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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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वीरेन डंगवाल - ‘रहूंगा भीतर नमी की तरह’

मनोज कुमार सिंह / हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व पत्रकार वीरेन डंगवाल की स्मृति में उनकी कर्मस्थली बरेली में उन्हें याद करने के लिए देश भर से लेखक व संस्कृतिकर्मी 20 व 21 फरवरी को जुटे।  ‘रहूंगा भीतर नमी की तरह’ - यह काव्य पंक्ति है वीरेन की कविता का और इस आयोजन का नाम भी यही था। दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच और वीरेन डंगवाल स्मृति आयोजन समिति की ओर से बरेली कॉलेज सभागार में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत कवि वीरेन डंगवाल के व्यक्तित्त्व और कविताओं पर केन्द्रित एक पुस्तक ‘रहूँगा भीतर नमी की तरह’ के विमोचन से हुआ जिसे जसम उत्तर प्रदेश के सचिव युवा आलोचक प्रेमशंकर ने संपादित किया है। 

उदघाटन सत्र में अपनी बात रखते हुए हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि और वीरेन जी के मित्र आलोक धन्वा ने कहा कि मीरा, कबीर और सूर की तरह ही वीरेन ने कविता का कठिन रास्ता चुना था। जिनके भीतर जिंदगी कम होती है, वीरेन की कवितायें उनको संभालती है। उनकी कविताओं में फिल्म, नाटक चित्रमयता, श्रृंगार की अनगिनत छायाएं मौजूद हैं। हिन्दी खड़ी बोली को जिस तरह से उन्होंने अपनी कविताओं में बरता, वह अद्वितीय है। इसी भाषा राशि से उन्होंने प्रेम के विरले छंद रचे, समाज की विडंबनाओं को चित्रित किया। ध्वनियों और क्रियाओं का बहुल संसार उनकी कविता को गहन अर्थवत्ता देता है। वे एक सम्पूर्ण कवि थे। इस सत्र में बातचीत रखते हुए हिन्दी के वरिष्ठ कवि और वीरेन के गहन सखा मंगलेश डबराल ने उनके साथ इलाहाबाद में बिताए झंझावाती दिनों की याद करते हुए बताया कि हमने तीन साल में तीस साल का जीवन जिया। 70 के दशक के बदलावकारी हवाओं ने उसी समय हमारे मन-मिजाज और बोध को बदल दिया। वीरेन के कवि व्यक्तित्त्व पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी रचनात्मकता के बहुत से छोर थे. कभी क्लासिकल, कभी तोड़फोड़ करने वाला, कभी छांदस, कभी एबसर्ड की तरफ झुका हुआ। परस्पर विरोधी धाराएं उनके व्यक्तित्त्व में शामिल थीं। वीरेन ने अपनी कविता में नगण्यता का गुणगान किया। समोसा, जलेबी, पपीता जैसी चीजों पर उन्होंने कवितायें लिखीं। वह हमारे पीढ़ी का सबसे बडा आशावादी था। 

वीरेन जी की जीवन संगिनी श्रीमती रीता डंगवाल ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उनका जाना झूठ लगता है, लगता नहीं है कि वे चले गए हैं। उन्होंने कहा कि हमने अपनी जिंदगी सुख से बिताई, अब मैं उनके विचारों को आगे बढा सकूँ, यही मेरा संकल्प है। वे इसी रूप में अब हमारे साथ हैं। प्रख्यात आलोचक मधुरेश ने वीरेन जी के व्यक्तित्व पर बातचीत करते हुए कहा कि उन्होने इलाहाबाद में अपने आपको विकसित करने की राह खोजी। स्वाद, दृश्य, गंध आदि के प्रति उनका अद्भुत लगाव था। बरेली में लगातार वे यहाँ की संस्कृति से गहरे जुड़े रहे। यहाँ की संस्कृति के अछूते पहलुओं को उन्होने पत्रकार के रूप में समझा और ऐसे लेखन को लगातार एक संपादक के रूप में बढावा दिया। आखिर में मधुरेश जी ने कहा कि वीरेन डंगवाल ने जिस अंधेरी सत्ता की चेतावनी दी थी, वह आज सच साबित हो गई है। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रो यू पी अरोड़ा के स्वागत वक्तव्य से हुआ। उन्होने वीरेन जी के बरेली से गहरे जुड़ाव को याद किया और बताया कि बरेली की गौरवशाली सहिष्णु साझी परंपरा उनके व्यक्तित्व में रची.बसी थी। उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी ने वीरेन डंगवाल के महत्त्व पर बात करते हुए कहा कि उनकी छोटी.छोटी कवितायें बेहद प्रभावशाली हैं। उनकी कविताओं का फलक बहुत बड़ा था। सहज, बेबनाव वाले वे हिन्दी के सर्वमान्य लोकप्रिय कवि थे। वे साहित्य के एक्टिविस्ट थे। सत्र में शहर के गणमान्य बुद्धिजीवियों, नागरिकों, पत्रकारों, रचनाकारों के साथ ही ढेरों छात्र मौजूद रहे। सत्र का संचालन समकालीन जनमत पत्रिका के संपादक के के पाण्डेय ने किया।  

दूसरे सत्र ‘मानी पैदा करता जीवन’ में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार.लेखक सुधीर विद्यार्थी ने कहा कि वीरेन डंगवाल को बरेली के क्रांतिकारी इतिहास से गहरा जुड़ाव था और वे लगातार इस उद्यम में लगे रहते थे कि बरेली के इलाके की समृद्ध क्रांतिकारी विरासत को लोगों तक पहुंचाया जाये। वरिष्ठ कवि इब्बार रब्बी ने कहा कि जीवन को समझना और मनुष्य को जानना वीरेन को बेहद पसंद था। उनके काव्य.संग्रह का प्रकाशन हिन्दी की क्रांतिकारी घटना थी। वे अलमस्त दिखते जरूर थे पर उनमें मनुष्य, समाज और क्रान्ति के प्रति गहरी प्रतिबद्धता थी। आंदोलनों से उनका लगातार सक्रिय संबंध रहा। उनको याद करना मेरे लिए अपने सुनहरे दिनों की याद करना है। कवि.चित्रकार सईद शेख ने कहा कि मैं दोस्तों को ऐसे शिलाखंडों की तरह देखता हूँ जिन पर मैं टिका हूँ। वीरेन के निधन से मैंने वह जमीन खो दी है। कथाकार प्रियदर्शन मालवीय ने कहा कि वीरेन उनके लिए ऐसे रंगरेज थे, जिन्होंने  उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने की। संचालन जन संस्कृति मंच के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर ने की।     

कार्यक्रम के दूसरे दिन वीरेन डंगवाल की कविता पर गहन बातचीत हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र कुमार ने कहा कि आज प्रश्न यह नहीं है कि कविता क्या है बल्कि कविता क्या कर सकती है और इस सवाल का जवाब वीरेन डंगवाल की कविताएं हैं। वह हमें बताते हैं कि जिस दौर मंे जीना मुश्किल है उस दौर में जीना लाजिम है। वरिष्ठ आलोचक रविभूषण ने कहा कि वीरेन डंगवाल परिवर्तनकामी और मुक्तिकामी कवि हैं। प्रेम, प्रतिबद्धता और प्रतिरोध उनकी कविताओं में प्रमुख है। गहरे अर्थ में वह राजनीतिक कवि हैं। युवा आलोचक गोपाल प्रधान ने कहा कि वीरेन डंगवाल ने कविताएं ही लिखकर बताया कि कविता एक मुकम्मल जीवन दर्शन हो सकता है। उनकी कविताओं में विचार है, जीवन है, इतिहास है और धड़कता हुआ समाज है। वीरेन डंगवाल ने अपनी कविताओं से यह राह बनायी कि जैसे जुल्म-जुल्म बढ़ेंगे कविता के भीतर प्रतिरोध बढ़ेगा। वह अपनी कविताओं में उदारीकरण के प्रतिरोध की जमीन तलाशते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में पूंजी के अत्याधुनिक रूप और पोगापंथ के संश्रय और मेल को जिस शब्दावली में पकड़ा है, वह और कहीं नहीं मिलता है।

वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कहा कि वीरेन डंगवाल की प्राथमिकता बेहतर मनुष्य होने की है। हम उनके पूरे व्यक्तित्व को उनकी कविता में देख सकते हैं और उनकी कविता में उनके व्यक्तित्व को देख सकते हैं। उनकी कविता में विचार और रचनात्मकता का संतुलन अद्वितीय है। उनकी कविता मनुष्य, प्रकृति के अलावा पशु भी आते हैं लेकिन मेटाफर के रूप में नहीं। यह कम कवियों में देखी जाती है। उन्होंने प्रतिरोध के अपरिचित स्वरों को भी तलाशा है। कवि चन्द्रेश्वर ने कहा कि वीरेन समकालीन कविता में निष्कम्प आवाज है। वह हमें दुख और दुख में फर्क करना बताते हैं। उनकी सभी कविताओं में हिन्दी की प्रगतिशील परम्परा की गूंज-अनुगूंज है लेकिन वह अनुकृति नहीं है। वह अपनी कविता में खुद से और समाज की संकीर्णताओं से संवाद करते हैं। उनकी कविताओं का पढ़ते हुए अंधेरे की शिनाख्त की जा सकती है।

युवा आलोचक आशुतोष कुमार ने वीरेन डंगवाल की कविता में संरचना की हिंसा की शिनाख्त को केन्द्रीय तत्व बताया। उन्होंने ‘राम सिंह’, ‘नदी’, ‘व ‘कटनी की रूक्मिनी’ कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि वीरेन डंगवाल की संस्कृति की हिंसा पर कई कविताए हैं। वह हिंसा की पहचान करते है ताकि प्रेम और प्रतिरोध पैदा हो सके। वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा- बहुत कम कवि तुकों के साथ खेलने की जोखिम उठाते हैं। वीरेन डंगवाल ने यह जोखिम उठाया और इसमें वह सफल भी रहे। उनकी कविताओं में छुपी हुई चीजे दिखाई देती हैं तो पहले कविता में नहीं आई थीं। कवि एवं आलोचक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि वीरेन दा कविताओं में शब्दों के चुनाव में बहुत सख्त और संवेदनशील थे। हर शब्द का चुनाव वह बेहद सावधानी से करते थे। वह लापरवाह दिखते थे लेकिन ऐसा था नहीं। लापरवाही उनके लिए एक खोल था। उनकी कविता बहुत अनुशासित है। उनकी कविताओं में नगण्यता का वैभव इसलिए है क्योंकि वह किसी को नगण्य मानते ही नहीं थे। उनकी कविता समता पर जोर देती है। 

इस अवसर पर नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन भी हुआ। मंगलेश डबराल, इब्बार रब्बी, हरिश्चन्द्र पाण्डेय, आलोक धन्वा, मदन कश्यप, चन्द्रेश्वर, भगवान स्वरूप् कटियार, लीना मल्होत्रा, रश्मि भारद्वाज, कौशल किशोर, पंकज चतुर्वेदी, आशुतोष कुमार, मृत्युंजय आदि ने अपनी कविताएं सुनाई। हिरावल ने गोरख पांडेय, महेश्वर और वीरेन डंगवाल की कविताओं की लयबद्ध प्रस्तुति की। कार्यक्रम का समापन वीरेन डंगवाल की प्रसिद्ध कविता ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी’ से हुआ। 

संपर्क- मो - 9415282206

 

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सम्पादक

डॉ. लीना