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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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बिहार में इमरजेंसी जैसी प्रेस सेंसरशिप : प्रेस परिषद की जांच टीम

विज्ञापन जारी करने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी के गठन की वकालत

भारतीय प्रेस परिषद की जांच टीम ने बिहार में पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर अपनी जांच रिपोर्ट दे दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में पत्रकारिता खतरे में है। जांच टीम ने रिपोर्ट में नीतीश सरकार की तुलना इमरजेंसी से की है और कहा है कि बिहार में निष्पक्ष पत्रकारिता करना संभव नहीं है।

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुझाव दिया है कि विज्ञापन देने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी का गठन किया जाना चाहिए जो विज्ञापन जारी करने के लिए स्वतंत्र हो।

प्रेस स्वतंत्रता के हनन की शिकायतों की जांच के लिए परिषद की एक टीम पिछले दिनों बिहार के दौरे पर थी। उसने राज्य भर में कई जगह शिकायतें सुनी और अपनी रिपोर्ट बनाई  है। जाँच टीम ने अपनी रिपोर्ट प्रेस परिषद को सौंप दी है।

पिछले साल भारतीय प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू पटना आये थे तो पत्रकारों की कई टीम ने उनसे मिलकर शिकायत की थी कि यहां पत्रकारिता संकट में है। इसके बाद काटजू ने इसकी जांच करने के लिए तीन सदस्यीय टीम भेजी थी। जांच टीम में राजीव रंजन नाग, अरुण कुमार और कल्याण बरुआ शामिल थे।

जांच टीम की रिपोर्ट में कहा गया है कि विज्ञापन के लोभ में मीडिया संस्थानों को राज्य सरकार ने बुरी तरह अपने चंगुल में जकड़ रखा है जिसके कारण पत्रकारों को स्वतंत्र और निष्पक्ष खबर लिखना संभव नहीं हो पा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, इमरजेंसी के दिनों में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर जैसी सेंसरशिप लगी हुई थी, वह स्थिति वर्तमान में नीतीश सरकार के कार्यकाल में भी है। मौजूदा हालात में ज्यादातर पत्रकार घुटन महसूस कर रहे हैं। स्वतंत्रतापूर्वक काम करने में वह खुद को असहाय पा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार सरकारी खौफ के चलते आंदोलन, प्रदर्शन, प्रशासन की कमियों को उजागरकरने वाली और जनसमस्याओं से जुड़ी खबरों को अखबारों में स्थान नहीं मिल पा रहा है। सरकार के दबाव के कारण भ्रष्टाचार उजागर करने वाली खबरों को जगह नहीं पा रही है। कवरेज में विपक्ष की अनदेखी कर सत्तापक्ष की मनमाफिक खबरों को तरजीह दी जा रही है।
जांच दल ने कहा है कि बिहार का समूचा मीडिया उद्योग सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर रहता है। औद्योगिक रूप से पिछड़ा राज्य होने के कारण यहां पर अखबारों को निजी क्षेत्र का विज्ञापन नहीं मिलता है। सरकार, मीडिया की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए उसे अपने इशारे पर चलने के लिए मजबूर करती है।
तीन सदस्यीय जांच टीम ने कहा है कि मीडिया के ऊपर इस तरह के अप्रत्यक्ष नियंत्रण से लोगों के सूचना हासिल करने का अधिकार बाधितहो रहा है। इससे अनुच्छेद 19 [1] के तहत प्रदत्त संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। परिषद के अनुसार विज्ञापनों पर सरकार का एकाधिकार होने के कारण ही मीडिया को सरकारी मुखपत्र बनने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

जब यह जांच टीम पटना आई थी तो पटना के 40 पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, वकील और अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों ने जांच टीम के सामने साक्ष्य पेश किये थे।

 

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सम्पादक

डॉ. लीना