दलित चिंतन का निचोड़ है 'आजीवक'
कैलाश दहिया/ बात 1997 की है, डॉ. धर्मवीर की पुस्तक 'कबीर के आलोचक' आई। इस किताब के आते ही हिंदी साहित्य में जलजला पैदा हो गया। अभी तक कबीर के नाम पर विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जा रहे डॉ. हजारी प्रसा…
दलित चिंतन का निचोड़ है 'आजीवक'
कैलाश दहिया/ बात 1997 की है, डॉ. धर्मवीर की पुस्तक 'कबीर के आलोचक' आई। इस किताब के आते ही हिंदी साहित्य में जलजला पैदा हो गया। अभी तक कबीर के नाम पर विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जा रहे डॉ. हजारी प्रसा…
कैलाश दहिया / पिछले दिनों 'व्हाट्सएप' पर वरिष्ठ पत्रकार नासिरुद्दीन का एक लेख प्राप्त हुआ, जिस का शीर्षक था 'प्रेम में डूबी बहादुर लड़कियो, हिंसक रिश्ते से बाहर निकलना जरूरी है।'(1) यह लेख लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही लड़की की उस के लिव-इन पार्टनर द्वारा की गई हत्या को केंद्र में …
कैलाश दहिया/ 'हंस' पत्रिका के सितंबर, 2022 अंक में द्विज आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का 'नेहरू से ऐसा डर क्यों' शीर्षक से लेख छपा है। इस लेख में इन्होंने एक बार फिर अपना दलित विरोधी चेहरा दिखा दिया है। ये लिखते हैं, 'वैसे यह इन दिनों परम लोकप्रिय अस्मिता-परक सोच का ही तो एक रूप है ज…
कैलाश दहिया/ ब्राह्मणी प्रभाव में पिछड़े वर्ग के कथित साहित्यकारों का दिमाग कैसे काम कर रहा है, इसे अश्विनी कुमार पंकज की लिखत से समझा जा सकता है। इन्होंने अपनी दिनांक 04 जुलाई, 2022 की फेसबुक पोस्ट में लिखा है- "आ रहा है आजीवक मक्खलि गोसाल के दर्शन और संघर्ष पर केंद्रित हमारा त…
कैलाश दहिया/ हिंदी साहित्य में आजकल एक चलन हो गया है, अगर कोई पुरस्कार लेना हो या नाम कमाना हो तो डॉ. धर्मवीर का विरोध करना शुरू कर दो। दलितों के साथ-साथ पिछड़ों में भी यह प्रथा पिछले एक-डेढ़ दशक से देखी जा रही है। द्विज तो हैं ही दलित विरोधी।…
कैलाश दहिया/ आर.डी. आनंद ने दिनांक 25 मार्च, 2021को अपनी फेसबुक वॉल पर 'आम्बेडकरवादी और आजीवक' शीर्षक से अपना लेख लगाया है। सर्वप्रथम तो, इन के लेख का शीर्षक ही गलत है। आजीवक एक कंप्लीट धर्म है, जो अपने पर्सनल कानूनों के साथ दलितों की समस्याओं को हल करता आया है। इस के विपरीत अंबे…
अरुण आजीवक/ बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने कहा था 'समाज की प्रगति उस समाज के महिलाओं की प्रगति से मापना चाहिए।' इसी तर्ज पर यह भी कहा जा सकता है कि समाज की मजबूती उस समाज के साहित्य से भी तय होती है।…
कैलाश दहिया/ यह अच्छी बात है कि सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग पकड़ में आ रहे हैं। मैंने 02 फरवरी, 2021 को फेसबुक पर अपनी निम्नलिखित पोस्ट डाली थी...…
कैलाश दहिया/ पिछड़ों के विचारक प्रेम कुमार मणि ने 4 सितंबर, 2020 को अपनी फेसबुक वॉल पर 'यह जार चिंतन क्या है?' शीर्षक से अपना लेख लगाया है। बताया जाए, सर्वप्रथम तो इन का यह शीर्षक ही गलत है। यह होना चाहिए था 'यह दलित चिंतन या मोरल चिंतन क्या है?' यह भी बताया जा सकता है कि इस मोरल…
यह तथ्य कमोवेश सबको ज्ञात हैं कि भारतीय मीडिया का एक बडा तबका अपनी आजीविका विदेशियों की ऐजेंटी से चलाता है। हर एक समाचार पत्र का पाठक या टेलीविजन का जागरूक दर्शक यह जानता है कि मीडिया में एक तबका है जो अमेरिका की भारत से ज्यादा चिंता करता है तथा उसके लिये …
कैलाश दहिया / 12 सितम्बर 2005, प्रखर आजीवक (दलित) चिन्तक डा. धर्मवीर की आलोचना की किताब ‘प्रेमचंद: सामंत का मुंशी’ का लोकार्पण का…
कैलाश दहिया / डा. धर्मवीर का साहित्य क्यों पढ़ें? यह कोई छोटा सवाल नहीं, बल्कि हिन्दी साहित्य का केन्द्रीय प्रश्न है। हिन्दी साहित्य या किसी भी भाषा के साहित्य का मूलभूत प्रश्न क्या है? या, साहित्य क्यों लिखा और पढ़ा जाता है? ऐसे ही सवालों के बीच डा. धर्मवीर के साहित्य की पर…
डॉ. लीना