भोपाल । कार्ल मार्क्स ने उस समय धर्म को अफीम कहा था जब टेलीविजन और सोशल मीडिया नहीं थे। यदि आज कार्ल मार्क्स जीवित होते तो निश्चित ही टेलीविजन और सोशल मीडिया को अफीम कहते। लोगों को सोशल मीडिया और टेवीविजन की लत लग गई है। कोई व्यक्ति जितना वक्त अपने काम पर खर्च करता है, लगभग उतना ही समय वह टेलीविजन और सोशल मीडिया पर खर्च कर रहा है। ये विचार मध्यप्रदेश, संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। वे 'संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में मूल्यनिष्ठता' विषय पर आयोजित दो दिवसीय (14 व 15 मार्च) राष्ट्रीय संविमर्श में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। संविमर्श का आयोजन महाकुम्भ सिंहस्थ-2016 के परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश सरकार और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। संविमर्श के उद्घाटन की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की।
प्रमुख सचिव ने कहा कि सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है। लेखकों, कवियों और साहित्यकारों को अपनी बात रखने के लिए मंच प्रदान किया है। अब सार्वजनिक जीवन पर टीका-टिप्पणी चारदीवारी में दम नहीं तोड़ती, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए मुखर होती है। लेकिन सोशल मीडिया घनिष्ठता और मित्रता की माया रचती है। इस माया में ऑफलाइन मित्र छूटते जा रहे हैं। फेसबुक पर आज जो मित्र है वह कभी भी अजनबी बन सकता है। जबकि ऑफलाइन मित्र रिश्तेदार बन सकता है या फिर दुश्मन भी बन सकता है लेकिन अजनबी कभी नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि स्टिंग और स्क्रीन की अधिकता से मनुष्य खुद को घिरा-घिरा अनुभव कर रहा है। वह टेलीविजन के शोर में एकांत तलाश रहा है। पहले तो परदेश जाने वाले का ही घर छूटता था, लेकिन अब टेलीविजन और सोशल मीडिया के कारण घर में ही वह परदेशी हो गया है। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि दर्शकों को बांधे रखने के लिए टेलीविजन पर परिवारों में षड्यंत्र दिखाए जा रहे हैं। पत्नी को पति, बेटे को मां के खिलाफ षड्यंत्र करते दिखाया जा रहा है। महाराणा प्रताप को राष्ट्रीय चुनौतियों से लडऩे की जगह पारिवारिक समस्याओं में उलझते हुए दिखाया जा रहा है। यह भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है।
बौद्धिक वातावरण का निर्माण करते हैं कुम्भ मेले : राष्ट्रीय संविमर्श के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि कुम्भ के मेले मात्र धार्मिक नहीं हैं। कुम्भ स्नान करके अपने पापों को दूर करना मात्र इनका उद्देश्य नहीं है। बौद्धिकता कुछ लोगों तक सीमित न रहे, बल्कि समाज के आमजन तक जाए, यह कुम्भ मेलों का उद्देश्य रहता है। कुम्भ में आकर व्यक्ति अपनी जिज्ञासा का समाधान तलाशता है, यही परम्परा है। इसी परम्परा को ध्यान में रखते हुए तय किया गया है कि जीवन के मूल्य क्या होने चाहिए? इस पर सिंहस्थ से पूर्व व्यापक विमर्श कर एक बौद्धिक वातावरण का निर्माण किया जाए। प्रो. कुठियाला ने बताया कि अब महात्मा गांधी के तीन बंदरों में चौथा बंदर भी जुड़ गया है। जिसके हाथ में स्मार्ट फोन है। लेकिन, उसे कहा गया है कि वह अपने स्मार्ट फोन से सोशल मीडिया में किसी प्रकार की बुराई पोस्ट नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी के क्या मूल्य हों? इस पर विमर्श की आवश्यकता है। भाषा के स्तर पर भी मीडिया को तय करना होगा कि वह वर्तमान युवा पीड़ी की बिगड़ी हुई भाषा का अनुकरण करेगा या फिर विद्वानों की भाषा का उपयोग करेगा। उद्घाटन सत्र का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष श्री संजय द्विवेदी ने किया।
समाज और देश के हित में हों मीडिया के मूल्य : राष्ट्रीय संविमर्श के पहले दिन तीन अलग-अलग सत्रों में विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि मीडिया,सूचना प्रौद्योगिकी और इससे जुड़े प्रोफेशनल्स के मूल्य समाज और देश के हित में ही होने चाहिए। 'मानव जीवन के मूल्य और उनकी मीडिया में प्रासंगिकता' विषय पर आयोजित सत्र के मुख्य वक्ता और कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि मूल्य दो तरह के होते हैं, शाश्वत मूल्य और व्यक्तिपरक मूल्य। शाश्वत मूल्य प्रकृति ने नियत किए हैं, वे सबके लिए समान हैं। जबकि व्यक्तिपरक मूल्य व्यक्ति-व्यक्ति और प्रोफेशन-प्रोफेशन बदलते हैं। सत्र की अध्यक्षता कर रहे जनसंपर्क विशेषज्ञ सुभाष सूद ने कहा कि मीडिया के क्षेत्र में शाश्वत मूल्यों और व्यक्तिपरक मूल्यों को जोड़ा जाना चाहिए। व्यावहारिकता और आदर्श के बीच समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है। इस दौरान दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश ने कई उदाहरणों के माध्यम से मीडिया के मूल्यों को चिह्नित किया। चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राकेश शर्मा, अशोक मलिक और कुशल सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन न्यू मीडिया विभाग की अध्यक्ष डॉ. पी. शशिकला ने किया। दूसरे सत्र में मीडिया वृतिज्ञों (प्रोफेशनल्स) के मूल्यों पर विमर्श किया गया। इस सत्र की मुख्य वक्ता दिल्ली से आईं मीडिया विशेषज्ञ डॉ. निमो धर और अध्यक्षता अहमदाबाद से आए विनोद सी. अग्रवाल ने की। डॉ. एमआर पात्रा (हिसार), विश्वेश ठाकरे (रायपुर), ममता ओझा (इंदौर), प्रो. सीपी अग्रवाल, डॉ. अनुराग सीठा और डॉ. पी. शशिकला ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन जनसंपर्क विभाग के अध्यक्ष डॉ. पवित्र श्रीवास्तव ने किया। तीसरे सत्र में मीडिया शिक्षक, मीडिया शोधार्थी, सूचना अधिकार कार्यकर्ता, एनजीओ कार्यकर्ता और मीडिया विद्यार्थियों के मूल्यों पर विमर्श किया गया। सत्र के मुख्य वक्ता प्रो.गुरुदत्त थे और अध्यक्षता डॉ. विनोद सी. अग्रवाल ने की। मीडिया विशेषज्ञ डॉ. शाहिद अली, डॉ. श्रीकांत सिंह, डॉ. पवित्र श्रीवास्तव और डॉ. मोनिका वर्मा ने अपने विचार प्रस्तुत किए। संचाल सुरेन्द्र पाल ने किया। राष्ट्रीय संविमर्श में रविवार (15 मार्च) को संपादक, उपसंपादक, रिपोर्टर, लेखक, मीडिया प्रबंधक, फिल्म निर्माता के जीवन मूल्यों पर विचार विमर्श किया जाएगा। (रिपोर्ट- डॉ. पवित्र श्रीवास्तव,निदेशक जनसंपर्क)