मीडिया में ठाकरे परिवार के जड़ों की खोज करने को लेकर मची है होड़
श्रीकांत प्रत्यूष । राज ठाकरे की असल नस्ल की पहचान के लिए अभी सारे खबरिया चैनल इतिहास के पन्ने पलट रहे हैं.वैसे इतिहासकार इस बात को लेकर सहमत हैं कि वर्तमान ठाकरे परिवार के पुरखे मगध से ही आये थे.लेकिन असली विवाद उनके मगध से पलायन और बिस्थापन की तारीख को लेकर है..कुछ इतिहासकार मानते हैं कि " नन्दवंश" के निरंकुश शासन से तंग आकर ठाकरे के पूर्वज ईसा पूर्व ३०० साल (२५०० साल ) पहले मगध से निकले थे लेकिन ऐसे इतिहासकारों की कमी भी नहीं है जो मानते हैं कि ठाकरे "नन्दवंश" के शासन के अंत के बाद और "मौर्यवंश " शासन के शुरू होने के साथ मगध से पलायन कर गये थे.
आखिर राज ठाकरे के पूर्वजों के मगध छोड़ने की असली तारीख में देश के लोगों या फिर इतिहासकारों की क्यों रूचि है.दरअसल इस तारीख के जरिये ही ठाकरे परिवार के "संस्कारों ' की जड़ की पहचान हो सकती है.यह तारीख ही खुलासा कर सकती है कि आज के ठाकरे परिवार के निरंकुश चरित्र की जड़ें कहाँ हैं.अगर ठाकरे नन्द वंश के संस्थापक निरंकुश शासक निरंकुश शासक महापद्मानंद के अत्याचारी शासन में भागे होंगें तब तो कहा जा सकता है कि वो अत्याचार के कारण भागे.अगर उनका पलायन अत्याचारी नन्द शासन के खात्मे और मौर्य शाशन के शुरू होने के साथ हुआ तब इसे इस एंगल से देखा जाएगा कि ठाकरे नन्द वंश के निरकुंश शासन में महफूज थे या फिर निरंकुश शासन चलाने में शासन के सहोयोगी होने के कारण महफूज थे .
वैसे ठाकरे के असली रूट को समझने के लिए थोड़ी इतिहास की जानकारी जरुरी है.आज भारत का उपलब्ध इतिहास ६०० साल ईसा पूर्व से शुरू माना जाता है.इसे बुद्ध काल कहा जाता है.उस समय मगध का राजा बिम्बिसार था.मगध में बिम्बिसार के शासन काल को बुद्ध के प्रार्दुभाव के लिए भी जाना जाता है.बुद्ध उस समय जवां थे.बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु के शासन काल में निर्वाण को प्राप्त हो रहे थे.अजातशत्रु के बाद पांच राजा हुए .अंतिम राजा शिशुपाल था.शिशुपाल का बढ़ करके ही महापदामानंद ने मगध में नंदवंश की स्थापना की.इसी पदमानंद को भारत में भारत साम्राज्यशाही की नीवं डालनेवाला क्रूर राजा मना जाता है.उसी के बेटे घनानंद को पराजित करके ३२१ ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य भारत का सम्राट बना.उस समय देश की सत्ता का केंद्र मगध था.यूं अजातशत्रु के वक्त ही राजगृह के बदले "पाटलिपुत्र" को राजधानी बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी थी, लेकिन पाटलिपुत्र मगध की राजधानी सहित पुरे भारत का सबसे शक्तिशाली सत्ता का केंद्र बनकर उभरा नंदवंश के दौर में.लेकिन आज मगध क्षेत्र को सिर्फ गया के रूप में पहचाना जाता है,जो बिहार का एक जिलामात्र है..
बिहार के इतिहासकार माला बनर्जी कहती हैं-"मुझे नहीं पता कि ठाकरे मगध से कब भागे थे .लेकिन इतना तय है कि ठाकरे ओरिजिनल टाइटल नहीं है.यह टाइटल उन्होंने अंग्रेजी के मशहूर साहित्यकार विलियम नेक्स्पेस ठाकरे से प्रभावित होकर ठाकरे का टाइटल अपना लिया था." पटना के इतिहासकार सुरेन्द्र गोपाल कहते हैं-"महाराष्ट्र की आज की अर्ध माघदी भाषा है वह मगध की भाषा माघदी का एक रूप है.३२१ साल बाद भी अगर वह भाषा महाराष्ट्र में है तो उसका ठाकरे परिवार से गहरा ताल्लुक है." सुरेन्द्र गोपाल का कहना है कि ठाकरे परिवार मगध से ताल्लुक रखता है इसकी खोज खुद ठाकरे के इतिहासकार दादा ने की थी और उसे प्रमाणित करने के लिए प्रयाप्त दस्तावेज भी संगृहीत किया था.उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक दस्तावेजी है,जिसे नकारा नहीं जा सकता.
पुरे देश में ठाकरे के बिहार से जुड़े होने की खबर सुर्ख़ियों में भले हो लेकिन बिहार का युवा वर्ग इस विवाद में बिलकुल रूचि नहीं रखता.पटना के विभिन्न कालेजों के छात्रों और छात्राओं से प्रत्यूष नवबिहार ने जब बात की तो ज्यादातर ने इस मसले पर या तो अनभिज्ञता जताई या फिर इसमे कोई रूचि नहीं लिया.सबका यहीं मानना था कि नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए अपने नाम और जाती बिरादरी को ही नहीं बल्कि अपनी पहचान भी मिटा सकते हैं.पटना के जानेमाने इतिहासकार चेतकर झा भी ठाकरे को इतिहास के पन्ने में तलाशने की मची होड़ को निरर्थक मानते हैं.उनका कहना है कि यह पूरी तरह से राजनीतिक मामला है और इसका इतिहास से कोई लेनादेना नहीं.इसका मकसद सिर्फ बस सिर्फ चर्चा में बने रहना भर है.ऐसे विषय पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं. (ये लेखक के अपने विचार है )
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं