क्या बिना किसी तथ्य के बिहार में खबरें चल रही हैं? क्या कुछेक पत्रकार मिलकर कर रहे हैं खबर का एजेंडा तय ? पटना निवासी वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने अपने फेसबुक पर आज ही यह पोस्ट लगाई है। वे कहते हैं - बहुत बुरा हाल है फिर भी कोशिश जारी है। आप भी पढ़ें- संपादक, मीडियामोरचा
संतोष सिंह। व्हाट्सएप्प पत्रकारिता ने यू कहे तो पत्रकारिता को ही खत्म कर दिया है बड़े से बड़े पत्रकार हो या फिर स्ट्रींगर हो सब के सब व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के भरोसे ही काम चला रहा है जिसका असर आप पत्रकारिता के गिरते स्तर से महसूस कर सकते हैं ।
पत्रकारिता को लेकर मेरा खुद का जो अनुभव रहा है कि किसी भी परिस्थिति में तथ्य से छेड़छाड़ नहीं करते थे और कोई करता भी नहीं था। क्यों कि पत्रकारिता की आत्मा तथ्य ही है, जिस पर जनता आँख मूंद कर भरोसा करती है। जो भी पत्रकार तथ्य के साथ छेड़छाड़ करता था पत्रकार बिरादरी उसे दूसरे नज़रिए से देखता था ।
लेकिन आज क्या हो रहा है हम लोग टीआरपी के लिए हो या फिर, सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए हो, तथ्य के उलट जाकर हम लोग खबर चला रहे हैं। सुंशात सिंह राजपूत इसका सबसे बेस्ट उदाहरण है।
इस बिमारी के हम लोग भी शिकार हो गये हैं, बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर ही देखिए जिसको जो मन कर रहा है चला दे रहा है सीट तक बांट दे रहा है बिना किसी तथ्य के।
इतना ही नहीं एक नयी परंपरा चल पड़ी है सुबह सुबह तीन चार पत्रकार फोन से बात करके खबर का एजेंडा तय कर लेता है जिसमें तथ्य दूर दूर तक नहीं रहता है बस खबर चला देना है ।
और आज इसी तरह की पत्रकारिता की वजह से किसी भी पत्रकार के पास खबर को लेकर उस तरह का सोर्स नहीं है जिस तरीके का सोर्स पहले हुआ करता था औऱ इसका असर यही है कि हम लोग बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान पूरी तौर पर एक्सपोज हो गये हैं किसी भी पार्टी में इस तरह का सोर्स ही नहीं जिससे अंदर कि खबर बाहर ला सके ।
दो दिनों से जदयू का मैराथन बैठक चल रही है लेकिन बैठक में क्या चल रहा है कुछ भी बाहर नहीं ला पाये हम लोग ।बीजेपी औऱ जदयू में गठबंधन किस स्तर तक पहुंचा है कुछ भी आधिकारिक खबर नहीं है बस फर्जी सोर्स के हवाले खबर चलाये जा रहे हैं।
जैसे लोजपा को 27 सीट बीजेपी दे रही है सूची भी बाहर आ गया लेकिन सूची सही है या फिर सूची मीडिया तक पहुंचाने के पीछे साजिश है कुछ भी नहीं पता है ।
बहुत बुरा हाल है फिर भी कोशिश जारी है किसी तरह अंदर कि चीजें बाहर ला सके लेकिन चाटुकारता ने वो भी खत्म कर दिया यू कहे तो कालिदास की कहानी हम मीडिया वालो पर फिलहाल बहुत ही सटीक बैठ रहा है।
(साभार)