इर्शादुल हक। बिहार में नक्सली हमले में सात बीएमपी जवान की शहादत कभी कानफाडू शोर मचाने वाला मीडिया बड़ी खबर नहीं बनायेगा. वह इसे आतंकवाद नहीं कहेगा. आतंकवाद तो वही घटना, इनकी नजर में होगी जो महानगरों, शहरों में विस्फोट हो.
न ही राजनीतिक पार्टियां इस पर बेशर्मी से बयान देंगी. न सरकार इस पर गंभीरता से बात करेगी और न ही तथाकथित विश्लेषकों की लाल, हरी और गेरुआ मंडली इसकी गहराई में जाकर आम लोगों को विश्लेषण की घुट्टी पिलायगी.
क्योंकि इस में किसी को कोई लाभ नहीं है. न टीवी वालों को इसमें टीआरपी मिलेगा, न नेता को राजनीतिक लाभ और न ही सरकार को आत्मरक्षा की जरूत महसूस होगी.
इसलिए कि सभी झंडे यानी... लाल, हरा, गेरुआ सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं. और मीडिया को माववादी हिंसा से विज्ञापन भी नहीं मिलेगा.
क्योंकि इस में किसी को कोई लाभ नहीं है. न टीवी वालों को इसमें टीआरपी मिलेगा, न नेता को राजनीतिक लाभ और न ही सरकार को आत्मरक्षा की जरूत महसूस होगी.
इसलिए कि सभी झंडे यानी... लाल, हरा, गेरुआ सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं. और मीडिया को माववादी हिंसा से विज्ञापन भी नहीं मिलेगा.
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