अमलेश प्रसाद । जिन लोगों को यह गुमान/भ्रम है कि सवर्ण मीडिया में योग्यता के आधार पर नियुक्ति होती है, तो ऐसे लोगों को पटना में राष्ट्रीय दैनिक अखबारों के दफ्तरों में जाना चाहिए और नियुक्ति-प्रक्रिया पर एक सर्वे रिपोर्ट जारी करना चाहिए। दैनिक भास्कर का पटना संस्करण जनवरी से शुरू होने वाला है। इसिलिए यहां से प्रकाशित होने वाले अखबारों में नियुक्ति धड़ले से हुई है/हो रही है। लेकिन सवाल यह है कि किन लोगों की हो रही है? किस आधार पर हो रही है? क्या नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था? अपने आपको देश का सबसे बड़ा अखबार समूह कहनेवाले अखबार में नियुक्ति गुपचुप तरीके से क्यों होती है? इसके पीछे क्या मंशा छिपी होती है? क्या यह राजतंत्र का पालन-पोषण नहीं है? क्या यह लोकतंत्र का लानत-शोषण नहीं है? क्या यह परिवारवाद, जातिवाद को बढ़ावा देना नहीं है? परिवारवाद के लिए नेताओं को दिन रात कोसने वाले पत्रकार/संपादक क्या परिवारवाद से मुक्त हैं? जातिवाद के लिए नेताओं को दिन रात कोसनेवाले पत्रकार/संपादक क्या जातिवाद से मुक्त हैं?
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि लोकतंत्र का स्वघोषित तथाकथित चौथा खंभा मीडिया कितना लोकतांत्रिक है? क्या यह कल्याकणकारी विचारधारा का निर्माण करता है? या सिर्फ जुए का अड्डा है, जहां केवल पैसे के लिए पैसे से पैसे का खेल खेला जाता है. भ्रष्टाचार को अपना मुख्य मुद्दा बनाकर दिल्ली की सल्तनत पर राज करनेवाली आम आदमी पार्टी ‘‘मीडिया में भ्रष्टाचार’’ को भी अपना मुद्दा बनाएगी क्या...(?) या यूं ही मुफ्त में सवर्ण मीडिया की मलाई खाती रहेगी.(फेसबुक से )।