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फिल्मों में आना महज संयोग नहीं : मनोज भावुक

मनोज की दूसरी फिल्म 'रखवाला' 26  को होगी रिलीज

भोजपुरी फिल्मों में भोजपुरी गायकों का प्रवेश और स्थापित होना अब आम बात है. लेकिन एक भोजपुरी ग़ज़लकार का भोजपुरी फिल्मों में अभिनेता बनना नया और अनोखा प्रयोग है . विदित हो कि मशहूर भोजपुरी राइटर और टेलीविजन पर्सनाल्टी मनोज भावुक अब भोजपुरी फिल्मों में भी नजर आने लगे हैं. वर्ष 2012 के शुरुआत में हीं इनकी पहली फिल्म 'सौगंध गंगा मईया के' रिलीज हुई और अब दूसरी फिल्म 'रखवाला' 26 जनवरी 2013 को रिलीज होने वाली है . 'सौगंध गंगा मईया के' की तरह ही रखवाला में भी मनोज ने एक ईमानदार पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है. 'सौगंध गंगा मईया के' के निर्देशक हैं राजकुमार आर पाण्डेय और 'रखवाला' के निर्देशक हैं असलम शेख. मनोज कहते हैं कि दोनों भोजपुरी के बड़े निर्देशक हैं. इनके साथ काम करने का अनुभव सुखद रहा.

अभिनय से मनोज का पुराना नाता है . मनोज पेरिस, यूनेस्को के बिहार केंद्र बिहार आर्ट थियेटर, कालिदास रंगालय, पटना द्वारा संचालित द्विवर्षीय नाट्यकला डिप्लोमा के टॉपर रहे हैं और अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए वर्ष 1999 के बिहार कलाश्री अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं . वहाँ मनोज ने बकरा किस्तों का, मास्टर गनेसी राम, हाथी के दांत, नूरी का कहना है, बाबा की सारंगी, पागलखाना, ख्याति समेत दर्जनों नाटकों में अभिनय किया.
16 वर्ष पूर्व पटना दूरदर्शन पर भोजपुरी साहित्यकारों और कलाकारों के साक्षात्कार से मनोज ने अपने पत्रकारीय करियर की शुरुआत की थी. फिर 1998 में भोजपुरी के प्रथम टीवी सीरियल 'सांची पिरितिया' में बतौर अभिनेता और 1999 में 'तहरे से घर बसाएब' टीवी सीरियल में बतौर कथा-पटकथा, संवाद व गीत लेखक जुड़े. वर्तमान में अंजन टीवी में बतौर एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर कार्यरत हैं.

मनोज बताते हैं, ''यह सच है कि अभिनय के माध्यम से फिल्मों में मेरी शुरुआत हुई है परन्तु भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए मै नया नहीं हूँ. डेढ़ दशक पुराना और गहरा नाता है.मनोज ने भोजपुरी सिनेमा के बिखरे इतिहास को सहेजने और समेटने की सफल कोशिश की है और इस कोशिश में अमिताभ बच्चन, सुजीत कुमार, राकेश पाण्डेय, कुणाल सिंह, रवि किशन, मनोज तिवारी, कल्पना समेत 50 से ज्यादा फ़िल्मी हस्तियों का साक्षात्कार किया है. मनोज के शोध आलेख 'भोजपुरी सिनेमा के विकास यात्रा' की बुनियाद पर कई शोधार्थियों ने अपना शोध पूरा किया और कई लेखकों ने अपनी पुस्तकें लिखीं. वर्ष 2012 में मनोज ने भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई जिसमें 1948 से लेकर 2011 तक के फिल्मों पर विहंगम दृष्टि है और 20 बड़ी फ़िल्मी हस्तियों के बाइट्स हैं. 25 मार्च 2012 को दिल्ली में आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मलेन के फ़िल्म सत्र में फिल्म, साहित्य, राजनीति और संगीत जगत की जानी मानी हस्तियों ने लाखों दर्शकों के साथ इस डाक्यूमेंट्री को देखा और सराहा. राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित भोजपुरी के महानायक कुणाल सिंह ने मनोज भावुक को 'भोजपुरी सिनेमा का इनसाइक्लोपीडिया' कहा. इस अवसर पर मनोज ने श्वेता तिवारी के साथ मिलकर विश्व भोजपुरी सम्मलेन का संचालन भी किया. मनोज को बेस्ट एंकर के सम्मान से नवाजा गया.

मनोज भावुक ने सिवान के एक छोटे से गाँव कौसड़,थाना रघुनाथपुर से अपनी साहित्यिक व रंगमंचीय यात्रा की शुरूआत की और अफ्रीका एवं लन्दन में जाकर भोजपुरी का प्रचार-प्रसार किया. हिन्डाल्को,रेनुकूट के मजदूर नेता एवं वरिष्ठ समाजसेवी रामदेव सिंह एवं गृहिणी सुनयना देवी के पुत्र मनोज कुमार सिंह उर्फ़ मनोज भावुक को साहित्यिक व मंचीय प्रतिभा विरासत में मिली है . मनोज के बड़े मामा एकमा निवासी प्रो० राजगृह सिंह हिन्दी -भोजपुरी के जाने-माने साहित्यकार व छोटे मामा राजनाथ सिंह राकेश भोजपुरी के कवि हैं.

अब देखना यह है कि अपनी पुस्तक  तस्वीर जिन्दगी के और चलनी में पानी से चर्चित  मनोज  एक अभिनेता के रूप में रूपहले पर्दे पर क्या गुल खिलाते हैं .

प्रस्तुति- अनामिका

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना