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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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ये सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक भर नहीं है

उन्माद मीडिया का स्थायी चरित्र  

रवीश कुमार /  परिभाषा के लिहाज़ से सर्जिकल स्ट्राइक लोकल एनिस्थिसिया जैसी मालूम पड़ेगी लेकिन इस स्ट्राइक से भारत ने अंदर-बाहर कई असाध्य रोगों को साध लिया है।सेना के बयान के कई घंटे बाद तक दुनिया का कोई देश पाकिस्तान के समर्थन में आगे नहीं आया।उनकी चुप्पी पाकिस्तान को चुभ रही होगी। ऐसी स्ट्राइक तो पहले भी होती रही है लेकिन वो कभी उसे चुभी नहीं है। कभी सेना के डीजीएमओ ने इसे स्वीकार नहीं किया कि हाँ हम कर आए हैं।यह एक बड़ा बदलाव है।वर्ना शहीद हैमराज का बदला लेने के लिए सेना ने दस पाकिस्तानी सैनिकों को मार कर बस इतना ही कहा था कि मेरे लड़कों ने शानदार काम किया है।पाकिस्तान भारत की हर रणनीति में फँसा है। कम से कम अभी तक तो यही लगता है। उसने घटना से ही इंकार कर दिया,अब वो कैसे दुनिया के सामने कहेगा कि भारत ने हमला किया,इसलिए वो बदला लेना चाहता है। प्राइम टाइम में पत्रकार ज्योति मल्होत्रा ने कहा कि यह बहुत बड़ी कामयाबी है कि पाकिस्तान के समर्थन में चीन भी सामने नहीं आया है।

आज पाकिस्तान अकेला है। अकेला भारत भी है लेकिन अपने दम पर खड़ा है।सबको भरोसे में लेकर चला है मगर सबके भरोसे बैठा हुआ नहीं है। भारत ने अपनी रणनीतियों को काफी सहेजा है। पाकिस्तान से पहले अपनी सर्जरी की है। उड़ी हमले के बाद जिस तरह से मीडिया और सोशल मीडिया के संपर्क में रहने वाले जनमत के ख़िलाफ़ जाकर मोदी सरकार ने संयम का परिचय दिया,वो क़ाबिले तारीफ़ है। इस दौरान सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री का ख़ूब मज़ाक उड़ा। कहा गया कि विपक्ष में रहते हुए बोलना आसान था लेकिन कुर्सी पर आते ही पता चल गया। इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने सहनशीलता के साथ पहले चरण में आलोचना को सहा और केरल में ग़रीबी और कुपोषण से युद्ध जीतने की बात कही।सबने स्वागत किया कि बला टली।

मगर उन्मादी मीडिया से लेकर युद्ध विरोधियों तक किसी ने ग़रीबी के ख़िलाफ़ युद्ध के एलान को गंभीरता से नहीं लिया। सरकार के मंत्री या दलों के नेताओं ने भी इस लाइन को छोड़ दिया।मैंने ख़ुद लिखा था कि प्रधानमंत्री के बयान से युद्ध उन्मादियों को झटका तो लगा है लेकिन क्या मीडिया अपने क़ीमती प्राइम टाइम में दोनों मुल्कों की ग़रीबी से जंग पर चर्चा करेगा।कई लोगों ने उनके इस बयान को स्टेट्समैन की तरह देखा, उन्होंने भी ट्वीटर पर स्वागत करने के बाद चुप ही रहना बेहतर समझा। ग़रीबी के लिए टीवी मीडिया के पास कभी टाइम नहीं होता है। यह एक तथ्य है। शायद ग़रीबी ही ऐसी कर्रवाई का ‘कोड वर्ड’ होगा!

अत: मैं भी ग़लत साबित हुआ। मीडिया उन्माद से बाहर नहीं आया।सार्क बैठक और सिंधु नदी जल समझौते को रद्द करने के बहाने अपनी उम्मीदों को परवान चढ़ाता रहा। अब सर्जिकल स्ट्राइक की कामयाबी को उन्मादी मीडिया ने अपनी भी जीत बता रहा है। जितना सेना ने नहीं कहा उससे भी ज़्यादा पेश कर रहा है। उन्माद मीडिया का स्थायी चरित्र है। वो पहले भी अन्य विषयों पर उन्माद पैदा करता रहा है।उन्माद ही मीडिया की दैनिक उम्मीद है।सही बात ये है कि इसके दर्शक भी बहुत हैं।

इसके बाद भी इसी ‘मीडियाई उन्माद’के बीच उन सब लोगों की बातों को समग्र रूप से याद करते हुए दर्ज कर देता हूँ कि युद्ध कुछ नहीं सिर्फ एक उन्माद है। यह कुछ उन्मादियों की रक्त पीपासा की तुष्टि के लिए सरकारों की तरफ से किया जाता रहा है और उसके दम सरकारें अपना राजनीतिक वजूद स्थायी करती रही हैं। भारत ने युद्ध नहीं किया यह बड़ी बात है लेकिन अपने विकल्पों का ठोस इस्तमाल किया है,यह उससे भी बड़ी बात है। इस बारीक बात को गाली देने वालों की फौज नहीं समझेगी।वो राष्ट्रीय खुशी के मौके पर भी हम जैसों को गालियाँ देने से बाज़ नहीं आई। स्वागत है।

बहरहाल,सर्जिकल स्ट्राइक से प्रधानमंत्री ने उनकी भी सर्जरी की है जो कहते थे कि विपक्ष में रहकर बोलना आसान है। ऐसा कर उन्होंने सामान्य नागरिकों के साथ अपने नाराज़ समर्थकों का दिल फिर से जीत लिया है।उनके समर्थक व्हाट्स अप पर फिर से मोदी मोदी करने लगे हैं।छप्पन ईंच की वापसी के गीत बनने लगे हैं। अपने आधार को गँवा कर चंद दिनों में वापस पा लेना आसान नहीं होता।आने दीजिये किसी रैली में उन्हें मंच पर और फिर देखियेगा 18 के बदले 38 के उद्घोष पर कैसी ज़ोरदार तालियाँ बजेंगी।

प्रधानमंत्री ने राजनीतिक दलों को भी अपने साथ लिया। सुषमा स्वराज को सोनिया गांधी के घर भेजा तो राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्रियों को फोन किया,सर्वदलीय बैठक में भी जानकारी दी गई।इन सबके दौरान वे पर्दे के पीछे ही रहे।विपक्ष को बोलने दिया।विपक्ष बोल रहा था तो सरकार ही बोल रही थी।इस तरह प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को दुनिया के स्तर पर अलग थलग किया तो भारत में इस फ़ैसले के हक़ में सबको एकजुट कर लिया।

प्रधानमंत्री ने इस एक स्ट्राइक से काफी कुछ बदल दिया है। युद्ध का विरोध करने वाले भी चाह रहे थे कि उन्हें कुछ करके दिखाना होगा। इस फ़ैसले से सेना का मनोबल तो बढ़ा ही है, सेना से जुड़े लाखों परिवारों का भी सीना चौड़ा हुआ है। सब इतना ही चाहते थे कि भारत चुप न रहे। भारत कुछ न करने के मनेवैज्ञानिक बंधन से मुक्त हो। मुझे नहीं मालूम आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए भारत इसी रणनीति पर चलेगा या ये सिर्फ विशेष परिस्थितियों में इस हद तक जाने का एलान भर है।लेकिन इस एक कार्रवाई से सबका मनोबल बढ़ा है।

पाकिस्तान को भी समझना होगा कि भारत का दिल जीतना है तो उसे भी ज़्यादा कुछ नहीं करना है।आतंकवाद के ख़िलाफ़ सर्जिकल स्ट्राइक करनी होगी। जिस देश में ओसामा बिना लादेन छिपा मिला हो और उसे दूसरे देश की सेना बग़ैर उसकी जानकारी के मार जाए,न मालूम पाकिस्तान इस घाव और अपमान को कैसे जीता होगा।उसकी ये हालत आतंकवाद को शह देने से हुई है।यह मौका अगर वह चूक गया तो उन्माद के जवाब में उन्माद पैदा कर कुछ हासिल नहीं होने वाला। ख़बरों और सूचनाओं में हेर-फेर कर जीतने के एलान से रात का टेलिविजन रौशन हो सकता है,आवाम का अंधेरा दूर नहीं होगा। भारत में न पाकिस्तान में।

नोट: सेना को शानदार बधाई के साथ फिर कहने में कोई संकोच नहीं है कि टीवी का उन्माद समाज के हक में नहीं है। टीवी की भाषा में जो गिरावट आई है,अगर फर्क देखना है तो सरकार की शालीनता से तुलना कीजिये। सरकार संयमित है मगर चैनल उदंडता की भाषा बोल रहे हैं।सड़कछाप शब्दावली का इस्तमाल कर रहे हैं।सेना और सरकार की कामयाबी की आड़ में भद्दी गालियाँ देने वाले सोशल मीडिया पर फिर लौट आए हैं।टीवी भी अब वही भाषा बोल रहा है। पहले टीवी ट्वीटर के जैसा हुआ, अब व्हाट्स अप के जैसा हो गया है। उसे किसी भी हद तक गिरने का लाइसेंस मिल गया है कि लोग इस राष्ट्रीय ख़ुशी के मौके पर कुछ नहीं बोलेंगे। सेना की इस कामयाबी की आड़ में अपनी-अपनी नाकामी छिपाने का दौर आक्रामक होने जा रहा है।दर्शक भी बदले हैं। वो भी ऐसी भाषा और कवरेज के साथ मीडिया का स्वागत कर रहे हैं। वे सरकार की कार्रवाई और मीडिया के पतन के फर्क को नोटिस ही नहीं लेना चाहते हैं। चैनलों को पता है कि सेना की जीत के जश्न में सवाल करने वाला उड़ जाएगा।क्या पता उन्हें सही भी लगता हो। सो मीडिया पर सवाल करके देख ही लेता हूँ !

(रवीश कुमार जी के ब्लॉग क़स्बा से साभार )

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सम्पादक

डॉ. लीना