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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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ईटीवी के राइजिंग बिहार में ‘कुलबुलाते’ रहे लालू

वीरेंद्र कुमार यादव/ गांवों में एक कहावत है- हसुआ के विआह में खुरपी के गीत। पटना के होटल मौर्या में ईटीवी के तत्वावधान में बिहार में विकास की संभावनाओं पर आयोजित ‘राइजिंग बिहार’ कार्यक्रम में विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी राजद का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं था, लेकिन पूरे कार्यक्रम में लालू यादव एंड फैमिली ही हावी रहा। विकास का मुद्दा गौण हो गया। बिहार की प्रतिभाओं द्वारा पूरी दुनिया में डंका बजाने का दावा करने वाली सरकार बिहार में युवाओं को रोजगार नहीं मिलने के सवाल पर मौन हो जाती है। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार को कहना पड़ता है कि बैंक सहयोग नहीं कर रहे हैं।

दरअसल यह कार्यक्रम ‘राइजिंग भाजपा एंड कुनबा’ बनकर रह गया। मंच पर विराजमान होने वाले सभी नेता भाजपा के कुनबाई सदस्‍य थे। नीतीश कुमार, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, राधामोहन सिंह, रामविलास पासवान, जीतनराम मांझी और आरके सिन्‍हा भाजपा गठबंधन से जुड़े नेता हैं। अशोक चौधरी भी ‘नीतीश राग’ के गवैया हैं। कार्यक्रम के अंतिम सत्र में आरके सिन्‍हा, वासुदेव सिंह और नीतू चंद्रा ने ही राइजिंग बिहार के मुद्दे पर चर्चा की और संभावनाओं की तलाश में बेचैन भी दिखे।

मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चारों ओर से भूमि से घिरे होने के कारण बिहार में कोई बड़ा निवेश नहीं हो रहा है। उन्‍होंने कहा कि पलायन कोई समस्‍या नहीं है और पलायन को लेकर अवधारणा बदलने की जरूरत है। उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी ने लालू यादव परिवार के खिलाफ अपने 40 तथ्‍यात्‍मक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बतायी। उन्‍होंने तेजस्‍वी के उभरते नेतृत्‍व से जुड़े सवाल पर कहा कि मांझी जी के बेटे संतोष मांझी, पासवान जी के बेटे चिराग पासवान भी उभरते सितारा हैं। लेकिन उन्‍होंने तेजस्‍वी के उभार को नकारा नहीं। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को यह बताना पड़ा कि चारा घोटाला का केस लड़ने वाले वकील हमही रविशंकर प्रसाद हैं। आरक्षण के मुद्दे पर तीनों गैरसवर्ण नेता नीतीश, सुशील और रामविलास ने एक स्‍वर से इसका समर्थन किया।

कुल मिलाकर ‘राइजिंग बिहार’ बिहार पर विमर्श का बड़ा मंच था, रोजगार के लेकर व्‍यवहार तक संजीदगी से सोचने का बड़ा मंच था, लेकिन सत्‍ता में बैठे लोग लालू यादव के खौफ से उभर नहीं पाये हैं और अपनी उपलब्धियों पर ‘लालू का लेप’ लगाकर जिम्‍मेवारियों से भागना चाहते हैं। लेकिन जनता सब जानती है। कार्यक्रम में शामिल पत्रकारिता के छात्र मनीष ने आखिर अपनी पीड़ा व्‍यक्‍त ही कर दी - ‘राइजिंग बिहार’ लालू से आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

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सम्पादक

डॉ. लीना