शंभुनाथ शुक्ला / टीवी वालों ने न्यूज हैक कर ली हैं। अखबार अब टीवी न्यूज देखकर अपनी लीड और बॉटम तय करने लगे हैं। इसका एक कारण तो प्रिंट से प्रतिभावान लोगों का पलायन है। मजबूरी में अखबारों में टीवी के रिजेक्टेड पत्रकारों को बड़ी पगार पर रखा जाने लगा है। अब वे कुछ न कुछ तो करेंगे ही। बस टीवी से खबर उठा ली। आज सुबह(11april) से ही टीवी वाले बस दो ही चीजें दिखा रहे हैं। एक तो मुंबई पुलिस का स्टिंग आपरेशन जिसमें कुछ पुलिस वालों को रिश्वत लेते दिखाया गया है। दूसरा जगदीश टाइटलर का इंटरव्यू। यह तो एक बच्चा भी बता सकता है कि पुलिस वाले भरे चौराहे ट्रकों को रोककर पैसा लेते हैं। जब जितनी चाहे फोटो कर लो और वो इससे डरते भी नहीं हैं। किसी भी कोर्ट में पेशकार से लेकर चपरासी तक बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करने वाले। सरकारी नौकरी तो घूस खाने की गारंटी है। फिर क्यों न खाएं सरकारी नौकर जब मंत्री हजारों करोड़ की रिश्वत लेता है और सांसदों का तो कहना ही क्या। अब टाइटलर में खास बात क्या है। १९८४ के अखबार उठा लीजिए आपको टाइटलर, सज्जन सिंह और एचकेएल भगत की हकीकत पता चल जाएगी। मैं खुद एक नवंबर को बहादुरशाह जफर मार्ग स्थित एक्सप्रेस बिल्डिंग में था। उन दिनों मैं जनसत्ता का एडिट पेज देखा करता था। सो मेरी ड्यूटी सुबह ११ बजे से शुरू होती थी और मैं दफ्तर आ गया था। रास्ते भर मैने सिखों को सरेआम पीटे जाने और उनके गले में जले टायरों को डाले जाने के दृश्य देखे थे। उन गुंडों की अगुआई कांग्रेसी ही कर रहे थे। कनाट प्लेस में सिखों की जलती दूकानों से उठता हुआ धुआं दूर-दूर तक दिखाई पड़ रहा था। उस दिन मैं रात करीब १२ बजे घर के लिए दफ्तर की गाड़ी से निकला। हमारी गाड़ी में सलवार सूट पहने एक सिख महिला पत्रकार भी थी। कितनी जगह गाड़ी रोकी गई और किसी तरह हमने उसे बचाया। मुझे उसका नाम तो याद नहंी पड़ रहा है लेकिन कौर सरनेम लगा था। जहां-जहां दंगाइयों ने हमारी गाड़ी घेरी हम फौरन बताते कि पत्रकार हैं। वे सब के नाम पूछते तो हम उस बेचारी का नाम सरिता मिश्रा बताते रहे। ये सब बातें २ नवंबर १९८४ के अखबारों में मिल जाएंगी।
लेकिन आप कल देखिएगा कि सारे अखबार ये दोनों खबरें छापेंगे लेकिन वही टीवी रटंत वाली। कोई भी अखबार का संपादकीय विभाग इतनी मेहनत नहंी करेगा कि उस तारीख के दिल्ली के अखबार निकाल ले। टाइटलर अथवा मुकदमा बहादुर बने लोगों की फोटो छापने या दिखाने से लाख गुना बेहतर होता कि कोई पत्रकार थोड़ी मेहनत कर उस तारीख के अखबार निकालता और घटनाओं को ब्योरे वार छापता। पर ऐसा नहीं होगा।
Shambhunath Shukla@ http://www.facebook.com/shambhunaths