन्हें बेड़ियों में बांधकर जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है।  अगर किस्मत अच्छी हैए तो शायद उन युवाओं में से किसी को आज़ादी नसीब हो जाएए लेकिन उसके बाद क्या ज़िंदगी तो तब भी बर्बाद है ना  नौकरी, समाज से तिरस्कार कभी ना खत्म होने वाली प्रताड़ना और साथ ही पुलिस और कानून के वो सवाल जो ज़िंदगी भर उसे पल.पल मरने के लिए मजबूर कर दें क्या यही है भारत का सबसे बड़ा सपना है।
 
लेकिन इसकी चिंता किसे है पर हमें है हमारा यह प्ले बेशक एक क्रांति ना ला पा लेकिन हमारे एक कदम से बदलाव तो आ सकता है। ट्रायल ऑफ एरर रेहान नाम के उस पत्रकार की ज़िंदगी की कहानी है जो देश के अल्पसंख्यक समाज के साथ हो रही घटनाओं और उनके पीछे की सच्चाई को सामने लाने की कोशिश करता हैए लेकिन अपनी खोज के दौरान वह पुलिस के जाल में फंस जाता हैए जिसे कदम.कदम पर ना सिर्फ यातनाएं सहनी पड़ती हैंए बल्कि उसे हर कदम पर दबाने की भी कोशिश की जाती है पर वो हार नहीं मानता और फिर किस तरह वो खुद को निर्दोष साबित करने के लिए सिस्टम के खिलाफ लड़ाई लड़ता हैए और आखिर में किस तरह सिस्टम उसे आतंकवादी साबित कर देता हैए यही इस प्ले में दिखाया गया है।

इस प्ले को डाएरेक्ट करेंगे नैशनल अवॉर्ड के विजेता प्लेराइटर वरयम मस्त। वरयम एक जाने.माने रंगमच कलाकार हैं जिन्होंने रंगमंच की शुरूआत 1947 में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच के जानी मानी हस्ती श्री बलवंत गार्गी के मार्गदर्शन में की। इस प्ले को राजेश कुमार ने लिखा है  जो द लास्ट सैल्यूट की भी पटकथा लिख चुके हैं। इस प्ले में बॉलीवुड ऐक्टर इमरान ज़ाहिद मुख्य भूमिका में नज़र आएंगे। इमरान इससे पहले भई द लास्ट सैल्यूट में मुंतज़र.अल.जैदी का किरदार निभा चुके हैं। जैदी के किरदार में इमरान के अभिनय को जमकर सराहा गया और मुंतज़र के किरदार को जीवंत बनाने वाले इमरान ने अपनी शानदार अभिनय की बदौलत मीडिया में भी खूब सुर्खियां बटोरीं। द ट्रायल ऑफ एरर का मंचन 29 मार्च 2013 को श्रीराम सेंटरए मंडी हाउस में किया जाएगा। इसके अलावा यह प्ले मुंबई, कोलकाता लखनऊ, चंडीगढ, पटना, रांची, अलीगढ, श्रीनगर, हैदराबाद, बैंगलुरु, जम्मू, पुणे और दुबई में भी मंचित किया  जाएगा।

 

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना