अरुण आजीवक/ बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने कहा था 'समाज की प्रगति उस समाज के महिलाओं की प्रगति से मापना चाहिए।' इसी तर्ज पर यह भी कहा जा सकता है कि समाज की मजबूती उस समाज के साहित्य से भी तय होती है।…
Blog posts : "साहित्य "
विमल थोराट और दो दलित स्त्रियों का चिंतन
कैलाश दहिया/ 'दलित वैचारिकी और हाशिए का समाज' विषय पर प्रगतिशील लेखक संघ, उत्तर प्रदेश ने 11 जनवरी, 2021 को फेसबुक के माध्यम से एक परिचर्चा का आयोजन किया था। इस का संचालन आधे-अधूरे दलित आर.डी. आनंद ने किया। इस बातचीत में जो लोग शामिल हुए उन का दलित वैचारिकी से दूर-दूर तक किसी तरह…
धर्मांतरण का अर्थ है दलितों में विभाजन
कैलाश दहिया/ दलित इतिहास में धर्मांतरण एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है। दिनांक 14 अक्टूबर, 1956 के दिन बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में धर्मांतरित हो गए थे, जिन में अधिकांश महार जाति के लोग ही थे। तभी से नवबौद्धों में यह दिन विशेष महत्व क…
खबरों का घोटाला !
कृष्णेन्द्र राय//
खबर है दिलचस्प ।
खबरों का घोटाला ।।
नजर लगी है तेज ।
लगाओ टीका काला ।।
खबर है पधारी …
नोचकारिता के सिपाही
सरस्वती रमेश //
नोचकारिता के सिपाही हैं ये
बिकाऊ -चलताऊ खबरों पर
गिद्ध दृष्टि रखने और
चील सा झपट्टा मारने…
खबरों की भीड़ में ....!!
तारकेश कुमार ओझा //
खबरों की भीड़ में ,
राजनेताओं का रोग है .
अभिनेताओं के टवीट्स हैं .
अभिनेत्रियों का फरेब है .
…जनता का अख़बार कौन निकालेगा
मनोज कुमार झा //
विज्ञापन ख़बरों की तरह
और ख़बरें विज्ञापनों की तरह
अख़बार में देश-दुनिया का हाल
कुछ इसी तरह…
क्या है हमारी खबरों में
रश्मि रंजन//
सोचती हूँ.......
क्या है हमारे विचारों में
क्या है हमारे शब्दों में
क्या है हमारी खबरों में
धर्म/ जाति/ पैसा....…
कोविड से किताबों को खतरा
प्रमोद रंजन / कोविड : 19 ने किताबों के बाजार को गहरा धक्का पहुंचाया है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर 2019 में किताबों का बाजार $ 92.8 बिलियन डालर का था | 2020 में इसके घटकर $ 75.9 बिलियन डालर रह जाने की उम्मीद है।…
सच जानने के हमारे अधिकार को किस एक्ट के तहत बाधित किया गया है?
.... ये वही मीडिया संस्थान थे, जिन्होंने डब्लूएचओ द्वारा दी गई मानवाधिकारों का ख्याल रखने की सलाह को प्रकाशित करने से परहेज किया था...…
मक्खलि गोसाल और उन का आजीवक चिंतन
कैलाश दहिया/ दलितों में आज महान मक्खलि गोसाल को ले कर जिज्ञासा पैदा हो गई है। ये जानना चाहते हैं मक्खलि गोसाल कौन थे? क्या वे सही में दलित चिंतक थे? उन का आजीवक धर्म क्या था और उस के सिद्धांत क्या थे? कुछ दलित तो गोसाल के दलित होने पर ही सवाल उठाते हैं। उधर, गोसाल पर लिखने वाले प…
साहित्यकार कोश हो रहा तैयार
मातृभाषा ने उठाया हिंदी का सबसे बड़ा साहित्यकार कोश बनाने का बीड़ा, भारत में रहने वाले रचनाकार अपना या अपने शहर के साहित्यकारों, कवियों, लेखकों आदि का परिचय प्रेषित कर सकते हैं…
जनता बेख़बर है
हिंदी के सभी प्रमुख दैनिक अख़बारों के मुख पृष्ठ ढके हैं .......
चंद्रेश्वर //
बीत रही जो तिथि वो तेईस जनवरी है
दो हज़ार बीस की …
रिश्तों का अजायबघर है हिन्दी फिल्म 'दे दे प्यार दे'
संतोष कुमार / भारतीय परंपरा से इतर ब्राह्मण की परंपरा में रिश्तों के कोई मायने नहीं होते, यह हमें कामसूत्र और वेद-पुराण के अध्ययन से ज्ञात होता है। इसी भावना से प्रेरित हो ब्राह्मण लेखक अपनी कहानी गढ़ता है। कामसूत्री परंपरा(जारमय) के कड़ी के रूप में 'दे दे प्यार दे' फिल्म तिरोहित…
आधुनिक मीडिया
अविनाश कुमार//
वक्तव्यों की स्वातंत्र मीडिया
जब कर्तव्यों पर कुभलांती है,
आपातकाल और सेंसरशीप में
इसकी गरिमा धुंधलाती है,…
एक बार फिर नए सिरे से सुर्खियां
मी टू की होली...!!
तारकेश कुमार ओझा/ अरसे बाद अभिनेता नाना पाटेकर बनाम गुमनाम सी हो चुकी अभिनेत्री तनुश्री दत्ता प्रकरण को एक बार फिर नए सिरे से सुर्खियां बनते देख मैं हैरान था। क्योंकि भोजन के समय रोज टेलीविजन के सामने बैठने पर आज की मी टू से जुड़ी…
पत्रकार
अविनाश कुमार //
ये कौन पत्रकार है, ये कौन पत्रकार
जिसका पथ है त्याग का ,
सत्य का परमार्थ का,
पीर परमहंस सा, …
"संतो, बोले तो जग मारै'
कैलाश दहिया / प्रेम कुमार मणि के प्रक्षिप्त लेखन से शुरू हुई बात इनके द्वारा धमकी के रूप में सामने आई है। खैर, आगे बात की जाए। …
क्योंकि पेशे से हम पत्रकार हैं!!
मनिष कुमार//
समय के अभाव से गुस्साते परिवार-रिश्तेदार हैं
साथ ही ना अच्छा घर ना कार है
क्योंकि पेशे से हम पत्रकार हैं!…
सोशल मिडिया वाले देश को बचा लें
गुलाम कुन्दनम//
मुज्जफरनगर फिर धधक उठा,
काशगंज मुज्जफरनगर बन रहा,
जो बीज सत्ता के खातिर बोए गये थे
आज वही रक्तबीज बन रहा।…