लेकिन कुछ शर्तों के साथ !
क़मर वाहिद नकवी/ राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार क़ानून के तहत रखे जाने के सवाल पर कई राजनेता सवाल उठाते हैं कि मीडिया को भी क्यों नहीं इस क़ानून के अन्तर्गत आना चाहिए. आज मेरी एक पोस्ट पर कुछ मित्रों ने भी यह सवाल किया. इन्हें मैंने जो जवाब लिखा, वह यहाँ फिर पेश कर रहा हूँ:
मीडिया को भी सूचना अधिकार क़ानून के दायरे में आना चाहिए, लेकिन कुछ शर्तों के साथ. जैसे, मीडिया कम्पनी में किस-किस का पैसा लगा है, उसके शेयरहोल्डरों का क्या-क्या व्यवसाय है, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, मीडिया कम्पनी के बही-खाते, मुनाफ़ा-घाटा, समूचा वित्तीय कारोबार, घाटे की पूर्ति कहाँ से होती है, पत्रकारों को कितना वेतन मिलता है, पत्रकारों को नौकरी से हटाये जाने का कारण आदि बातें सूचना अधिकार के अन्तर्गत ला़यी जानी चाहिए.
लेकिन पत्रकारीय स्वतंत्रता को इसके दायरे में नहीं रखा जा सकता, जैसे पत्रकार की सूचना का स्रोत और किसी समाचार को कितना महत्त्व दिया गया या किसी समाचार को प्रकाशन के लायक़ क्यों माना गया या नहीं माना गया.