05-09-2013
प्रति: श्री मनीष तिवारी
सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री
भारत सरकार , शास्त्री भवन
नई दिल्ली
विषय- समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के लिए संस्करण (Edition) की वैधानिक परिभाषा तय करने के संबंध में
प्रिय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ,
देश में सभी बड़े समाचार पत्रों के कई-कई संस्करण प्रकाशित होते हैं। समाचार पत्रों की तरह टेलीविजन चैनलों के भी संस्करण चल रहे हैं। पत्रिकाएं भी प्रदेशों के लिए संस्करण निकालने लगी हैं।मैं आपसे ये अपील करना चाहता हूं कि भारत सरकार को संस्करण की एक वैधानिक परिभाषा तैयार करनी चाहिए। अभी हमारे देश में संस्करण का जिस रूप में चलन हैं वह बड़े मीडिया घरानों के एकाधिकार का एक दूसरा रूप हैं और छोटी पूंजी पर आधारित मीडिया संस्थानों के मरने मिटने का रास्ता है। हमने इस संबंध में अप्रैल 2012 में शोध पत्रिका जन मीडिया में एक बहस भी शुरू की थी। मैं आपको इस संबंध में निम्म स्थितियों से अवगत कराना चाहता हूं।
एक प्रश्न यह आया है कि संस्करण की क्या परिभाषा होती है? शब्दकोश में संस्करण की परिभाषा कुछ ऐसे है -
अंग्रेजी के शब्द एडीशन (Edition) का हिन्दी अनुवाद, संस्करण होता है। अंग्रेजी डिक्शनरी वर्डस्मिथ में एडीशन की तीन परिभाषाएं दी गई हैं
परिभाषा नं 1- One of a series of printings of the same published work, differing from others in being printed from a distinct typesetting .
परिभाषा नं 2 – The form in which a particular work or set of work is published an annotated edition of Milton’s poem .
परिभाषा नं 3 – All the copies of a single complete run of a newspaper or magazine.
कॉलिन्स के थिसॉरस के अनुसार एडीशन (Edition) की परिभाषा –a) The entire number of copies of a k ,newspaper,or other publication printed at one time from a single setting of type .
b) A single copy from this number.
c)One of a number of printings of a book or other publication , issued at separate times with alterations, amendments etc.
कॉलिन्स के थिसॉरस के अनुसार :क्रिया के रूप में प्रयोग किए जाने पर एडीशन शब्द का अर्थ होता है –To produce multiple copies of ( an original work of art )
मैकमिलन शब्दकोश के अनुसार एडीशन शब्द का अर्थ –a) set of copies of a newspaper or magazine that are published at the same time.
b)From in which a book is published, All copies of an item produced from the same printing surfaces, One that resembles an original;version.
मीडिया को एक उद्योग क्षेत्र कहा जाता है और उनके प्रकाशन या चैनलों को प्रोडक्ट (उत्पाद) कहा जाता है। समाचार पत्र यदि एक प्रोडक्ट है तो क्या किसी भी उद्योग के किसी प्रोडक्ट को यह इजाजत दी जा सकती है कि वह एक प्रोडक्ट के नाम पर कई तरह के प्रोडक्ट तैयार करे? देश भर में प्रकाशित समाचार पत्रों के संस्करणों के नमूनों का हमने अध्ययन किया है । आपसे भी गुजारिश है कि अपने स्तर से यह अध्ययन कराएं। दिल्ली से प्रकाशित किसी पत्र के देश भर से कई संस्करण निकलते हैं। प्रादेशिक राजधानियों से प्रकाशित पत्रों के भी संस्करण होते हैं। इन तमाम संस्करणों का अध्ययन करें तो हम इनमें एक मायने में समानता देखते हैं कि उनके नाम एक हैं लेकिन उस नाम से दिए जाने वाले प्रोडक्ट अलग-अलग है। पाठकों या दर्शकों को यह भ्रम होता है कि वह जो प्रोडक्ट खरीद रहा है वह दिल्ली का प्रोडक्ट है। प्रदेश की राजधानी वाला प्रोडक्ट है। यानी जिस संस्करण को वह देख व पढ़ रहा है उसमें छपने वाली खबरें उस प्रोडक्ट की खबरें हैं। जबकि तथ्य है कि संस्करणों में कुछेक को छोड़कर, एक दूसरे संस्करण की खबरें नहीं होती है। नये प्रोडक्ट को संस्करण के रूप में स्थापित करने के लिए ज्यादा हुआ तो संपादकीय पेज का एक हिस्सा सभी संस्करणों में दे दिया जाता है।लेकिन ये भी अनिवार्य नहीं है। कई समाचार पत्र ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने संपादकीय पेज ही खत्म कर दिए है। कई समाचार पत्र ऐसे भी हैं जो कि किसी एक एजेंसी से संपादकीय पेज तैयार करवाते हैं और अपने प्रोडक्ट के साथ उसका इस्तेमाल करते हैं। संस्करणों के रूप में किसी एक प्रोडक्ट के विस्तार का परिणाम इस रूप में हमारे सामने हैं कि 1) पाठकों और दर्शकों को एक राष्ट्रीय समाचार पत्र या चैनल से अपने जुड़ाव का भ्रम पैदा होता है। जबकि वास्तव में पाठकों और दर्शकों के बीच संस्करणों ने एक अलगाव की स्थिति पैदा की है। आसपास के जिलों से भी वह जुड़ाव नहीं कर पाता है।
2) तथ्य यह है कि संस्करणों के आधार पर कंपनी बाजार में अपने प्रोडक्ट की कीमत ऊंची करती जाती है। ज्यादा से ज्यादा विज्ञापनों के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत करती है। पाठकों की तरह विज्ञापनों पर वह एकाधिकार स्थापित करने की स्थिति में पहुंच रही है।
दरअसल संस्करणों के कोई निश्चित मानदंड नहीं होने के कारण केवल मीडिया उद्योग के मालिक उसका लाभ उठाते हैं। इस उद्योग में लगी बड़ी पूंजी के मालिकों को ही ये लाभ मिलता है। संस्करणों के जरिये छोटे व मध्यम उद्योगों के बाजार पर कब्जा करना आसान होता है। छोटे व मध्यम समाचार पत्रों का बाजार लगातार सिकुड़ रहा है। बड़ी कंपनियों के समाचार पत्रों का संस्करण मीडिया पर एकाधिकार को विस्तार देता है। कुछेक बड़े संस्थानों का बाजार पर कब्जा हो गया है। संस्करणों को एक नये प्रोडक्ट के रूप में देखा जाए तो इससे पाठकों के बीच भ्रम की स्थिति नहीं होगी। विज्ञापनों यानी लाभ का विकेन्द्रीकरण होगा। यदि संस्करणों की मूल परिभाषा को स्वीकार किया जाए तो देश भर में एक भाषा के लोगों के बीच एक दूसरे के प्रति जुड़ाव की स्थितियां विकसित होंगी। राष्ट्रीय कहे जाने वाले प्रोडक्ट वास्तव में राष्ट्रीय भावनाएं विकसित करने में मददगार हो सकते हैं। पाठकों व दर्शकों के बीच राष्ट्रीय, प्रादेशिक व स्थानीय समाचार पत्रों व चैनलों में किसी का चुनाव करने की जरूरत स्पष्ट रूप से सामने होगी।
भारत सरकार संस्करण को इस तरह परिभाषित करती है। समाचार पत्रों के पंजीयक के अनुसार -
1. एक समाचार पत्र जितने भी चाहें संस्करण निकाल सकता है।
2. किसी पंजीकृत पत्र का शीर्षक एवं भाषा से किसी दूसरे स्थान से विधिवत पूर्वक घोषणा पत्र भरकर निकाला गया अंक संस्करण कहलाता है जिसका पंजीकरण अलग से किया जाता है। यदि पहला शीर्षक पंजीकृत है तो, और भाषा भी वही है तो, और संबंधित जिलाधिकारी के सम्मुख घोषणा पत्र प्रस्तुत करने के बाद छापा गया हो तो।
3. एक समाचार पत्र वह होता है जो आर एन आई में अपने पब्लिकेशन को रजिस्टर्ड करवाता है। न्यूज एवं करंट अफेयर्स के आधार पर वह समाचार पत्र लूज शीट (बिना बाइडिंग) में जो सूचनाएं निकालता है वह संस्करण कहलाती है। ऐसा इसीलिए किया जाता है ताकि अधिक से अधिक लोगों को सूचना दी जा सकें।
सूचना के अधिकार कानून के तहत रजिस्ट्रार के उक्त जवाब से स्पष्ट है कि वह एक ही सूचना के अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए संस्करण का सहारा लिया जाता है। संस्करण के बारे में भारत सरकार की सैद्धांतिक और व्यवहारिक नीति स्पष्ट होनी चाहिए। बड़े मीडिया संस्थान के मुकाबले छोटे और मध्यम श्रेणी के पत्र पत्रिकाओं के विकास की दिशा इसी से साफ हो सकेगी।
मैं आपसे गुजारिश करता हूं कि लोकतंत्र के हित में संस्करणों की एक वैधानिक परिभाषा निश्चित करने की प्रक्रिया शुरू करें। हमारा देश विविधताओं से भरा है और यहां विविध स्तर पर पत्र पत्रिकाओं के विस्तार की संभावनाएं हमेशा बनी रहनी चाहिए।
धन्यवाद।
आपका
अनिल चमड़िया
मनीष तिवारी के नाम अनिल चमड़िया का पत्र
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सम्पादक
डॉ. लीना