भोपाल में तय हुआ न्यू मीडिया का रोडमैप
इस माध्यम को भी पत्रकारिता की श्रेणी में मिले मान्यता और कानूनी संरक्षण भोपाल,13 अगस्त। झीलों की नगरी भोपाल न्यू मीडिया की जबाबदेही के
साथ ही उसको समृद्ध बनाने का गवाह बना। इस मकसद को पूरा करने के लिए देश भर
से न्यू मीडिया के संचारकों का जमावडा रविवार को भोपाल में लगा।
मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सभागार में आयोजित इस
राष्ट्रीय मीडिय चौपाल में देश के न्यू मीडिया संचारकों ने छह बिंदुओं का
एक साझा मसौदा जारी किया है, जिसमें सामाजिक दायित्व जबावदेही के साथ ही
बेव के लिए आर्थिक माडल बनाने की बात शामिल है। इस मसौदे में स्वीकार किया
गया है कि न्यू मीडिया वर्तमान मीडिया का ही विस्तार है, बावजूद इसके पहुंच
प्रभाव और सरोकार के आधार पर वेब मीडिया को भी मुख्यधारा का माध्यम माना
जाए। इस आधार पर इस माध्यम को भी पत्रकारिता की श्रेणी में मान्यता और
कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए। इस चौपाल में राष्ट्र विरोधी बातें नेट में
करने वाले व्यक्तियों और समूहों की निंदा कर उस पर लगाम लगाने की जरूरत पर
बल दिया गया। कार्यक्रम का आयोजन मध्यप्रदेष विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद
एवं स्पंदन संस्था ने संयुक्त रूप से किया था।
इसके पूर्व उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के सह संपर्क प्रमुख राममाधव ने न्यू मीडिया को मीडिया का
लोकतांत्रिकारण निरूपित किया। श्री माधव ने कहा कि आज के दौर में
आभिव्यक्ति के लिए मुख्यधारा के माध्यमों में आमआदमी के लिए जगह कम है।
जिसकी भरपाई यह न्यू मीडिया बखूबी कर रहा है। उन्होंने इस माध्यम को दायरे
में सीमित करने पर असहमति जताई। उन्होंने कहा कि इससे इसका पैनापन खत्म हो
जाएगा। उन्होंने न्यू मीडिया को मुख्यधारा की मीडिया के लिए एक बेहतर
रिसोर्स भी स्वीकार किया। उन्होंने ने न्यू मीडिया को मिषनरी मीडिया मानते
हुए कहा कि इसकी जबावदेही अधिक होने के साथ ही यह जबावदेही का वातावरण
निर्माण करती है।इन साधनों से जनता शसक्त हुई है।यह जमीनी लोकतंत्र है।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने न्यू मीडिया को एक अवसर माना।
उन्होंने कहा कि कम्यूटर की भाषा में शून्य है या तो एक। इसलिए इस माध्यम
के संचारकों भी या तो शून्य हो जाएंगे या तो मिलकर एक हो जाएंगे। इस माध्यम
से सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ ही संरक्षण की सुविधा मिली है।
अभिव्यक्ति की आजादी का आभूतपूर्व विस्तार हुआ है।इसे हम इंटरेक्टिव मीडिया
कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। न्यू मीडिया ने अपना वर्चआल समाज खडा किया
है। इससे हमारा वास्तविक समाज में कही कमी आ रही है। इसमें स्वछंदता को
रोकने के लिए आत्मनियंत्रण की जरूरत है। इस मौके पर विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी परिषद के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद वर्मा ने इस माध्यम में
वैज्ञानिक पहलू को बढावा देने पर बल दिया। वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया
ने कहा कि हम आज नालेज वर्कर के रूप में अधिक हैं, लेकिन जरूरत नालेज
क्रियेटर बनने की है। स्पंदन के सचिव अनिल सौमित्र ने भी न्यू मीडिया को
अधिक प्रभावी बनाने पर बल देते हुए उसके विस्तार पर प्रकाश डाला।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि सांसद प्रभात झा ने कहा कि शब्द ब्रम्ह होता है।
ब्रम्ह समर्थ होता है और शब्द ही अनर्थ बनाता है। आज लोकतंत्र में बहस
नहीं होती है। यह बहस ही लोकतंत्र को मजबूत बनाती है। देष की सबसे बडी संसद
संवेदनषील नहीं है। मतबोध के आगे मनबोध की चिंता नहीं हो रही है। देष का
सांसद जब बहरा और गूंगा हो तब न्यू मीडिया ही संभावना है। श्री झा ने कहा
कि देष में सार्थक विरोध का सामर्थ खत्म हो गया है। लोकषाही में राजशाही
दिखने लगी है। संचारकों में महात्मा गांधी को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ संचारक
बताते हुए कहा कि उन्हें पता था कि क्या, किसे और क्या संदेष देना है। न्यू
मीडिया को भी इसी तरह से काम करना होगा। देष को नजरंदाज कर न्यू मीडिया
आगे बढेगा तो हम राष्ट्र के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि
हमें दायित्व बोध करना होगा। जोडने की शर्त पर जुडेगे या तोडने की शर्त पर
जुडेगे यह तय हमे करना है।
विशिष्ठ वक्ता के रूप में उपस्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता
एवं संचार विष्वविद्यालय के कुलपति बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि पिछले 300
सालों ने एक तरफा संवाद चल रहा था। सामाजिक संवाद भी गिने चुने हाथों तक ही
सीमिति रहा। इसी की न्यास संगत प्रतिक्रिया आज न्यू मीडिया है। इस माध्यम
ने मानवता को जोडने का कार्य किया है। आत्मा के विकास का माध्यम बनने की
संभावना इसमें है। लेकिन अभी भी न्यू मीडिया के सामने पहचान की चुनौती हैं।
इस पर नियंत्रण नहीं हो सकता, लेकिन आत्मसंयम की जरूरत है। इस अवसर पर सभी
सहभागियों ने ने अपनी बात रखी।
इस चौपाल में वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शुक्ल (कार्यकारी संपादक, सामना,
मुम्बई), के.जी. सुरेश (नई दिल्ली), गिरीश उपाध्याय और विज्ञान संचारक
जयकुमार (कोच्ची) ब्लॉगर और पत्रकार अनुराग अन्वेषी (नई दिल्ली), रविशंकर
(नई दिल्ली), अमलेन्दु उपाध्याय (नई दिल्ली), प्रख्यात स्तंभकार आर.एल
फ्रांसिस (नई दिल्ली), मुकुल कानिटकर (कन्याकुमारी), प्रवक्ता डॉट कॉम के
संजीव सिन्हा (नई दिल्ली), जनोक्ति समूह के जयराम विप्लव (नई दिल्ली),
नेटवर्क 6 के आवेश तिवारी (वाराणसी), सुरेश चिपलूणकर (उज्जैन), वरिष्ठ
पत्रकार अनिल पाण्डेय (नई दिल्ली), चण्डीदत्त शुक्ल (जयपुर), रवि रतलामी
(भोपाल), अहमदाबाद स्थित ब्लॉगर संजय बेंगानी और पंकज त्रिवेदी, लंदन
स्थित ब्लॉगर शिखा वाष्र्णेय, भारतवाणी वेबसाइट के संचालक लखेश्वर
चन्द्रवंशी (नागपुर), रायपुर से गिरीश पंकज, जयप्रकाश मानस (सृजनगाथा डॉट
कॉम), पंकज झा, संजीत त्रिपाठी, ललित शर्मा, अनिल द्विवेदी, मुम्बई से नये
मीडिया के दिग्गज चन्द्रकांत जोशी, प्रदीप गुप्ता, आशुतोष कुमार सिंह,
जितेन्द्र दवे, नेटवर्क 18 के निमिष कुमार, चंडीगढ़ से आशा अर्पित, दिल्ली
से शिवानी पाण्डेय, सीत मिश्रा, हर्षवर्धन त्रिपाठी (दिल्ली), राजीव गुप्ता
(नई दिल्ली), आशीष कुमार (नई दिल्ली), ऋतेश पाठक (नई दिल्ली), उमाशंकर
मिश्र (नई दिल्ली), लिमटी खरे (नई दिल्ली), अरुण सिंह (लखनऊ), प्रभाष झा
(नई दिल्ली), स्वदेश सिंह (दिल्ली), भुवन भास्कर (दिल्ली), गौतम कात्यायन
(पटना), केशव कुमार (नई दिल्ली), अंकुर विजयवर्गीय (नई दिल्ली), सामाजिक
कार्यकर्ता और ब्लॉगर किरण शाहीन (दिल्ली), पर्यावरण और पानी के लिये
कार्यरत केसर सिंह और मीनाक्षी अरोडा (इंडिया वाटर पोर्टल नई दिल्ली),
विज्ञान संचारक अंकिता मिश्रा (दिल्ली), नीरु सिंह ज्ञानी (ग्वालियर)
आकाशवाणी नई दिल्ली में कार्यरत ब्लॉगर वर्तिका तोमर और श्वेता कुमारी,
लोकसभा टीवी में कार्यरत सिद्धार्थ झा (नई दिल्ली), देवपुत्र पत्रिका के
संपादक विकास दवे (इंदौर), मीडिया शिक्षा में कार्यरत सागर के आशीष दुबे,
धार के विजय पाटिल, रतलाम के राजेश मूणत, भोपाल से सरिता अरगरे, अल्पना
मिश्रा, विधुल्लता, जया केतकी, पर्यावरण और विकास संबंधी स्तंभकार पंकज
चतुर्वेदी और महेश परिमल, पत्रकार शिरीष खरे, रविन्द्र स्वप्निल, स्वाति
तिवारी, शशि तिवारी, साहित्यकार कुमकुम गुप्ता, सामाजिक कार्यकर्ता
नरेन्द्र जैन, विज्ञान संचारक सुशील शुक्ला, ओम प्रकाश गौड़, राजू कुमार,
संदीप भट्ट (खंडवा), लोकेन्द्र सिंह (ग्वालियर) के साथ कई अन्य ख्याति
प्राप्त ब्लॉगर्स, वेब संचालक और स्तंभ लेखक उपस्थित थे।