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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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बंद होने जा रहा है नेशनल दस्तक!

फिलहाल वहां काम ठप्प है और तमाम कर्मचारी नौकरी छोड़ चुके हैं

वेब चैनल नेशनल दस्तक बिकने जा रहा है या फिर बंद होने जा रहा है। इससे जुड़े रहने वाले कर्मचारियों के हवाले से खबर आई है कि रियल इस्टेट से जुड़े  नेशनल दस्तक के मालिक सुनीत कुमार और उनकी पत्नी डॉली कुमार इसे बेचने को तैयार हैं। अगर चैनल नहीं बिकता है तो इसको बंद करने की तैयारी है। नोएडा स्थित  दफ्तर बंद कर दिया गया है, तो वहीं यहां काम करने वाले कर्मचारियों को पिछले तीन से चार महीने से सैलरी नहीं मिली है।

​फिलहाल वहां काम ठप्प है और तमाम कर्मचारी नौकरी छोड़ चुके हैं। पिछले दिनों अचानक इसके मालिकों ने पहले वेब चैनल और वेबसाइट को अलग कर दिया। वेबसाइट का काम इस सेक्शन के संपादक भावेन्द्र प्रकाश के जिम्मे दे दिया गया है जो अकेले ही इसको देख रहे हैं। तो वहीं वेब चैनल का काम शंभु कुमार सिंह को दे दिया गया। बाकी कर्मचारियों को बिना कोई नोटिस और सैलरी दिए उन्हें निकाल दिया गया है।

सूचना के मुताबिक इस दौरान वेब चैनल से जुड़े कर्मचारियों ने जब सैलरी मांगी तो कहा गया कि सैलरी वेब चैनल के संपादक शंभु कुमार सिंह के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया है और वही सैलरी देंगे। जबकि शंभु ने यह कह कर सैलरी देने से इंकार कर दिया कि किसी ने कोई काम ही नहीं किया है तो काहे की सैलरी। 

गौरतलब है कि दिसंबर 2015 में धूमधाम से इस चैनल को शुरू किया गया था। पहले इससे चर्चित दलित पत्रकार अशोक दास जुड़े थे, लेकिन इसमें पैसा निवेश करने वाले रीयल स्टेट कंपनी के मालिक सुनीत और डॉली कुमार की अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता नहीं होने और बहुजन  विचारधारा को ताक पर रखकर फायदा कमाने की प्रवृति को देखकर अशोक दास इसके शुरू होने के छह महीने बाद ही इससे अलग हो गए थे। अशोक दास पिछले पांच साल से "दलित दस्तक" नाम से अपनी पत्रिका चलाते हैं और इसी साल जुलाई में दलित दस्तक के नाम से ही अपना वेब चैनल और वेबसाइट भी लांच कर चुके हैं।

अशोक दास से अलग होने के बाद इससे दिलीप मंडल भी जुड़े थे। अब यह देखना होगा कि अगर चैनल बिकता है तो बहुजन विचारधारा की बात कह कर तेजी से आगे बढ़ने वाले इस चैनल को कौन खरीदता है? और तब इसकी विचारधारा क्या होगी?

यह बहुजन समाज के उन लोगों के साथ भी धोखा है जो इसे आंदोलन का चैनल मानकर तेजी से जुड़े थे और आर्थिक मदद की थी।

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना