राष्ट्रभाषा हिंदी, बिहार के विशेष दर्जे, पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण, सहित कई मुद्दों पर चर्चा
पटना। बिहार के परिवहन, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री श्री वृशिण पटेल से कल महाराष्ट्र के विभिन्न समाचार पत्रों के 13 राजनैतिक पत्रकारों के एक शिष्टमंडल ने उनके आवास (5, देशरत्न मार्ग, पटना) पर शिष्टाचार मुलाकात की। यह शिष्टमंडल बिहार के अध्ययन के दौरे पर आया हुआ है। शिष्टमंडल में नवभारत टाइम्स के सुरेंद्र मिश्र, हिंदुस्तान के विजय गजानन खरे, नवशक्ति के प्रकाश रामचंद्र सांवत, सामना के योगेश वसंत त्रिवेदी, युगधर्म के अशोक रामचंद्र शिंदे, महानगर के प्रवीण पुरो, लोकसत्ता के स्वप्न सौरभ कुलश्रेष्ठ, लोकप्रश्न के राजन दत्ताराया परकर, सिटी न्यूज के मो0 शकील शेख आदि शामिल थे।
मुलाकात के दौरान सूचना मंत्री श्री पटेल ने राष्ट्रभाषा हिंदी, बिहार के विशेष दर्जे, बिहार के स्वर्णिम अतीत, पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण, प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण, मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, शिक्षकों की नियुक्ति, बाढ, सुखाड़, गठबंधन सरकार के धर्म आदि विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला और अपने राजनैतिक जीवन की भी चर्चा की।
सूचना मंत्री ने शिष्टमंडल को संबोधित करते हुए कहा कि गैर-हिंदी भाषा-भाषियों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का पुरजोर समर्थन किया था। स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदी ने आश्चर्यजनक ढंग से सभी प्रदेशों के लोगों को जोड़ा था और वह स्वतंत्रता आंदोलन की ’वाणी’ थी। आंदोलन के समय हिंदी में राष्ट्रभक्ति से संबंधित अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं। मगर स्वतंत्रता के पश्चात् हिंदी को ’राजभाषा’ का दर्जा मिला, राष्ट्रभाषा का नहीं। दरअसल, राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलने से अंतप्र्रांतीय सांगठनिक संरचना सुदृढ़ होती। हर प्रदेश परिवार का एक सदस्य होता। हमारी एकता मजबूत होती।
उन्होंने कहा कि भाषा आश्चर्यजनक ढंग से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि ’’आप बिहार को देखें-समझे.... आप पायेंगे कि बिहार और महाराष्ट्र एक परिवार की तरह है। बिहार का अतीत स्वर्णिम रहा है। गौतम बुद्ध के उपदेश और महावीर के अहिंसा के संदेश ने विभिन्न धर्मावलंबियों को प्रभावित किया और यह प्रभाव दूसरे देशों के साहित्य में भी देखने को मिलता है...... जब आप यहाँ के लोगों से मिलेंगे तब आप बिहार को समझ पायेंगे कि हमारी संस्कृति रिश्तों में बसती है।’’
श्री पटेल ने अपने राजनैतिक जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि वे 41 वर्षों से राजनीति में हैं। वे 7 बार विधानसभा के लिए और एक बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत नगरपालिका से की। जब वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे, तब वे जार्ज फर्नांडीस के साथ महाराष्ट्र गये थे। 1990 में लालू प्रसाद की सरकार बनी जिससे उनका मोह भंग हुआ और उन्होंने 10 महीने में त्यागपत्र दे दिया और 1991 में वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। तब समता पार्टी का गठन हुआ था। उन्होंने बताया कि 2005 में नीतीश कुमार की सरकार बनी जिसमें वे शिक्षा मंत्री बने और अपने ढाई वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने 3.40 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की।
सूचना मंत्री ने स्पष्ट किया कि दो लाख 36 हजार शिक्षकों को संविदा पर नियुक्त किया गया, और एक लाख चार हजार शिक्षामित्रों, जो पहले से काम कर रहे थे, को शिक्षकों के रूप में नियुक्त कर लिया गया। उनकी नियुक्ति भी संविदा पर की गयी। उच्चतम न्यायालय के आदेश से 34 हजार शिक्षकों की नियुक्ति नियमित वेतमान पर की गयी। इधर, संविदा पर नियुक्त शिक्षकों को उकसाया जा रहा है, जो गलत है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत 500 आबादी वाले सभी गाँवों को पक्की सड़कों से जोड़ा गया है। अलबत्ता, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत काम कर रही केन्द्रीय एजेंसियों को भी हमारी सरकार ने 600 करोड़ का संसाधन उपलब्ध कराया है।
श्री पटेल ने कहा कि केन्द्र शोर बहुत करता है। जमीन पर काम कम देखने को मिलता है। इधर, बिहार की मिट्टी अधिक उर्वरा है। मगर बिहार का उत्तरी क्षेत्र हर साल बाढ़ में डूब जाता है। यह बाढ़ की स्थिति नेपाल से छोड़े जाने वाले पानी की वजह से उत्पन्न होती है। यह अंतर्राष्ट्रीय मसला है। सो, केन्द्र को इसे निपटाना चाहिए। यहाँ कृषि आधारित उद्योग की काफी संभावनाएँ हैं। उन्होंने कहा कि यह गठबंधन का युग है। यहाँ जद(यू) और भाजपा में गठबंधन है, जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस और एन0सी0पी0 में। बिहार में गठबंधन की राजनीति में कोई टकराव नहीं है। दोनों दलों में आपसी समन्वय और तालमेल है। यह गठबंधन का दूसरा दौर (कार्यकाल) है।
सूचना मंत्री ने कहा कि बिहार आधारभूत संरचना, साक्षरता, प्रति व्यक्ति आय, रेल सेवा आदि में काफी पीछे है, इसलिए जद(यू) ने केन्द्र से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की है जिससे राज्य के विकास के लिए विशेष सुविधा उपलब्ध हो सके। विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बजट के लिए मिलने वाला राज्य का हिस्सा 90: 10 हो जायेगा। बजट लैप्स नहीं करेगा। निवेश में विशेष सुविधा मिलेगी। पाँच वर्षों तक आय, कस्टम आदि ’कर’ नहीं लगेंगे जिससे औद्योगिक विकास को बल मिलेगा। सो, विशेष राज्य के दर्जे के लिए केन्द्र ने जो मानक तैयार किया है, उसे बदला जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यदि लोग ज्यादा कमाने, उन्नति करने, कौशल दिखाने आदि के उद्देश्य से दूसरे राज्यों में जाते हैं, तो यह स्थिति मन-मुआफिक है। मगर सिर्फ पेट पालने के लिए जाना अनुचित है। दूसरे प्रदेशों के नागरिकों के लिए हर प्रदेश का दरवाजा हमेशा खुला रखा जाना चाहिए। हमारी सरकार ने लगभग 8 लाख लोगों को नौकरी दी है। इधर, महिलाओं को पंचायत एवं नगर निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है। प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति में भी महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया है। सरकार ने बालिकाओं के विकास के लिए मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना चला रखी है जिससे स्कूलों में छात्राओं की संख्या ढ़ाई लाख से बढ़कर 06 लाख हो गई है। असल में, यह योजना बिहार के नागरिकों, अभिभावकों, बालिकाओं एवं हर वर्ग के लिए मुफीद है।
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महाराष्ट्र के पत्रकार मंडल ने की सूचना मंत्री से मुलाकात
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सम्पादक
डॉ. लीना