जानिए क्या लिखा था उन्होंने
दलित चिंतक कंवल भारती को गिरफ्तार कर लिया गया है। हालांकि उन्हें तुरंत जमानत भी मिल गई। स्थानीय मीडिया प्रचारित कर रहा है कि उनकी गिरफ्तारी दुर्गा नागपाल मामले पर लिखने के कारण हुई है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वे आरक्षण मुद्दे पर खरी-खरी बातें लिखने के कारण सरकार की नजर मे ज्यादा खटक रहे थे।
बहराहल, कंवल भारती के हालिया पोस्ट इस प्रकार हैं, फैसला आप खुद कीजिए
कंवल भारती : 05 अगस्त- आरक्षण और दुर्गा शक्ति नागपाल इन दोनों ही मुद्दों पर अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार पूरी तरह फेल हो गयी है. अखिलेश, शिवपाल यादव, आज़म खां और मुलायम सिंह (यू.पी. के ये चारों मुख्य मंत्री) इन मुद्दों पर अपनी या अपनी सरकार की पीठ कितनी ही ठोक लें, लेकिन जो हकीकत ये देख नहीं पा रहे हैं, (क्योंकि जनता से पूरी तरह कट गये हैं) वह यह है कि जनता में इनकी थू-थू हो रही है, और लोकतंत्र के लिए जनता इन्हें नाकारा समझ रही है. अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और बेलगाम मंत्री इंसान से हैवान बन गये हैं. ये अपने पतन की पट कथा खुद लिख रहे हैं. सत्ता के मद में अंधे हो गये इन लोगों को समझाने का मतलब है भैस के आगे बीन बजाना. –
कंवल भारती : 02 अगस्त- आपको तो यह ही नहीं पता कि रामपुर में सालों पुराना मदरसा बुलडोजर चलवा कर गिरा दिया गया और संचालक को विरोध करने पर जेल भेज दिया गया जो अभी भी जेल में ही है. अखिलेश की सरकार ने रामपुर में तो किसी भी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया. वह इसलिए कि रामपुर में आज़म खां का राज चलता है, अखिलेश का नहीं.
कंवल भारती : 01 अगस्त- दलित नेता सिर्फ दलितों के वोट से चुनाव नहीं जीतता है और न ओबीसी का नेता ओबीसी के वोट से चुनाव जीतता है. उन्हें दूसरे समुदायों और वर्गों का वोट भी चाहिए. इस हकीकत को समझिए और एक वर्ग के रूप में संगठित होइए. वर्गीय लड़ाई ज्यादा व्यापक और कामयाब होती है.
कंवल भारती : 01 अगस्त- राजनीति की मधुशाला में कौन किसके साथ जाम चीयर करता है, जिस दिन जनता यह समझ लेगी, उसी दिन वो पढ़ी-लिखी और जागरूक हो जायेगी, और उसी दिन देश में क्रान्ति आ जायेगी.
कंवल भारती : 01 अगस्त- अखिलेश और मुलायम सिंह यादव को यह अच्छी तरह पता है कि यादव कितना ही उनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर ले, पर वो वोट उन्हीं को देगा। जिस तरह जाटव (चमार) मायावती को नहीं छोड़ता, उसी तरह यादव भी मुलायम को छोड़ कर कहीं नहीं जायेगा। इसलिए यादवों के आरक्षण-आन्दोलन से अखिलेश सरकार डरने वाली नहीं है। यही मसला अगर मुसलमानों का होता, तो मुलायम और अखिलेश दोनों उनके सामने हाथ जोड़े खड़े होते. जैसा कि उन्होंने दिल्ली के शाही इमाम और बरेली के मौलाना तौकीर रज़ा खां के मामले में किया। वे जानते हैं कि सवर्ण और मुसलमान पढ़ा-लिखा तबका है, जो अपने हित के लिए अपनी राजनीतिक ताकत किसी भी पार्टी को दे सकता है। क्या दलित और पिछड़ा वर्ग अपने आर्थिक हितों के लिए ऐसी जागरूकता दिखा सकता है?
कंवल भारती : 29 जुलाई- आरक्षण के मुद्दे पर मुख्यमंत्री से मिलकर छात्र नेताओं को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. क्यों? कारण वही है, जो मैंने उस पोस्ट में उठाया था कि दलित-पिछड़े नेता समझौता क्यों करते हैं? हकीकत यह है कि मुलायमसिंह यादव और मायावती जैसे नेता यह अच्छी तरह जानते हैं कि दलित-पिछड़ी जातियों के लोग वोट उन्हीं को देंगे. वे कितना ही अपने नेताओं को गरिया लें, पर जब चुनाव होगा, तो वोट उन्हीं को देंगे. कहेंगे कि विकल्प ही नहीं है, क्या करें? मजबूरी है. जब तक यह मजबूरी रहेगी, तब तक छात्र आरक्षण आंदोलन का कोई प्रभाव नहीं होने वाला है. उलटे छात्र नेता भी समझौता कर लेंगे और उनके नेता तो उन्हें बेच ही रहे हैं. आंदोलन करो या मरो की तर्ज पर सफल होता है. आन्दोलन का आधार यह होना चाहिए कि आरक्षण दो या गद्दी छोडो.
कंवल भारती : 29 जुलाई- उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार ने नोएडा में आईएस ऑफिसर दुर्गाशक्ति नागपाल को निलम्बित करने का कारण यह बताया है कि उन्होंने रमजान के महीने में एक मस्जिद का निर्माण गिरवा दिया था, जो अवैध रूप से सरकारी ज़मीन पर बनायी जा रही थी. लेकिन रामपुर में रमजान के महीने में ही जिला प्रशासन ने एक सालों पुराने इस्लामिक मदरसे को बुलडोज़र चलवाकर गिरवा दिया और विरोध करने पर मदरसा संचालक को जेल भिजवा दिया. पर अभी तक किसी भी ऑफिसर को समाजवादी अखिलेश सरकार ने न निलम्बित किया है और न हटाया है. जानते हैं क्यों? क्योंकि यहाँ अखिलेश का नहीं, आज़म खां का राज चलता है. वह रमजान में मदरसा गिरवा सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं. उनको रोकने की मजाल तो खुदा में भी नहीं है.
कंवल भारती : 27 जुलाई- मुलायम सिंह यादव यदि आरक्षण के सवाल पर समझौता नहीं करते तो क्या करते? कोई बताएगा?
( Forward Press के फेसबुक वाल से साभार)