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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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Blog posts : "मुद्दा "

बहुजन मीडिया की जरूरत, आखिर क्यों ?

संजीव खुदशाह/ मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ। लेकिन मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहलाने के लिए उसका लोकतांत्रिक, विविधता पूर्ण, सोशल बैलेंस से लैस होना चाहिए। लेकिन भारतीय मीडिया किसी राजतंत्र की तरह सिर्फ सवर्णों द्वारा संचालित …

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संभावनाओं भरा है हिंदी पत्रकारिता का भविष्य

30 मई 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' पर विशेष

डॉ. पवन सिंह मलिक/ 30 मई 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' देश के लिए एक गौरव का दिन है। आज विश्व में हिंदी के बढ़ते वर्चस्व व सम्मान में हिंदी पत्रकारिता का विशेष योगदान है। हिंदी पत्रक…

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पत्रकारिता दिवस का मान बढ़ाया भोपाल-इंदौर ने

30 मई 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' पर विशेष

मनोज कुमार/ एक पत्रकार के लिए आत्मसम्मान सबसे बड़ी पूंजी होती है और जब किसी पत्रकार को अपनी यह पूंजी गंवानी पड़े या गिरवी रखना पड़े तो उसकी मन:स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता ह…

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नारद दृष्टि : पत्रकारिता का पथ प्रदर्शक

डॉ. पवन सिंह मलिक/ आज पूरा विश्व भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है, क्योंकि भारत ही विश्व को सही दिशा और दशा देने की क्षमता रखता है। ऐसे में लोकतंत्र का चौथा  स्तम्भ होने के कारण मीडिया जगत की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है कि विश्व के समक्ष अपने राष्ट्र की कैसी तस्वीर प्रस…

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डिजीटल ट्रांसफार्मेशन के लिए तैयार हों नए पत्रकार

नए समय में मीडिया शिक्षा की चुनौतियां

प्रो. संजय द्विवेदी/ एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा क…

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दैनिक भास्कर का फर्जीवाड़ा!

अनिल सिंह / क्या यह प्रायोजित खबर नहीं है? क्या प्रेस को ऐसी स्वंतंत्रता मिलनी चाहिए? 

अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भास्कर के अलग-अलग शहरों के 03 मई 2…

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बेमानी है प्रेस फ्रीडम की बातें

पूरी दुनिया में पत्रकार बेहाल हैं और प्रेस बंधक होता चला जा रहा है

मनोज कुमार/ तीन दशक पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने 3 मई को विश्व प्रेस फ्रीडम डे मनाने का ऐलान किया था. तब से…

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'ग़ुलाम मीडिया ' जनता की बदहाली का सबसे बड़ा ज़िम्मेदार

निर्मल रानी/  हमारा देश इस समय संकट के किस भयानक दौर से  गुज़र रहा है इसे दोहराने की ज़रुरत नहीं। संक्षेप में यही कि जब देश प्यास से मर रहा है उस समय सरकारें कुंवे खोदने में लगी हैं। और इन कुंओं को खोदते खोदते कितनी और जानें काल के मुंह में समा जाएंगी इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। सत्ता…

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भारतीय मीडिया ने झूठ बोलने को आसान बनाया

जन मीडिया का अप्रैल अंक

डॉ लीना / जन मीडिया का अप्रैल (109 वां) अंक अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण इसलिए कि अप्रैल का जो महीना होता है वह अपने आप में महत्वपूर्ण होता है।  सामाजिक क्रांति का बीज बोने वाले प्रबुद्ध राष्ट्र निर्माता एव…

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पत्रकारिता समाप्त हो रही है और पत्रकार बढ़ते जा रहे हैं!

श्रवण गर्ग /कोलकाता से निकलने वाले अंग्रेज़ी के चर्चित अख़बार ‘द टेलिग्राफ’ के सोमवार (29 मार्च,2021) के अंक में पहले पन्ने पर एक ख़ास ख़बर प्रकाशित हुई है. ख़बर गुवाहाटी की है और उसका सम्बन्ध 27 मार्च को असम में सम्पन्न हुए विधान सभा चुनावों के पहले चरण के मतदान से है. असम में मत…

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ज़मीर फ़रोश पत्रकारिता पर एक और प्रहार

निर्मल रानी/ स्वयं को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताने वाला मीडिया विशेषकर टेलीवीज़न मीडिया जहाँ गत कुछ वर्षों से सत्ता के समक्ष 'शाष्टांग दंडवत' की मुद्रा में आकर भारतीय इतिहास के सबसे शर्मनाक दौर से गुज़र रहा है वहीं अभी भी कुछ चरित्रवान तथा पत्रकारिता के कर्तव्यों  व सिद्धांतों का ई…

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सोशल-मीडिया कंपनियों पर नहीं, जनता की ज़ुबान पर ताला

प्रमोद रंजन / फरवरी के अंतिम सप्ताह में  भारतीय डिज़िटल दुनिया में यह ख़बर छायी रही कि सरकार सोशल-मीडिया कंपनियों  पर लगाम कसने के लिए एक कड़ा नियमन लेकर आयी है। इसे “…

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भारत मे पत्रकारिता मर चुकी है!

वह सही संदर्भों के साथ खबर पेश नही करती

गिरीश मालवीय। मुझे लगता है कि भारत मे पत्रकारिता मर चुकी है, कल एक खबर का जो हश्र देखा है उसे देखकर बिल्कुल यही महसूस हुआ, कल मुंबई में एक होटल से वर्तमान लोकसभा के एक सां…

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क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी ?

रवीश कुमार/ मनदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के अमित सिंह पर मामला दर्ज हुआ है। राजदीप सरदेसाई और सिद्धार्थ वरदराजन पर मामला दर्ज हुआ है। क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी ? आज मैंने ट्विटर पर ट्वि…

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'पूछता है भारत': क्या देश को चाहिए ऐसी ही पत्रकारिता?

तनवीर जाफ़री/ 'बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा' , हमारे देश में तमाम चतुर,चालाक,स्वार्थी व निठल्ले क़िस्म के लोगों ने शोहरत पाने का यही शॉर्ट कट रास्ता अपनाया हुआ है। विवादों का शोहरत से हमेशा ही गहरा नाता भी रहा है। जो भी व्यक्ति अथवा विषय विवादित तरीक़े से मीडिया द्वारा प्रचारि…

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जब मीडिया सरकार चुन ले तो जनता को अख़बार चलाना पड़ता है

रवीश कुमार।  किसान आंदोलन के बीच एक अख़बार निकलने लगा है। इस अख़बार का नाम है ट्राली टाइम्स। पंजाबी और हिन्दी में है। जिन किसानों को लगा था कि अख़बारों और चैनलों में काम करने वाले पत्रकार उनके गाँव घरों के हैं, उन्हें अहसास हो गया कि यह धोखा था। गाँव घर से आए पत्रकार अब सरकार के …

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मीडिया के प्रति अविश्वास बढ़ाता 'फ़ेक न्यूज़' का बढ़ता चलन

तनवीर जाफ़री/ मीडिया देश व समाज के सभी वर्गों व अंगों को एक दूसरे से बाख़बर करने का दायित्व  निभाता आ रहा है।  जन मानस मीडिया द्वारा प्रकाशित /प्रसारित ख़बरों पर न केवल विश्वास करता है बल्कि इसके माध्यम से सामने आने वाले विषयों व मुद्दों को बहस,चर्चा व जानकारी का सशक्त ज़रीया भी समझत…

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सिटिज़न जर्नलिज़्म: प्रोत्साहन के साथ-साथ प्रशिक्षण भी जरुरी

चुनौतियों के बावजूद नागरिक पत्रकारिता में असीम संभावना है

डॉ. पवन सिंह मलिक/ सिटिज़न जर्नलिज़्म शब्द जिसे हम नागरिक पत्रकारिता भी कहते है आज आम आदमी की आवाज़ बन गया है। यह समा…

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दोष रेटिंग पर डालकर फिर से प्रोपेगैंडा चालू!

रवीश कुमार। रेटिंग को लेकर जो बहस चल रही है उसमें उछल-कूद से भाग न लें। ग़ौर से सुनें और देखें कि कौन क्या कह रहा है। जिन पर फेक न्यूज़ और नफ़रत फैलाने का आरोप है वही बयान जारी कर रहे हैं कि इसकी इजाज़त नहीं देंगे। रही बात रेटिंग एजेंसी की रेटिंग को 12 हफ्ते के लिए स्थगित करने की…

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लोकमंगल की पत्रकारिता और वर्तमान चुनौतियां

मनोज कुमार/ अपने जन्म से लेकर अब तक की पत्रकारिता लोकमंगल की पत्रकारिता रही है। लोकमंगल की पत्रकारिता की चर्चा जब करते हैं तो यह बात शीशे की तरह साफ होती है कि हम समाज के हितों के लिए लिखने और बोलने की बात करते हैं। लोकमंगल के वृहत्तर दायित्व के कारण ही पत्रकारिता को समाज का चौथा स…

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सम्पादक

डॉ. लीना