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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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भगवान की नोटिस को लेकर अफरा तफरी !

ये कैसी खबर ?

विकास कुमार गुप्ता/भगवान ने  नोटिस  भेजा है। आपको आश्चर्यचकित होने की कतई जरुरत नही हैं लेकिन हो भी क्यो न? क्योकि नोटिस  जो भगवान की है। प्रो. बिलियम डी. ब्लेयर, वूल्सले, चिल्टनबरा, टर्नर केटलिज, जे.जे. सिंडलर, हार्पर लीच से मैन्सफिल्ड तक की सिद्धान्तों को लेकर अनेको तिवारी दुवारी की परिभाषाओं को अधार बनाकर एक पत्रकार ने आखिर सत्तासीन सरकार की चूले हिलाने की खातिर रेडिमेड खबर को भगवान का तड़का लगाकर छपवा ही दिया। एक्चुअली सम्पादक महोदय थे तो तेजतर्जार लेकिन बाजारवादी मीडिया में उनकी हो रही अनदेखी के बीच इस पत्रकार और विपक्ष की साजिश में उनकी दूकान की चमक जो बढ़ने वाली थी।
समूचे प्रदेश में जिन्दाबाद-मूर्दाबाद के नारे गुंजायमान है। पुतले फुंके जा रहे है। पब्लिक रोड पर आ गयी है।
दो दिन पहले
पत्रकार सम्पादक से - सर जी न्यूज एडिट कर दिया है। बस आपकी मंजूरी मिलनी बाकी है।
सम्पादक - अनजान बनते हुए "भगवान की नोटिस से अफरातफरी - ये कैसा न्यूज है?
पत्रकार - सर अभी कुछ पहले समूची पब्लिक रोड पर आ गयी थी। वह भी तो एक तरह से भगवान की ही नोटिस थी और वैसे भी समाचार के तत्वों में संशय वाला पार्ट आजकल कुछ ज्यादा ही चलन में है। माया कैलेण्डर से लेकर नास्त्रेड्स की भविष्यवाणियों को आधार बनाकर हजारों लीड खबरें यूरोपीय मीडिया छाप चुका है। यह खबर तो उन खबरों के सामने के कुछ भी नहीं है।
सम्पादक - चेहरे पर मुस्कान लाते हुए। ठीक है बेटा। लेकिन?
पत्रकार - सर हमलोगों का अखबार भले ही आजादी के समय से चल रहा हो लेकिन अन्दर की बात है कि छप तो हजार-दो हजार ही रहा है। और फिर फर्क ही क्या पड़ता है? क्या आप नहीं चाहते कि हमारा अखबार टाप की श्रेणी में रखा जाये? और कोई साला इधर मुँह भी तो नहीं मारता अब। अगर ऐसे ही खबरों को हम प्रमुखता देने लगे तो हम कुछ ही महीनों में बहुत आगे निकल जायेंगे। और वह दिन दूर नही जब आपसे मिलने के लिए लोग कतार में दिखेंगे। हम मानते है कि आपकी प्रतिष्ठा धनपशु टाइप के सम्पादकों से बहुत ऊपर है और इस आपने बहुत से टाप के आफर ठुकरायें हैं। लेकिन सर इस खबर का छपना बहुत ही जरूरी है।
सम्पादक-हिन्दू की भावना आहत हो रही है। मैं चाहता हूँ की तुम प्रेस कौन्सिल आफ इंडिया में दायर केसों की स्टडी कर लो। फाइल उधर रखी है। फिर इस खबर को और कसों। इसमें अभी वो दम आया नहीं है जो चाहिये। फिर मै देखता हूं क्या कर सकता हूँ?
पत्रकार- सर उसे मै देख चुका हूँ। आई नो द मैटर विल हर्ट टू हिन्दू सोसायटी एण्ड द सेम मैटर विल लाज्ड इजली इन प्रेस कौन्सिल आफ इंडिया। बट क्या होगा कुछ नही? प्रेस कौन्सिल आफ इंडिया सम्मन ही जारी करेगा। और 2-3 तारिखे आयेंगी और उसके बाद मामल ढाक के तीन पात। जो केस लाज करेगा हम उसके दिमाग मे केस कर देंगे। साला पगलिया जायेगा। हम नेक्स्ट हियरिंग के लिए परसू करते करते रहेंगे। दो-चार तारिखों के बाद साला खुद भाग जायेगा। और अगर गांधी का भक्त निकला तो तो अंत में स्पष्टीकरण छाप देंगे। वैसे इसकी नौबत नहीं आयेगी। सर हजारों केस वहां ऐसे भी लटके हुये है।
सम्पादक - बेटा मामला मुख्यमंत्री से रिलेटेड है और समूची गवर्नमेन्ट इनकी है। और हम चाहते है कि मुख्यमंत्री को कोई डायरेक्ट शक हमपर न हो। इसको थोड़ा और मोडिफाई करो। कुछ ऐसा बनाओं की सांप तो मरे वो भी बिना लाठी के।
पत्रकार-सर अगर ज्यादा इसको इधर उधर करेंगे तो इसकी आत्मा मर जायेगी। इसकी आग खतम हो जायेगी। प्रख्यात लोगों के बोल समाचार के तत्व माने जाते है। और मुझे नहीं लगता की टूटपूंजियें प्रख्यातों से भगवान की रेपोटेशन किसी भी स्तर से कम है। लोग इसे हाथों-हाथ लेंगे। सर मेरी रिक्वेस्ट है कि इसे ऐसे ही छापा जाये। यह पैरा देखिये - "प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार, लूट, अत्याचार, अफसरशाही की जुल्मों सितम की पराकाष्ठा से आजीज आकर ही भगवान यह नोटिश देने पर मजबूर हुये। भगवान ने यह भी कहा है कि अगर यह सरकार नहीं सुधरी और आम जनता से हो रही लूट को समाप्त नहीं किया गया तो हम कल्कि अवतार से पहले ही उपस्थित हो जायेंगे। मुख्यमंत्री को सम्बोधित नोटिश में भगवान ने यह भी कहा है कि हमने हजारो सपने तुम्हारे कुकर्मों के दिखाये, असंख्य अवचेतन निर्देश दिये लेकिन अब अति हो चुका है। केन्द्र सरकार से मिल रहे पैसे, वल्र्ड बैंक से लेकर युनेस्कों, विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर आम जनता के जमा किये हुये टैक्स का चूना लगा जा रहा है। आम आदमी असहाय, फटेहाल हो चुका है। फूटपाथ पर भूखे-नंगों की संख्या बढ़ गयी है और उन्हें देखने वाला कोई नहीं। समाज में रूदन-क्रंदन, विलाप की आवाजें हमारे पास पहले से कई गूना ज्यादा आनी शुरू हो गयी है खासकर के इस प्रदेश से और हमारे हृदय को निरंतर स्पंदित करते रहते है। जैसे दो तीन पाराग्राफ इस खबर की जान है।
सम्पादक - बनावटी क्रोध का नाटक करते हुए तुम्हारे पास साक्ष्य क्या है?
पत्रकार - सर अभी कुछ समय पहले सभी लोग रोड पर आय गये थे वो सिर्फ इसलिए की मीडिया और हमारे सोसाइटी ने इस आग को हवा दी थी और यह खबर फैल गयी थी की कुछ बोले की धरती धस जायेगी। क्या इसका कोई सबूत था मीडिया के पास। गणेश जी दूध पी रहे है, नोयड में बंदर का आतंक जैसे अनेकों समाचार भरे पड़े है लेकिन मीडिया के पास क्या कोई सबूत था? नहीं लेकिन फिर भी यह सब चलता रहा एक तरह से। और इन्हीं अफवाहों को थोड़ा नमक-मिर्ची लगाकर मीडिया ने अपना तेल मिलाया और छौंका मारती रही।
सम्पादक - बेटा तुम्हारी बातों से कंविन्स्ड हूँ बट यू डाॅन्ट द रिजन बिहाइंड ईट। हमारी सरकारे अगर हमारे खिलाफ हो जाये, उससे मुझे कोई फर्क नहीं लेकिन हमारा मालिक अगर हमारे खिलाफ हो जाये तब हमे फर्क पड़ता है। यहां मामला न सरकार का है और न विपक्ष का और न ही किसी भी सिद्धान्त का। यहां मामला है मेरा और मेरी पोजिशन बने रहने का।
पत्रकार - साला मालिक जाये भाड़ में। खबर छप जाने के बाद उसका बाप भी कुछ नहीं कर पायेगा। अगर कुछ होगा भी तो बस इतना मालिक आगे से ऐसी खबरों को न छापने की नसीहत देकर चलता बनेगा। और आजकल आप जैसा ज्ञानी और पहुंच वाला सम्पादक मिलता भी कहां है।
सम्पादक-गर्व का अनुभव करने के बाद बनावटी दांत पीसते हुये अभी तक जितने भी घोटाले प्रदेश में हुये है खासकर के इस मुख्यमंत्री के शासन काल में उसका संक्षिप्तिकरण करों। उनमें संलिप्त आई.ए.एस. अधिकारियों के नामों को हटा दों। और जो कल मैंने बताया था उसे भी। अन्यथा इस खबर को रहने दो।
पत्रकार-विपक्ष के नेता से - सर सम्पादक महोदय लग रहा है इस खबर को नहीं छापेंगे। वो लगातार टाल रहे है। आप कुछ करिये।
विपक्ष के नेता - तुम सम्पादक की फिक्र न करो। मै देख लूंगा। तुम बस खबर को मिर्चा नमक भरो। खबर ऐसी बनाओं की आग लगे तो उसके धुये और लपटों से यह सरकार जल जाये। तुम्हे याद तो होगा ही जब मुख्यमंत्री के प्रेस कांफ्रंेस से तुम्हे कितनी बेदर्दी से भगाया गया था।
पत्रकार- हां।
पत्रकार - सम्पादक से - सर खबर मैंने रिराइट की है। सर आप और हमारा मालिक नहीं चाहता की सर्कुलेशन बढ़े।
सम्पादक - चेहरे पर गंभीरता की चादर ओढ़ते हुए। हर देश, राज्य एवं संस्था की एक तासीर होती है एक परंपरा की चादर में लिपटी मार्यादा होती है और बन-बनाये रास्ते होते है। उन सिद्धान्तों को अगर तोड़ोगे तब नये और पुराने रास्तों के बीच भटक जाओगे। अंग्रेस इस देश से चले गये लेकिन हमारे आजादी के समय के नेताओं ने चल रही व्यवस्था को ही रहने दिया। एक तारतम्य, एक रास्ता,, जो बन जाता है उसपर चलना ही बुद्धिमानी है। नये रास्ते बनाओगे तो इस छोटी सी जिन्दगी में रास्ते ही खोजते रह जाओगे।
पत्रकार - तिलमिलाते हुये। सर आप समझ नहीं रहे। पूरे एक सप्ताह मैने इसपर स्टडी और इसे बनाने मेहनत किया है। फिर विपक्ष का ओपन सपोर्ट मिलेगा। और नेताजी ने खुद कहा है कि इस उनको अलग से पच्चीस हजार प्रति स्वयं के लिये चाहिये। वे उन कापियों को विधानसभा से लेकर प्रदेश भर में बंटवायेंगे। इस खबर को यूं समझ लीजिये उन्होंने ही बनवाया है। वैसे भी यह सरकार गूंगी और बहरी है। और हमारे लिये तो किसी काम की नहीं। वैसे भी हमारे मालिक के पसंद विपक्ष ही है। इस सरकार से हमकों विज्ञापन ही कितना मिलता है? सर आप बिलिव करिये और बस एक बार यह खबर छप जाये इसका असर ठीक वैसा ही होगा जैसे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का असेंम्बली में बम फोड़ने पर हुआ था। कवर के टाप पर लीड और अंदर का एक फुल पेज देना है।

तभी सम्पादक का मोबाईल घनघना उठता है। विपक्ष के नेताजी फोन पर है।
नेताजी-मैने कल रात में विधानसभा भवन के आसपास से लेकर समूचे शहर में भगवान की नोटिस के पोस्ट चिपकवा दिये है। और भगवान परमात्मा नाम से एक कूरियर भी मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंच चुका है। मुझे नहीं लगता कि आपको अब इसे छापने में कोइ दिक्कत आयेगी। आपका कैश भिजवा दिया है।
सम्पादक फोन रखते हुए पत्रकार की तरफ मुखातिब होते है। और हल्की सी मुस्कान लाकर गंभीर हो जाते है।

अगले दिन टाप फ्रंट पेज पर लीड खबर प्रकाशित होती है। विपक्ष अखबार की प्रतियों को अपने कार्यकर्ताओं से बंटवा रहा है। भागदौड़ बढ़ जाती है। समूचा इलेक्ट्राॅनिक मीडिया पोस्टरों को चैनलों पर दिखाने लगा है। शाम होते-होते इंटरनेशनल मीडिया भी पार्टिसिपेट करने लगा है। जिन्दाबाद-मूर्दाबाद के नारे चहुंओर गूंज रहे है। नये-नये नारे सुनने को मिल रहे है "रुपया नहीं चवन्नी है यह सरकार निकम्मी है"।

लेखक विकास कुमार गुप्ता पीन्यूजडाटइन के सम्पादक हैं ।

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना