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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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अच्छी भाषा पत्रकारिता की बुनियादी शर्त: ओम थानवी

 आगरा । अच्छी भाषा पत्रकारिता की बुनियादी शर्त है। उसे पाने में टेकनालाजी सहायक हो सकती है पर वह महज टेकनालाजी से नहीं आती। उसे हासिल करने के लिए लगातार सीखना और शब्दों की तलाश करते रहना चाहिए। यह बात जनसत्ता के कार्यकारी संपादक ओम थानवी ने कल्पतरु एक्सप्रेस की तरफ से गुरुवार को आयोजित मीडिया विमर्श की पहली श्रृंखला में कही।

कल्पतरु एक्सप्रेस के पत्रकारों और गैर पत्रकारों से एक अनौपचारिक संवाद करते हुए श्री थानवी ने कहा कि हमें टेकनालाजी का इस्तेमाल करना चाहिए और उसके सबसे आधुनिक रूप को भी अपना उपकरण बनाना चाहिए। इस सिलसिले में सोशल मीडिया और इंटरनेट के तमाम आयाम हमें ताकत देते हैं, लेकिन उसी के साथ यह समझना होगा कि कोई भी मशीन अच्छा अखबार नहीं बना सकती, न ही कोई कैमरा अच्छा टीवी चैनल चला सकता है। कोई भी टेकनालाजी हमें लिखना नहीं सिखा सकती। उसके लिए विवेक चाहिए और दृष्टि चाहिए। शब्द सामथ्र्य चाहिए।

श्री थानवी ने कहा कि शब्द आम आदमी से लाने चाहिए और उनका प्रयोग सरल तरीके से करना चाहिए। उन्होंने देश के तमाम बड़े साहित्यकारों के एक संवाद का हवाला देते हुए कहा कि उसमें फिराक साहब ने कहा था कि हमें तरकारी वाले की भाषा में साहित्य लिखना चाहिए। दूसरी तरफ पत्रकारों के लिए लगातार अध्ययन और शब्दकोशों को देखना जरूरी है।

उन्होंने बताया कि उनके घर शब्द कोशों से भरे पड़े हैं और उससे पत्रकारिता को नई भाषा देने में सुविधा होती है, पर शब्दों के सही हिज्जे और उच्चारण के लिए अपने आसपास के विद्वानों से बिना ङिाझक संवाद करना चाहिए और उसे बोलने वाले व्यक्तियों से भी संपर्क रखना चाहिए। उन्होंने इस सिलसिले में forvo.com का जिक्र करते हुए बताया कि उस पर विभिन्न भाषाओं के शब्दों के सही उच्चारण मिल जाते हैं। श्री थानवी ने पत्रकारिता को भ्रष्टाचार और सनसनी से बचाकर सरोकारों से जोड़ने की अपील करते हुए कहा कि हमारे डर ने हमें दबंग और बाहुबली जैसे सकारात्मक शब्दों का इस्तेमाल गुंडों के लिए करने पर मजबूर कर दिया है।

इस मौके पर कल्पतरु एक्सप्रेस के समूह संपादक पंकज सिंह ने कहा कि कई बार सही उच्चारण और हिज्जे मिल जाने के बाद भी हमारे सामने उन्हें प्रस्तुत करने की दुविधा रहती है।

अगर कोई शब्द किसी भाषा के पाठकों के लिए रूढ़ हो गया है, तो अचानक उसे शुद्ध करने में पाठक को झटका लग सकता है और पाठक या तो भ्रमित होगा या स्वीकार नहीं करेगा।

उन्होंने बताया कि वेनेजुएला के दिवंगत राष्ट्रपति का शुद्ध नाम भले ऊगो चावेज हो पर जब हिंदी पाठक उनके नाम के पहले शब्द को ह्यूगो के रूप में स्वीकार कर चुके हैं तो उसे बदलना उचित नहीं।

हालांकि उन्होंने शावेज की जगह पर चावेज किए जाने को उचित बताया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कल्पतरु एक्सप्रेस के कार्यकारी संपादक अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भाषा और हाथ मानवता के दो बड़े आविष्कार हैं। इनमें किसी तरह की कमजोरी पूरी मानवता को कमजोर बनाएगी।(कल्पतरु एक्सप्रेस से साभार )

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना