एक सवाल
डॉ. अशोक प्रियदर्शी / कहानी मुफलिसी पत्रकार की है। नाम है रविंद्र नाथ भईया। रहने वाले हैं बिहार के नवादा जिले के खनवां गांव के। उम्र के आखिरी पड़ाव में हैं। 67 साल उम्र हो गई है। ना कोई गाड़ी है। नहीं कोई बंगला। साल में दो जोड़ी चप्पल और दो जोड़ी कपड़े मिल जाना बड़ी उपलब्धि रही है।
पत्रकारिता के कई संस्थानों में काम किए। कोई संस्थान उतना पैसा नहीं दिया जिससे उनके तन और घर की हालत सुधर जाए। हालत सामान्य जन से अलग नहीं।
जीवन में कई उतार चढ़ाव आए। लेकिन मुश्किलों में भी पत्रकारिता की जिद नहीं छोड़ी । दोस्त कम, दुश्मन ज्यादा हुए। शरीर भी कई व्याधियों से घिर गया। हृदय के रोगी हो गए। इसके बावजूद पत्रकारिता की धुन कम नही हुई।
ऐसे शख्स की जमा पूंजी होती है पब्लिक के बीच इमेज। लोगों से मिला स्नेह। लेकिन अकबरपुर पुलिस को यह पसंद नही आई। कभी सम्मान करने थाना नही बुलाया। पिछले हफ्ते बुलाया भी तो गिरफ्तार करने। वह भी दूसरे थाना का पुराना मामला में। लेकिन बहाना चाहिए था। सो मिल गया। क्योंकि रविंद्रनाथ भईया की रिपोर्टिंग से नाराजगी थी। लिहाजा, प्रतिशोध में हाजत में डाल दिया गया। इतना से संतोष नही हुआ तो हथकड़ी लगवाई गई। फिर तस्वीर खिंचवाई गई। यही नही, उस तस्वीर को वायरल करवाई गई। मतलब पूरे जीवन के संघर्षों का पुरस्कार हथकड़ी लगाकर दिया गया।
ये तो धन्य न्यायापालिका की रही जिन्होंने पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताते हुए पत्रकार के साथ न्याय किया। जमानत दे दी। बुढ़ापा में जेल जाने से बच गए।
मुकदमा भी क्या था जिसके बारे में उन्हें जानकारी तक नहीं थी। 14 साल पहले पिरौटा गांव में दो लोगों के बीच जमीन को लेकर कोर्ट में कंप्लेन केस फाइल हुआ था। दूसरे पक्ष से नजदीकी थी इसलिए रविंद्र नाथ को भी आरोपी बना दिया था। बाद में दोनों पक्ष समझौता कर लिया था। लेकिन इनका मुकदमा खत्म नही हुआ था। कोर्ट से इश्तहार तक जारी हो चुका था, लेकिन इन्हें इसकी जानकारी नही थी। जबकि ऐसे मामले में सम्मन देकर सूचित करने का प्रावधान रहा है। मामला गोविंदपुर के थाली थाना का था। लेकिन कारवाई में अकबरपुर पुलिस ने तत्परता दिखाई।
वैसे, कानूनी कारवाई से ऊपर कोई नही है। सबके लिए समान प्रावधान है। लेकिन क्या इस बुजुर्ग व्यक्ति को हथकड़ी लगाना जायज था? तस्वीर खिंचवाकर उसे वायरल करना जायज था ? अपराधियों के चेहरे ढककर तस्वीर खिंचवाई जाती रही है वैसे में इस बुजुर्ग पत्रकार का खुले रूप से खिंचवाकर तस्वीर को वायरल करना जायज था? ऐसे कई सवाल है जिसका निर्णय सरकार, पुलिस प्रशासन और समाज को करना है।