तनवीर जाफ़री/ 'बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा' , हमारे देश में तमाम चतुर,चालाक,स्वार्थी व निठल्ले क़िस्म के लोगों ने शोहरत पाने का यही शॉर्ट कट रास्ता अपनाया हुआ है। विवादों का शोहरत से हमेशा ही गहरा नाता भी रहा है। जो भी व्यक्ति अथवा विषय विवादित तरीक़े से मीडिया द्वारा प्रचारि…
Blog posts : "मुद्दा "
'पूछता है भारत': क्या देश को चाहिए ऐसी ही पत्रकारिता?
जब मीडिया सरकार चुन ले तो जनता को अख़बार चलाना पड़ता है
रवीश कुमार। किसान आंदोलन के बीच एक अख़बार निकलने लगा है। इस अख़बार का नाम है ट्राली टाइम्स। पंजाबी और हिन्दी में है। जिन किसानों को लगा था कि अख़बारों और चैनलों में काम करने वाले पत्रकार उनके गाँव घरों के हैं, उन्हें अहसास हो गया कि यह धोखा था। गाँव घर से आए पत्रकार अब सरकार के …
मीडिया के प्रति अविश्वास बढ़ाता 'फ़ेक न्यूज़' का बढ़ता चलन
तनवीर जाफ़री/ मीडिया देश व समाज के सभी वर्गों व अंगों को एक दूसरे से बाख़बर करने का दायित्व निभाता आ रहा है। जन मानस मीडिया द्वारा प्रकाशित /प्रसारित ख़बरों पर न केवल विश्वास करता है बल्कि इसके माध्यम से सामने आने वाले विषयों व मुद्दों को बहस,चर्चा व जानकारी का सशक्त ज़रीया भी समझत…
सिटिज़न जर्नलिज़्म: प्रोत्साहन के साथ-साथ प्रशिक्षण भी जरुरी
चुनौतियों के बावजूद नागरिक पत्रकारिता में असीम संभावना है
डॉ. पवन सिंह मलिक/ सिटिज़न जर्नलिज़्म शब्द जिसे हम नागरिक पत्रकारिता भी कहते है आज आम आदमी की आवाज़ बन गया है। यह समा…
दोष रेटिंग पर डालकर फिर से प्रोपेगैंडा चालू!
रवीश कुमार। रेटिंग को लेकर जो बहस चल रही है उसमें उछल-कूद से भाग न लें। ग़ौर से सुनें और देखें कि कौन क्या कह रहा है। जिन पर फेक न्यूज़ और नफ़रत फैलाने का आरोप है वही बयान जारी कर रहे हैं कि इसकी इजाज़त नहीं देंगे। रही बात रेटिंग एजेंसी की रेटिंग को 12 हफ्ते के लिए स्थगित करने की…
लोकमंगल की पत्रकारिता और वर्तमान चुनौतियां
मनोज कुमार/ अपने जन्म से लेकर अब तक की पत्रकारिता लोकमंगल की पत्रकारिता रही है। लोकमंगल की पत्रकारिता की चर्चा जब करते हैं तो यह बात शीशे की तरह साफ होती है कि हम समाज के हितों के लिए लिखने और बोलने की बात करते हैं। लोकमंगल के वृहत्तर दायित्व के कारण ही पत्रकारिता को समाज का चौथा स…
टीआरपी: मीडिया की साख पर आंच
डॉ. पवन सिंह मलिक/ चौबीस घंटे सबकी खबरें देने वाले टीवी न्यूज़ चैनल अगर खुद ही ख़बरों में आ जाए, तो इससे बड़ी हैरानी व अचंभित करने वाली ख़बर क्या होगी। परंतु पिछले कुछ घंटो में ऐसा ही नज़ारा टीवी पर हम सब देख रहे है। पर ये तो सीधा-सीधा उन करोड़ों दर्शकों की आस्था के साथ धोखा है, …
पत्रकार कर रहे खबर का एजेंडा तय!
क्या बिना किसी तथ्य के बिहार में खबरें चल रही हैं? क्या कुछेक पत्रकार मिलकर कर रहे हैं खबर का एजेंडा तय ? पटना निवासी वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने अपने फेसबुक पर आज ही यह पोस्ट लगाई है। वे कहते हैं - बहुत बुरा हाल है फिर भी कोशिश जारी है। …
गला फाड़ पत्रकारिता
टी आर पी की ख़ातिर 'जमूरा' कुछ भी करेगा !
निर्मल रानी/ जिस तरह भारतीय राजनीति इस समय देश के राजनैतिक इतिहास के सबसे संक्रमण कालीन दौर से गुज़र रही है ठीक उसी तरह भारतीय मीडिया भी घोर संक्रमण काल से रूबरू है। टेलीविज़न के शुर…
ब्रेकिंग न्यूज के दौर में हिन्दी पर ब्रेक
शहर से इन अखबारों को मोहब्बत नहीं, सिटी उन्हें भाता है!
मनोज कुमार/ ब्रेकिंग न्यूज के दौर में हिन्दी के चलन पर ब्रेक लग गया है. आप हिन्दी के हिमायती हों और हिन्दी को प्रतिष्ठापित करने के लिए हि…
न्याय के नाम पर क्या कर रहे हैं चैनल
मीडिया आत्महत्या भी कर रहा है, कई चीज़ों की हत्या भी
विनीत कुमार। इस तस्वीर से हम सबको डरना चाहिए. सारी बातों को पीछे रखकर सोचना चाहिए कि साल 2005 में गड्ढे में गिर गए छोटे प्रिंस को बचाने के ल…
तो क्यों न मैन पावर ही घटा लें?
अखबारों में छंटनी क्या कम कमाई के कारण है?
पुष्य मित्र। अखबारों में कर्मियों की छटनी जरूर हो रही है, मगर यह कहना गलत है कि कोरोना काल में अखबारों की आय घटी है। अखबारों की प्रसार संख्या जरूर घटी है, मगर अखबार…
ये टीवी चैनल हैं या ‘मूरख-बक्से’ ?
हमारे टीवी चैनल लगभग पगला गए हैं
डॉ. वेदप्रताप वैदिक/ जब मैं अपने पीएच.डी. शोधकार्य के लिए कोलंबिया युनिवर्सिटी गया तो पहली बार न्यूयार्क में मैंने टीवी देखा। मैंने मेरे पास बैठी अमेरिकी महिला से पूछा कि यह क्या ह…
सुशांत के केस पर औसतन 500 स्टोरी!
आधारहीन है पुलिस उप महानिरीक्षक (मानवाधिकार) का पत्र
बिना आरएनआई या पीआईबी के पोर्टल अवैध कैसे, जब इनके द्वारा किसी साइट को मान्यता देने का अब तक कोई प्रावधान ही नहीं है ?…
भारतीय लोकतंत्र के ढहते स्तंभ !
कहीं नहीं लग रहा है कि इस लोकतंत्र में पत्रकारिता और उसके कर्णधार किसी भी दृष्टिकोण से लोकतंत्र के 'कथित चौथे स्तंभ ' अब रह गये हैं ! …
सहकर्मी की मौत पर पत्रकार बिरादरी की चुप्पी
अभिमन्यु कुमार/ पटना की पत्रकार बिरादरी को खुद को मुर्दा घोषित कर देना चाहिए. उनकी चुप्पी यह दर्शाती है कि वो अपना जमीर बेच चुके हैं. उनके सहकर्मी की मौत संस्थान की प्रताड़ना की वजह से हो जाती है और उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकलता. रोज हज़ारों शब्द लिखने वाले पत्रकारों …
पीटीआई को सरकारी धमकी
डॉ. वेदप्रताप वैदिक/ प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) देश की सबसे पुरानी और सबसे प्रामाणिक समाचार समिति है। मैं दस वर्ष तक इसकी हिंदी शाखा ‘पीटीआई—भाषा’ का संस्थापक संपादक रहा हूं। उस दौरान चार प्रधानमंत्री रहे लेकिन किसी नेता या अफसर की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह फोन क…
यही तो है टी वी चैनल्स की 'गिद्ध पत्रकारिता'
निर्मल रानी/ हालांकि गत 28 मई को सुप्रीम कोर्ट में लॉकडाउन के कारण देशभर में फंसे मज़दूरों की दुर्दशा पर सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि कुछ ‘क़यामत के पैग़ंबर’ हैं जो नकारात्मकता फैलाते रहते हैं. उन्होंने ये भी कहा था कि “सोफ़े में…
भारत में लॉकडाउन और पत्रकारिता
प्रमोद रंजन/ लॉकडाउन में नागरिकों के दमन की ख़बरें सबसे ज्यादा केन्या व अन्य अफ्रीकी देशों से आई थीं। उस समय ऐसा लगा था कि भारत का हाल बुरा अवश्य है लेकिन उन गरीब देशों की तुलना में हमारे लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं। हमें उम्मीद थी कि हमारी सिविल सोसाइटी, जो कम से कम हमारे शहरों…