Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

शिववंश पाण्डेय की पुस्तक ‘लौकिक न्यायानुशीलन’ का लोकार्पण

लेखक का उनके 85वें जन्म-दिवस पर किया गया अभिनंदन

पटना। वरिष्ठ साहित्यकार और साहित्यालोचक डा शिववंश पाण्डेय की पुस्तक ‘लौकिक न्यायानुशीलन’ का आज बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में लोकार्पण किया गया। इसके पूर्व लेखक का उनके 85वें जन्म-दिवस पर सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने चादर और पुष्प-हार पहनाकर अभिनंदन किया।

पुस्तक का लोकार्पण के पश्चात अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधान मंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने लोकार्पित पुस्तक को अपने विषय का अद्वितीय पुस्तक बताया। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य में इस पुस्तक का व्यापक महत्त्व है। लेखक ने लैकिक-न्याय के क्षेत्र में अनुशीलन का एक महान और ऐतिहासिक कार्य किया है, जो अत्यंत श्रम-साध्य तथा स्तुत्य है। इस ग्रंथ से हिन्दी साहित्य के श्री में मूल्यवान वृद्धि हुई है।

इस अवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए, प्रख्यात विद्वान ब्रह्मचारी सुरेन्द्र कुमार ने डा पाण्डेय को उनके 85वें जन्म-दिवस पर अभिनंदन करते हुए कहा कि पुस्तक के लेखक, जो अपनी विद्वता और विनम्रता के लिये समाज में उच्च प्रतिष्ठा अर्जित कर चुके हैं, बहु प्रतिष्ठित समालोचक भी हैं। एक आलोचक और संपादक के रूप में इन्होंने एक ओर जहां साहित्य को समृद्ध किया है, वहीं अनेक नवोदित और अप्रकाश्य लेखकों को प्रकाश में भी लाया है।

अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि अनुशीलन तथा साहित्यालोचन का कार्य अत्यंत श्रम-साध्य और ‘क्रीच-साधना’ की भांति तलवार की धार पर चलने की साधना है। डा पाण्डेय ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य के यज्ञ में आहूति देने में लगाया है और क्रीच-साधना की है।

कृतज्ञता-ज्ञापन के क्रम में डा पाण्डेय ने पुस्तक के संबंध मे और लौकिक-न्याय के विषय में विशद चर्चा की तथा यह स्पष्ट किया कि लौकिक-न्याय का अभिप्राय न्यायालयों में होने वाले न्याय से नहीं अपितु लोक-जीवन में प्रचलित मान्यताओं और उससे निर्मित कहावतों और मुहावरों से है। पुस्तक में उन्हीं लोकोक्तियों के संकलन और उसके संदर्भों की चर्चा की गयी है।

इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार राम उपदेश सिंह ‘विदेह’, जियालाल आर्य, पंचम लाल, हरिद्वार पाण्डेय, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, पं शिवदत्त मिश्र, बलभद्र कल्याण, डा तारा सिन्हा, डा वासुकी नाथ झा, आरपी घायल, पंडितजी पाण्डेय, जगत नारायण जगतबंधु, डा मिथिलेश कुमारी मिश्र, कवि विशुद्धानंद, आर प्रवेश, राज कुमार प्रेमी, डा अशोक कुमार अंशुमाली, शंभु पाण्डेय, डा शिव नारायण तथा हृषिकेश पाठक ने भी अपने विचार व्यक्त किये। सभा का संचालन पं योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

 

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना