केवल मोदी बनाम राहुल का नाम लेकर गोदी मीडिया के टर्म को reduce नहीं कर सकते हैं
रविश कुमार/ इन दिनों कई पत्रकार गोदी मीडिया के टर्म को खारिज करने में लगे हैं,क्योंकि…
केवल मोदी बनाम राहुल का नाम लेकर गोदी मीडिया के टर्म को reduce नहीं कर सकते हैं
रविश कुमार/ इन दिनों कई पत्रकार गोदी मीडिया के टर्म को खारिज करने में लगे हैं,क्योंकि…
विनीत कुमार / आज दि इंडियन एक्सप्रेस ने मुख्य पृष्ठ पर वरिष्ठ पत्रकार कोमी कपूर का संस्मरण प्रकाशित किया है. आज से 50 साल पहले जो आपाकाल लागू किया है, तब क्या स्थिति रही ? कपूर ने इसी आपातकाल पर “Emergency” शीर्षक से पूरी किताब भी लिखी है जिसे लेकर पिछले दिनों बनी फ़िल्म में ठी…
लेकिन मुझे हर वक़्त एक संपादक का साथ चाहिए
विनीत कुमार/ संपादक जैसी अब कोई संस्था बची नहीं है. संपादक अब सब मैनेजर हो गए हैं. मार्केटिंगवालों के आगे संपादक की चलती कहां है ? सेल्फ पब्लिशिंग के दौर में संपादक क…
अखिलेश कुमार/ आमलोगों के बीच हकीकत बयां करने का माध्यम पहले समाचारपत्र तथा रेडियो और बाद के दिनों में टेलीविजन रहा है। जबकि हाल के वर्षों में सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ा और अभिव्यक्ति की आजादी के साथ सुचनाओं के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम भी साबित हुआ है। …
विनीत कुमार/ न्यूजरूम का जो हाल मीडियाकर्मियों ने बना दिया है, एक संवेदनशील, तार्किक और समझदार व्यक्ति या तो यहां लंबे समय तक टिक नहीं सकता और यदि टिका रह गया तो उसके मानसिक स्वास्थ्य का जर्जर होना तय है.…
उर्मिलेश/ न्यूज़ चैनलों ने अपने स्टूडियो में ‘वार-रूम’ बनायें है. शायद ‘वार’ भी चाहते होंगे! टीआरपी उछलेगी तो कमाई भी! इनके चलाने वाले जानते हैं कि आज के दौर में हर युद्ध मनुष्यता के हितों की क़ीमत पर होता है! पर इनके 'कवरेज' में सिर्फ युद्धोन्माद नजर आता है, समझ और विवेक सिरे से गाय…
विनीत कुमार/ पहले एनडीटीवी और फिर बाद में सीएनएन-आईबीएन पर जब मैं राजदीप सरदेसाई को एंकरिंग करते देखा करता तो बहुत संभव है कि सौरभ( सौरभ द्विवेदी ) भी देखा करते होंगे और मेरी तरह सोचते होंगे कि एक दिन मुझे भी टीवी पर दिखना है.…
यहां लिखने और दिखाने को बहुत कुछ है! थोड़ी कोशिश तो कीजिये!
उर्मिलेश/ टीवीपुरम् के एंकर-रिपोर्टर अब ‘युद्ध-युद्ध’ खेल रहे हैं! एंकर स्टूडियो से और रिपोर्टर सरहदी गाँवों-क़स्बों से! कल देखा,…
उर्मिलेश/ राष्ट्रीय राजनीति हो या देश का कोई भी बड़ा घटनाक्रम; उसके बारे में देश के टीवी चैनल जिस तरह की खबरों का प्रसारण करते हैं या उन पर चर्चा कराते हैं; उसका जमीनी सच से वास्ता नहीं होता! सच को इस तरह तोड-मरोड और विकृत करके वे पेश करते हैं कि सुनने और देखने वालों के दिमाग में सरक…
शकील अख्तर/ कुछ खबरें हमारे मेन मीडिया से बिल्कुल गायब हैं।
एक, कल पहलगाम, श्रीनगर और घाटी के कई इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन हुए। अस्पतालों में घायलों को खून देने के लिए स्थानीय लोगों की ला…
दोनों भाषाओं में वो क्या कर रहे हैं, ये देखना बेहद दिलचस्प
राकेश/ जिन बड़े समूहों के `मीडिया प्रोडक्ट’ हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हैं, वो क्या कर रहे हैं, ये देखना बेहद दिलचस्प है। इन सम…
अमेरिकी- भारतीय मीडिया और प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा
मनोज अभिज्ञान/ अमेरिका के प्रतिष्ठित समाचार पत्र 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा को …
कुम्भ हादसा
पंकज श्रीवास्तव/ कुम्भ में तमाम श्रद्धालुओं की जान लेने वाले हादसे का एक कारण मीडया की आज़ादी पर लगी पाबंदी भी है। मुख्यधारा के टीवी चैनल और अख़बार इतज़ाम को लेकर मोदी-योगी की वाह-वाही में लगे रहे जबकि संगम पहुँचने के लिए जनता बेहद पर…
पुष्पराज शांता शास्त्री / माननीय श्री --- जी,
शायद मुझसे आप अनजान हों। अनजान को पत्र भेजकर संवाद स्थापित करने की प्राचीन परंपरा रही है।भारतीय पत्रकारिता में हाल के वर्षों में यह परंपरा मृत हो गई है।किन्हीं के घर का पता नहीं म…
शिशिर सोनी/ तीन दिनों के भीतर सुरेश चंद्राकर को हैदराबाद से छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उस पर बस्तर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर के मर्डर का आरोप है। मुकेश की कुल्हाड़ी से काट कर सिहरा देने वाली हत्या कर दी गई थी। तीन आरोपी पहले गिरफ्तारी के गिरफ़्त में हैं। चौथा और मुख्य आरो…
औरंगाबाद में पत्रकारिता भाग- 2
प्रेमेन्द्र/ पिछले भाग में मैने पत्रकारों की उस पीढ़ी का जिक्र किया था जो 70 के दशक से 80 के दशक तक सक्रिय थी। इनमें नौ लाख सिंह, अनिरुद्ध सिंह, नीलम बाबू, उदय सिंह, त्रिभुवन सिंह, लल्लू सिंह, जग…
भाग 1
प्रेमेन्द्र/ आज कल प्रेस क्लब की चर्चा कुछ ज्यादा ही हो रही है. आइये मैं आपको ले चलता हूँ औरंगाबाद में पत्रकारिता के इतिहास की तरफ-…
उर्मिलेश/ हमारे समाज में मीडिया का कारपोरेट तंत्र फल-फूल रहा है पर पत्रकारिता गहरे संकट में है. असल में पत्रकारिता प्रोफेशनल और ऑब्जेक्टिव होकर ही की जा सकती है. मौजूदा मीडिया उद्योग को प्रोफेशनलिज्म और ऑब्जेक्टिविटी हरगिज मंजूर नहीं!…
शकील अख्तर / मीडिया पूरी तरह अनुशासित हो गया है।
पहले चित्र में पिंजरे में बंद चुप!
दूसरे चित्र में उसके बाद लोकसभा अध्यक्ष को चुपचाप सुनता हुआ!…
विनीत कुमार/ नब्बे के दशक में जब निजी टेलिविजन कार्यक्रमों और बाद में चैनलों की लोकप्रियता के साथ-साथ उसकी विश्वसनीयता बढ़ी तो दूसरी तरफ पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग की साख कम हुई. एक समय ऐसा भी आया कि रॉयटर जैसी एजेंसी ने जब इसे लेकर सर्वे किया तो दूरदर्शन से कहीं ज़्यादा आजतक को विश्वस…
डॉ. लीना