सुरेश हिंदुस्थानी/ राष्ट्रवाद सदैव से चर्चा एवं आकर्षण का विषय रहा है। आज के परिदृश्य में तो यह और अधिक चर्चित है। सब जानना चाहते हैं कि आखिर राष्ट्रवाद क्या है? राष्ट्रवाद पर इतनी बहस क्यों होती है? क्यों कुछ लोग राष्ट्रवाद का विरोध करते हैं? राष्ट्रवाद और मीडिया के…
Blog posts : "पुस्तक समीक्षा"
‘राष्ट्रवाद और मीडिया’ पर स्पष्ट दृष्टिकोण पैदा करती पुस्तक
"पैसा ही पैसा" जीवन की सच्चाई के करीब
संजय कुमार /पुस्तक चर्चा/ पैसा ही पैसा माधुरी सिन्हा की सद्यः प्रकाशित पुस्तक है जिसे पटना के प्रकाशक नोवेल्टी एंड कंपनी में प्रकाशित किया है. जैसा कि पुस्तक का शीर्षक है ‘पैसा ही पैसा’ तो यह एक ऐसे गरीब बच्चे की कहानी है इसका जीवन गरीबी में व्यतीत हुआ. माधुरी…
अच्छी तरह से जानते हैं हत्यारे
अरविंद भारती की किताब “वे लुटेरे हैं
शहंशाह आलम/ यह विदा कहने का वक़्त है।
इसलिए हे राजन, आप चौंके अथवा चीहुँकें अथवा विस्मय में न पड़ें।…
ढाई हजार वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध ने पर्यावरण सुरक्षा का मर्म समझा
लेखक-पत्रकार डॉ ध्रुव कुमार की पुस्तक "बौद्ध धर्म और पर्यावरण "
संजय कुमार/ वर्तमान दौर में पर्यावरण के समक्ष संकट और ग्लोबल वार्मिंग से पूरी दुनिया चिंतित है । अनेक देशों में बढ…
एक पत्रकार के रिपोर्ताजों का कोलाज
जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती है डॉ. दीनानाथ साहनी की पुस्तक ‘तीसरी बस्ती’
संजय कुमार/ पुस्तक समीक्षा/ डॉ. दीनानाथ साहनी लम्बे समय से पत्रकारिता से जुड़े ह…
दलित साहित्य आंदोलन का दस्तावेज
कैलाश दहिया / पुस्तक समीक्षा / 'समकालीन हिंदी दलित साहित्य : एक विचार-विमर्श' नाम से वरिष्ठ लेखक सूरजपाल चौहान के समय- समय पर पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेखों- आलेखों का संग्रह है। किताब की भूमिका में लेखक ने लिखा है, 'इनका महत्त्व मुझे तब ज्ञात हुआ जब देश …
‘आरटीआई से पत्रकारिता' की विधि सिखाती एक पुस्तक
लोकेन्द्र सिंह/ भारत में सूचना का अधिकार, अधिनियम-2005 (आरटीआई) लंबे संघर्ष के बाद जरूर लागू हुआ है, किंतु आज यह अधिकार शासन-प्रशासन व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जहाँ सूचनाओं को फाइल पर लालफीता बांध कर दबाने की प्रवृत्ति रही हो, वहाँ अब साधा…
स्त्री चेतना को जगाती कविताएं
एम अफसर खान 'सागर'/ सुहैल मेरे दोस्त उषा राय की पहली कविता संग्रह है। कुल चौव्वालीस (44) कविताओं का यह संग्रह स्त्री जीवन के विभिन्न रूपों को दर्शाती है, जिसमें करुणा, आक्रोश, ममता, दया और यथार्थ शामिल है। इसके साथ इस संग्रह में सामाजिक, पारिवारिक विद्रूपताओं के सरोकार भी प…
समाज से सवाल करता ‘बीमार मानस का गेह’
संजय कुमार/ अपने तेवर को लेकर चर्चित कवि-आलोचक मुसाफिर बैठा अपनी सद्यः प्रकाशित काव्य संग्रह ‘बीमार मानस का गेह’ से चर्चे में है। रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित ‘बीमार मानस का गेह’ में 38 बेहतरीन कविताओं को चार खंडों में बांटा गया है। प्रसिद्ध हिंदी आलोचक खगेन्द्र ठाकुर ने भूमिक…
राष्ट्रवाद से जुड़े विमर्शों को रेखांकित करती एक किताब
पुस्तक के संपादक हैं पत्रकार प्रो. संजय द्विवेदी
लोकेन्द्र सिंह/ देश में राष्ट्रवाद से जुड़ी बहस इन दिनों चरम पर है। राष्ट्रवाद की स्वीकार्यता बढ़ी है। उसके प्रति लोगों की समझ बढ़ी है। राष्ट्…
सजग पत्रकार की दृष्टि में मोदी-युग
रमेश नैयर/ पुस्तक ‘मोदी युग’ का शीर्षक देखकर प्रथम दृष्टया लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्तुति में धड़ाधड़ प्रकाशित हो रही पुस्तकों में एक कड़ी और जुड़ गई। अल्पजीवी पत्र-पत्रिकाओं के लेखों के साथ ही एक के बाद एक सामने आ रही पुस्तकों में मोदी सरकार की जो अखंड वंदना चल रही है, वो अब…
सामाजिक प्रतिबद्धताओं से सजा व्यंग्य संग्रह: शोरूम में जननायक
एम. एम. चन्द्रा/ अनूप मणि त्रिपाठी का पहला व्यंग्य संग्रह “शोरूम में जननायक” में लगभग तीन दर्जन व्यंग्य है. व्यंग्य संग्रह में भूमिका नहीं है, सुधी पाठक इससे अंदाज लगा सकते है कि नव लेखन के सामने आने वाली चुनौतियां कम नहीं होती. पुस्तक में भूमिका का न होना एक तरह अच्छा ही हुआ ह…
इतिहासबोध से वर्तमान विसंगतियों पर प्रहार
सागर मंथन चालू है
समीक्षक: एम् एम् चन्द्रा/ व्यंग्य की दुनिया में चार पीढ़ी एक साथ सक्रिय है. यह व्यंग्य क्षेत्र के लिए शुभ संकेत है. मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात का खंडन करता हूँ कि व्यंग्य के लिए यह समय अन्धकार का समय है या चरणवं…
कल्लू मामा जिंदाबाद
समीक्षक - आरिफा एविस / सोशल मीडिया पर एक चरित्र “कल्लू मामा” रोज आता है बिंदास किसी की परवाह किये बिना लिखता है तब मैंने इस कल्लू मामा को समझने की कोशिश की .... हालाँकि मैंने आज तक इनको न देखा है न सुना बस फेसबुक पर ही पढ़ा है.....तब मैंने व्यंग्यकार सुभास चंदर का …
बिहारी राजनीति की सेक्स यात्रा
रमणिका गुप्ता की आत्मकथा “आपहुदरी” पटना के पत्रकार वीरेंद्र कुमार यादव की नजर से
हिन्दी की लेखिका और बिहार विधान मंडल की पूर्व सदस्य रमणिका गुप्ता की अपनी संघर…
समय की निराशा को दूर करने और मनुष्य की शून्यता को भरने की ज़िद
'रेत पर लिखी इबारतें (जाबिर हुसेन का रचना-कर्म) और 'कोलाहल में शब्दों की लय' (जाबिर हुसेन की क़लम) पुस्तकों की समीक्षा
…जहाँ शब्द कभी बासी नहीं होते
कविता संग्रह- 'राजधानी में एक उज़बेक लड़की' की समीक्षा
समीक्षक- शहंशाह आलम/ कविता सड़ रहे समय के सबसे अधिक विरुद्ध रहती है। यह किसी भी कवि-समय के लिए सुखद होता है, जब उस कवि की कवि…
भावों की एक सच्ची अभिव्यक्ति
मैं भारत हूँ’ युवा पत्रकार और लेखक लोकेन्द्र सिंह की प्रथम काव्यकृति है
गिरिजा कुलश्रेष्ठ। ‘मैं भारत हूँ’ युवा पत्रकार और लेखक लोकेन्द्र सि…
दीनदयाल जी की याद दिलाती एक किताब
लोकेन्द्र सिंह/ भारतीय जनता पार्टी के प्रति समाज में जो कुछ भी आदर का भाव है और अन्य राजनीतिक दलों से भाजपा जिस तरह अलग दिखती है, उसके पीछे महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तपस्या है। दीनदयालजी के व्यक्तित्व, चिंतन, त्याग और तप का ही प्रतिफल है कि आज भारतीय जनता पार्ट…
दलितों के खाद्य जीवन को रेखांकित करता:‘अन्न हे अपूर्णब्रह्म’
एक ऐसा दस्तावेज जो वर्ण,जाति व धार्मिक व्यवस्था की पोल खोलता दिखता है और उनके खान-पान को रेखांकित करता है
पुस्तक समीक्षा / सं…