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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लेखक ही कुनबों की दीवार तोड़ सकते हैं

रामेश्वर उपाध्याय का कथा संग्रह ‘‘बहुक्म-ए-वज़ीरे आज़म" का लोकार्पण

पटना। आज बन गई छोटी-छोटी क्षुद्र दीवारों को लेखक ही तोड़ सकते हैं। रचनायें अपने समय के ऐतिहासिक दस्तावेज होते हैं। जिस काल खण्ड का इतिहास जानना हो, समकालीन रचनाओं में मिल जाती है। जय प्रकाश आंदोलन और समकालीन भोजपुर के समाज-संस्कृति की जानकारी रामेश्वर उपाध्याय की रचनाओं में मिल जाती है। यहाँ गाँधी संग्रहालय के सभा कक्ष में रामेश्वर उपाध्याय की पुस्तक ‘‘बहुक्म-ए-वज़ीरे आज़म" के लोकार्पण समारोह में प्रो0 रामवचन राय अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक सोशल एक्टिविस्ट की स्मृति में इतने लोगों का आना एक जीवंत समाज को बताता है।

इस अवसर पर साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने कहा कि उपाध्याय में एक बेचैनी थी, जिसने उन्हें जेपी मूवमेंट में शामिल किया और लेखक बनाया। कर्मेन्दु शिशिर ने कहा कि रामेश्वर उपाध्याय के भीतर का लेखक समय की उपज था। उस समय की परिस्थितियों ने उनमें रंगकर्मी, पत्रकार और लेखक को उकेरा।

डॉ. अभय कुमार ने उनकी रचनाओं की ऐतिहासिकता को रेखांकित किया।

इस अवसर पर आलोक धन्वा, हृषिकेश सुलभ, नीरज सिंह, नवेन्दु, शेखर, अवधेश प्रीत, निलय उपाध्याय, अनिल विभाकर, सुधीर सुमन, सुरेश कांटक, सीरिल मैथ्यू, डॉ0 विंदेश्वरी ने रामेश्वर उपाध्याय से जुड़ी स्मृतियों को साझा किया। अतिथियों का स्वागत अमृत उपाध्याय ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन श्रीकांत ने किया। समारोह का संचालन अनीश अंकुर ने किया।

इस अवसर पर ढ़ेर सारे पत्रकार, साहित्यकार और साहित्य प्रेमी मौजूद थे।

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सम्पादक

डॉ. लीना